जानलेवा बीमारी से वहां कई बच्चों की मौत हो चुकी है। हर ओर भ्रम फैलाया जा रहा था कि लीची के कारण यह बीमारी फैली। यही वजह है कि इस सबका असर हिमाचल में लीची के कारोबार पर पड़ा है। असर इतना बुरा हुआ है कि हिमाचल में इस सीजन में लीची का कारोबार 40 फीसदी घट गया है…
बिहार में चमकी बुखार कहर बरपा रहा है। ऐमंडियों में जहां कारोबारी लीची को हाथ लगाने से भी कतरा रहे हैं, तो लोग डर के मारे लीची खाने से परहेज कर रहे हैं। अमूमन 100 रुपए किलो बिकने वाली लीची लोग आधे दाम पर भी खरीदने का तैयार नहीं हैं। सोचा नहीं था कभी की फलों की रानी कही जाने वाले लीची को लोग देखेंगे तक नहीं , वजह एक गलत फहमी। अपनी माटी टीम के पास हमारे सैकड़ों पाठकों ने सवाल किया था कि आखिर सच क्या है। क्या लीची को नहीं खाना चाहिए। इसी ज्वलंत मुददे की पड़ताल के लिए हमारी टीम ने एक्सपर्ट्स से बात की। हिमाचल के विशेषज्ञ मानते हैं कि लीची से चमकी बुखार फैलने की बात इससे दुकानदार व बागबान परेशान दिख रहे हैं।
बागबानों की उड़ी हवाइयां
लीची की बिक्री में आई मंदी से उन बागबानों की हवाइयां उड़ हुई हैं, जिन्होंने व्यापक स्तर पर लीची के बाग लगाए हैं। प्रदेश के कई इलाकों में लीची की बिक्री में करीब 35 फीसदी तक की गिरावट आई है। लीची का सीजन केवल 20 से 25 दिन का होता है। इसके बाद लीची खराब होना शुरू हो जाती है। इस बार लीची की बंपर फसल होने से बागबानों को अच्छा मुनाफा होने की उम्मीद थी, लेकिन चमकी बुखार ने लीची की चमक फीकी कर दी है। लीची को लेकर कोई डरने वाली बात नहीं है। कमजोर व कुपोषण के शिकार बच्चों द्वारा कच्ची लीची खाने से बुखार का टॉक्सिन प्रभावी हो सकता है। ‘अधिकतर उन बच्चों पर ही इसका असर हुआ है, जो लीची के बागीचों में घूमते रहे व कच्ची लीची खाते रहे। ऐसे में हिमाचल में लीची को लेकर कोई समस्या नहीं है’
डा. पुष्पेंद्र वर्मा, महामारी रोग विशेषज्ञ
भुंतर की गुड्स सोसायटी का फैसला
बाहरी राज्यों के कारोबारियों को जिला कुल्लू की भुंतर मंडी से खरीदे हुए उत्पादों को ले जाने में जीपें गुड्स ट्रासपोर्ट सोसायटी भी उपलब्ध करवाएगी। भुंतर की फल एवं सब्जी गुड्स ट्रांसपोर्ट को-आपरेटिव सोसायटी ने ऐलान किया है कि बाहरी व्यापारियों को समय पर वाहन उपलब्ध करवाने में स्थानीय जीप व ट्रक यूनियन आनाकानी करता है तो सोसायटी अपने स्तर पर वाहनों को उपलब्ध करवाएगी। लिहाजा, सोसायटी के ऐलान के बाद यहां के जीप आपटरेटर यूनियन के साथ टकराव भी देखने को मिल सकता है। बता दें कि पिछले कुछ सालों में व्यापारियों द्वारा खरीदे गए उत्पादों को ले जाने को लेकर खासा विवाद होता रहा है। मंगलवार को भुंतर की फल एवं सब्जी गुड्स ट्रांसपोर्ट को-आपरेटिव सोसायटी की एक बैठक शमशी में आयोजित की गई। इस बैठक में भी इस मसले को लेकर चर्चा हुई। प्रधान खुशहाल ठाकुर की अध्यक्षता में साल भर के कार्यों का लेखा-जोखा रखा गया तो अन्य समस्याओं के बारे में भी चर्चा की गई। प्रधान खुशहाल ठाकुर ने कहा कि स्थानीय जीप यूनियन से भी तालमेल हेतु बैठक की जाएगी और रणनीति बनाई जाएगी। जानकारों के अनुसार सब्जी मंडी के इस घमासान के कारण बाहरी राज्यों के कारोबारी भुंतर में कारोबार करने से घबरा रहे हैं और उत्पादकों को उनके उत्पादों के लिए खरीददार नहीं मिल रहे हैं। व्यापारियों के आरोप है कि उनके समय पर उत्पादों से यहां से बाहरी राज्यों को ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध नहीं करवाए जाते हैं और न ही उनके अपने वाहनों से उत्पादों को ढोने की अनुमति मिलती। सोसायटी की बैठक में उपप्रधान खजाना राम, कोषाध्यक्ष अविनाश कुमार, सदस्य प्रेम कुमार व राम लाल आदि ने भी विचार रखे।
