ई-कॉमर्स नीति में छोटे कारोबारी

By: Jun 24th, 2019 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

ई-कॉमर्स कंपनियों को यह अनुमति नहीं दी जाएगी कि वे बाजार पर अधिकार करने के लिए बहुत सस्ते मूल्य पर आपूर्ति करें। ऐसी चूक करने वालों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई की जाएगी। सरकार छोटे कारोबारियों को सभी प्रकार की सहायता मुहैया कराएगी जिससे कि उनका कारोबार बढ़ सके…

इन दिनों जब भारत की नई ई-कॉमर्स नीति को आकार देने की तैयारी की जा रही है, तब अमरीका सहित विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां नई ई-कॉमर्स नीति के तहत डाटा लोकलाइजेशन न किए जाने के लिए अपनी सरकारों के जरिए दबाव बनाने का प्रयास कर रही हैं। डाटा के देश में ही भंडारण के पीछे मकसद यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्तिगत जानकारी का संरक्षण हो सके और अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर उपभोक्ताओं का ही नियंत्रण रहे। नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत भविष्य में डाटा की वही अहमियत होगी, जो आज कच्चे तेल की है। गौरतलब है कि 19 जून को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने ई-कॉमर्स के विभिन्न पहलुओं पर इस क्षेत्र के उद्योग प्रतिनिधियों के साथ वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की विशेष बैठक आयोजित की। इस बैठक में ई-कॉमर्स नीति के मसौदे पर इस क्षेत्र की कंपनियों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए। पीयूष गोयल ने इस बात पर जोर दिया कि ई-कॉमर्स नीति के तहत छोटे खुदरा कारोबारियों के हितों का ध्यान रखा जाएगा। सरकार विदेशी कंपनियों को बहु ब्रांड खुदरा कारोबार में अनुमति नहीं देगी। ई-कॉमर्स कंपनियों को यह अनुमति नहीं दी जाएगी कि वे बाजार पर अधिकार करने के लिए बहुत सस्ते मूल्य पर आपूर्ति करें। ऐसी चूक करने वालों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई की जाएगी। सरकार छोटे कारोबारियों को सभी प्रकार की सहायता मुहैया कराएगी जिससे कि उनका कारोबार बढ़ सके।

