उपचुनाव के साए

By: Jun 6th, 2019 12:05 am

चार सांसदों को दिल्ली भेजकर हिमाचल में दो उपचुनावों में भाजपा प्रत्याशियों का टिकट महंगा हो गया है। जाहिर है उम्मीदों की राजनीति में पलक पांवड़े बिछाए कार्यकर्ताओं के लिए अपनी महत्त्वाकांक्षा को रोक पाना कठिन हो चला है। ऐसे में मुख्यमंत्री जयराम ने जिस ग्राउंड रिपोर्ट का जिक्र किया है, उसे समझना होगा। यह राजनीति के तेवर और तराने बदलने का अंदाज है और उस बदली हुई जमीन पर चलने का यथार्थ, जो अब लोकसभा चुनावों ने पेश कर दिया है। हिमाचल में राजनीतिक संस्कृति बदलने का अवसर, साहस व ताकत स्वयं मुख्यमंत्री के पास है, इसलिए उनके सख्त मिजाज का असर देखा जाएगा। जयराम ठाकुर इशारों-इशारों में सोशल मीडिया की अनुगूंज में स्वयंसिद्ध होते नेताओं का खोखलापन भी उजागर करते हैं, तो ‘छपास से दिखास’ के जिक्र में भाजपा की चुनौतियों की घंटी बजा देते हैं। प्रदेश में उपचुनावों के खेत में बेवक्त फसल काटने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और इसमें शरीक भाजपा की नेतागिरी नई पोशाक में फंसी है। पच्छाद उपचुनाव हो सकता है भाजपा के शालीन चेहरे की मर्यादा में हो जाए, लेकिन धर्मशाला में सियासत की सराय में मेहमान और अरमान बढ़ गए हैं। किशन कपूर के सांसद बनने का रुतबा अब उपचुनाव को सिर पर ओढ़ने का सबब बन चुका है, तो भाजपा की खिड़कियां हर ओर खुल रही हैं। यह दीगर है कि राजनीतिक परिपक्वता के मूल्यांकन में दीवार पर लगी हर तस्वीर टेढ़ी है। जो उछल रहे हैं, उनकी तासीर में इतना दम नहीं कि पार्टी की प्रतिष्ठा को ढो सकें और न ही यह उपचुनाव इतना अंधा हो जाएगा कि किसी के सिर पर भाजपा की विरासत रख दे। अंततः यह मुकाबला है और सामने कुछ सवाल लहरा रहे हैं। ये सवाल वर्तमान सरकार में वजीर रहे किशन कपूर के इर्द-गिर्द रहे हैं और संसद में पहुंचने के बाद उभरे हैं। बेशक उपचुनाव तक सरकार का राजनीतिक कारोबार इस हलके में बढ़ेगा और इसी की तारीफ में पहली बार जनमंच सजेगा। मुद्दों की कड़वाहट भले ही संसदीय चुनावों की दहलीज न लांघ पाई या मोदी चमत्कार में सारी जनता निहाल हो गई, लेकिन उपचुनाव के जरिए भाजपा को न केवल अपना रिपोर्ट कार्ड देना है, बल्कि इसे पेश करने वाला भी देना है। प्रत्याशियों का चयन अब पुराने सिक्कों को चलाने का धर्म नहीं रहा और न ही सियासत अब बासी कढ़ी में उबाल देख रही है। जनभावनाओं और जनापेक्षाओं के तराजू पर राजनीतिक शख्सियत का फैसला अब कड़ा हो गया है। हिमाचल के उपचुनावों में लोकसभा चुनावों के संदेश भी नत्थी हैं और जहां जनता ने साफतौर पर जातिवाद, परिवारवाद व क्षेत्रवाद के नारों को नकार दिया है। इसलिए धर्मशाला उपचुनाव की पैरवी में जाति-वर्ग या परिवार की दलीलें पेश हुईं, तो पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे को नजरअंदाज करने की हानि उठानी पड़ेगी। बहरहाल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने उपचुनाव की तरंगों में पार्टी अनुशासन का जहाज उतार कर बता दिया है कि किसी नेता के बनाए समीकरणों से भाजपा का भविष्य तय नहीं होगा, बल्कि हर चुनाव में धुरी बदलने का माद्दा पार्टी रखती है। भाजपा उपचुनावों के मार्फत कितनी सशक्त होगी, इसका पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री ने कुछ नेताओं से बुनियादी सवाल पूछ लिया है। यह विडंबना है, हमारे जनप्रतिनिधित्व प्रक्रिया का दोष या वोट की राजनीति का खोट कि नेताओं की काबिलीयत केवल स्वघोषित मुहावरों में समझी जाती है। जनता अगर नोटा का इस्तेमाल बढ़ा रही है, तो नेताओं की जमात से कुछ तो निराशा रहती होगी।

 


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