स्टाफ रिपोर्टर, भुंतर
कोटखाई-रोहडू में बनेंगे सीए स्टोर
जिला शिमला के ऊपरी क्षेत्र में तीन सीए स्टोर व एक पेकिंग ग्रेडिंग स्टोर के लिए 57 करोड़ आवंटित करने के लिए जिला के बागबानों ने प्रदेश मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व प्रदेश मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा का आभार व्यक्त किया है। रोहडू सीए स्टोर की भंडारण की क्षमता बढ़ाने के लिए 18 करोड़, जरोल टिक्कर सीए स्टोर की भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए 18 करोड़, गुम्मा कोटखाई सीए स्टोर की भण्डारण क्षमता बढ़ाने के लिए 16 करोड़, टूटू पानी पैकिंग ग्रेडिंग स्टोर के लिए पांच करोड़ आवंटित कर दिए गए है।
रोहित सेम्टा, ठियोग
लीची को फलों की रानी रहने दीजिए
खरी-खरी
लेखिका कंचन शर्मा, शिमला
चमकी बुखार एक तरह का मस्तिष्क ज्वर यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम है। यह एक संक्रामक बीमारी है जिसके वायरस खून में पहुंचते ही अपना प्रजनन शुरू कर देते हैं। वायरस मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन पैदा कर देते हैं…
एक तरफ भारत में बुलेट ट्रेन और दूसरे ग्रहों पर बसने की बात हो रही है और दूसरी ओर हम बिहार में चमकी बुखार जैसे रोग के आगे हाथ खड़े कर रहे हैें। यह बुखार मासूम कई बच्चों को निगल रहा है। यह हैरानी व दुख का विषय तो है ही, साथ ही हिंदोस्तान की बदहाल मेडिकल व्यवस्था की पोल भी खोल रहा है। चमकी बुखार एक तरह का मस्तिष्क ज्वर यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम है। यह एक संक्रामक बीमारी है जिसके वायरस खून में पहुंचते ही अपना प्रजनन शुरू कर देते हैं। वायरस मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन पैदा कर देते हैं। इस संक्रमण से ग्रस्त रोगी का शरीर अचानक सख्त हो जाता है। इसकी चपेट में ज्यादातर बच्चे आते हैं। यही वजह है कि कई बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। दुखद ये है कि कई डाक्टर इसे कुपोषण तो कई लीची का प्रकोप बताने में लगे हैें। सवाल यह कि जिन बच्चों को दो जून रोटी नहीं मिल पाती, उन्हें दो सौ रुपए किलो लीची कहां से मिल रही होगी। खास यह भी लीची में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ है और भी कई गुण हैं। ऐसे में कुपोषित बच्चों की मौत का जिम्मेदार लीची को ठहराना गलत है। कुल मिलाकर आज लीची को बदनाम कर अपने कर्त्तव्यों से पल्ला झाड़ा जा रहा है,यह गलत बात है। केंद्र और राज्य सरकारों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर अपनी नाकामियों पर क्यों लीची पर तोहमत लगाए जा रहे हो! वह फलों की रानी है उसे फलों की रानी ही रहने दीजिए।
30 वीसी कर रहे इनकम डबल करने पर चर्चा
किसानों की इनकम डबल करने के लिए देश भर में हर स्तर पर कसरत चल रही है। इसी कड़ी में पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय में महामंथन हुआ। बीते 28 और 29 जून को यहां देश भर के कृषि विश्वविद्यालयों के 30 कुलपतियों इस विषय पर चर्चा की। चर्चा का मुख्य बिंदु किसानों की आय बढ़ाना रहा। इसके अलावा शिक्षा,प्रसार और मौसम में आ रहे बदलावों का खेती के क्षेत्र में फायदा उठाने पर भी विचार विमर्श हुआ। यहां प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव बीके अग्रवाल ने बतौर मुख्यातिथि हाजिरी भरी।