इस बैठक में यह भी निर्धारित हुआ कि डाटा स्थानीयकरण नियमों को लेकर कंपनियों की चिंताओं को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक जांच-पड़ताल करेगा। निश्चित रूप से इस समय देश में ई-कॉमर्स नीति में बदलाव की जोरदार जरूरत अनुभव की जा रही है। केंद्र सरकार वर्तमान ई-कॉमर्स नीति को बदलने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई भी दे रही है। ई-कॉमर्स नीति में बदलाव के लिए केंद्र सरकार के उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा विचार-मंथन के लिए नई ई-कॉमर्स नीति का मसौदा विभिन्न पक्षों को विचार-मंथन के लिए जारी किया जा चुका है। इस मसौदे में ऐसी कुछ बातें खासतौर पर कही गई हैं, जिनका संबंध ई-कॉमर्स की वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराने से है, ताकि छूट और विशेष बिक्री के जरिए बाजार को न बिगाड़ा जा सके। मसौदे में कहा गया है कि यह सरकार का दायित्व है कि ई-कॉमर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा बाजार भी विफलता और विसंगति से बचा रहे। इस मसौदे के तहत ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा ग्राहकों के डाटा की सुरक्षा और उसके व्यावसायिक इस्तेमाल को लेकर तमाम पाबंदी लगाए जाने का प्रस्ताव है। इस मसौदे में ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार, बुनियादी ढांचा, नियामकीय और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे बड़े मुद्दे शामिल हैं। इस मसौदे में यह मुद्दा भी है कि कैसे ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के माध्यम से निर्यात बढ़ाया जा सकता है। नई ई-कॉमर्स नीति के इस मसौदे पर ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ-साथ विभिन्न संबंधित पक्षों ने सुझाव प्रस्तुत किए हैं। देश के उद्योग-कारोबार संगठनों ने यह साफ कर दिया है कि वे मसौदा नीति में पूरी तरह से सुधार चाहते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इसमें छोटे खुदरा कारोबारियों और ट्रेडर्स के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए। चूंकि ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश के मानक बदले गए हैं, जिससे ई-कॉमर्स कंपनियों में ढांचागत बदलाव की आवश्यकता है। ई-कॉमर्स नीति में सिर्फ विदेशी कारोबारियों को ही नहीं, बल्कि घरेलू कारोबारियों की भी अहम भूमिका होनी चाहिए। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि देश में खुदरा कारोबार में जैसे-जैसे विदेशी निवेश बढ़ा, वैसे-वैसे ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ती गई। निश्चित रूप से छलांगें लगाकर बढ़ते हुए देश के ई-कॉमर्स बाजार के लिए बदलते हुए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कारोबार परिदृश्य में नई ई-कॉमर्स नीति जरूरी है। हाल ही में प्रकाशित डेलॉय इंडिया और रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का ई-कॉमर्स बाजार वर्ष 2021 तक 84 अरब डालर का हो जाएगा। वर्ष 2017 में यह 24 अरब डालर का था । भारत में ई-कॉमर्स बाजार सालाना 32 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। निस्संदेह ई-कॉमर्स ने देश में खुदरा कारोबार (रिटेल सेक्टर) में क्रांति ला दी है। देश में इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की संख्या 60 करोड़ से भी अधिक होने के कारण देश में ई-कॉमर्स की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर देश बन गया है। दुनिया के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में भारत का हिस्सा 12 फीसदी है। ई-कॉमर्स बाजार की यह वृद्धि देश में बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण और मध्यम वर्ग के तेजी से बढ़ने की वजह से हो रही है। ऐसे महत्त्वपूर्ण आधारों के साथ-साथ भारत में वैश्विक डिजिटल कारोबार बढ़ने के और भी कई कारण हैं।

हाल ही में प्रकाशित ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2014 के बाद 36 करोड़ जनधन खाते खुले हैं और 25 करोड़ रुपे कार्ड जारी हुए हैं। पिछले पांच साल में मोबाइल बैंकिंग से लेन-देन 65 गुना बढ़ गए हैं। खासतौर से आधार, जियो और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण भारत तेजी से डिजिटल हुआ है। जीएसटी लागू होने के बाद 1.03 करोड़ औद्योगिक एवं कारोबारी इकाइयां कर भुगतान के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग कर रही हैं। छोटे गांवों में रहने वाले बेहद सामान्य लोग भी अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जाकर खबरें देखते हैं, दोस्तों से बात करते हैं, पैसों का लेन-देन करते हैं और खरीदारी करते हैं। जरूरी है कि देश की नई ई-कॉमर्स नीति बनाने के साथ-साथ डाटा संरक्षण कानून भी बनाया जाए। ये दोनों कानून बड़े पैमाने पर एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं। अगर इसका ध्यान नहीं रखा गया, तो एक-दूसरे से टकराव हो सकता है। ऐसे में नई ई-कॉमर्स नीति के तहत सरकार द्वारा भारत के बढ़ते हुए ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाना होगा।

सरकार द्वारा नई ई-कॉमर्स नीति के तहत देश में ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना होगा, जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है।  हम आशा करें कि मोदी-2 सरकार डेटा लोकलाइजेशन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर पीछे नहीं हटेगी। साथ ही सरकार ई-कॉमर्स कंपनियों तथा देश के उद्योग-कारोबार से संबंधित विभिन्न पक्षों के हितों के बीच उपयुक्त तालमेल के साथ अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करने वाली नई ई-कॉमर्स नीति शीघ्र घोषित करेगी। हम आशा करें कि नई ई-कॉमर्स नीति देश की विकास दर को बढ़ाने में भी प्रभावी भूमिका निभाएगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App