प्रो. अशोक कुमार सरयाल, कुलपति, प्रदेश कृषि विवि
पोलीहाउस के लिए एक हजार किसानों के आवेदन पेंडिंग
राज्य सरकार ने पोलीहाउस लगाने के लिए 85 प्रतिशत आर्थिक मदद करने का किया है दावा। इस बार भी केंद्र से पोलीहाउस योजना के तहत मिला है कम बजट शिमला जिला में लगभग एक हजार से भी ज्यादा किसान व बागबान पोलीहाउस लगाने के लिए बजट का इंतजार कर रहे हैं। हैरत है कि राज्य सरकार की ओर से मिलने वाला यह बजट अभी तक जिला स्तर पर किसानों को नहीं मिला है। जानकारी के अनुसार जिला के इन किसानों ने पोलीहाउस लगाने के लिए छह महीने से भी पहले आवेदन किए थे, लेकिन जिला कृषि विभाग किस वजह से इन किसानों को समय पर बजट नहीं दे पा रहे हैं, यह समझ से परे है। जबकि राज्य सरकार की ओर से किसानों को पोलीहाउस लगाने के लिए 85 प्रतिशत बजट देकर आर्थिक सहायता देती है। अभी तक जिला के हजारों किसानों को इस सुविधा का फायदा मिला है। वहीं, इस बार अभी तक एक हजार से भी ज्यादा आवेदनों पर विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। उधर आवेदन करने वाले किसानों को भी यही जवाब मिल रहा है कि जल्द उनके आवेदन वेरिफाई कर बजट स्वीकृत किया जाएगा। जिला के किसानों-बागबानों का आरोप है कि हर किसान के साथ केवल छल ही किया जाता है, लेकिन जब जरूरत होती है, तो कोई भी बजट समय पर जारी नहीं किया जाता है। इस बार पोलीहाउस के लिए जिला कृषि विभाग ने केंद्र सरकार से भी बजट की मांग नहीं की है। अंदेशा जताया जा रहा है कि एक वजह यह भी है कि इस बार समय पर किसानों को पोलीहाउस लगाने के लिए बजट नहीं मिल रहा है।
बजट की नहीं कमी
उधर, जिला कृषि विभाग का तर्क है कि पोलीहाउस योजना के तहत बजट की कोई कमी नहीं है। बहुत जल्द जिन किसानों के आवेदन आए हैं, उन्हें बजट जारी कर दिया जाएगा।
– प्रतिमा चौहान, शिमला
माटी के लाल
सुंदर सिंह मेहता फोन नं. 98057-58729
एसएस मेहता ने बना डाला टमाटर का पाउडर
सोलन के प्रगतिशील किसान सुंदर सिंह मेहता ने अपनी रचनात्मक सोच व विधि से टमाटर पाउडर तैयार किया है। यह टमाटर पाउडर गुणवता व स्वाद में ठीक स्थूल टमाटर की तरह है।
बनाने की विधि…
- जब टमाटर सीजन प्रारंभ होता है तब सामान्य रूप में पके हुए टमाटरों को लेकर उन्हें साफ पानी से धोया जाता है। फिर जिस स्थान पर टमाटर पौधे से जुड़ा होता है, वहां पर से उसे गोलाई में काटकर फैंककर अलग रखा जाता है।
- अब प्लास्टिक के बरतन में पानी डाला जाता है, पानी में थोड़ा सा नमक मिलाया जाता है।
- टमाटर को गोलाई में पीस काटकर नमक वाले पानी में डालकर बीज निकाले जाते हैं। निकाले गए बीज वाले पीस को अलग करके उसे 8-10 दिन तक पतली कपड़े की चादर से ढ़ककर सुखाया जाता है। जब वह सूख जाएं तब मिक्सी या गराइंडर में पीसकर पाउडर तैयार किया जाता है।
पैकिंग विधि…
अब टमाटर पाउडर को कांच या प्लास्टिक के छोटे डिब्बों में इस तरह भरा जाता है। डिब्बों को साफ करके उनको सुखाया जाता है, तब डिब्बों को उल्टा करके हींग का धूंआ गुजारा जाता है। इसके बाद टमाटर पाउडर भरा जाता है।
उपयोग में लाने की विधि…
जब दाल-भाजी को तड़का लगाया जाता है, तब तड़के के तैयार हो जाने के बाद तुरंत उसी समय तड़के के साथ ही इसे डाला जाता है, तथा तड़के के साथ टमाटर पाउडर मिला दिया जाता है।
यह टमाटर पाउडर-भाजी में टमाटर की तरह गुण व स्वाद प्रदान करता है।
सौरभ शर्मा-सोलन
सीधे खेत से
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किसान बागबानों के सवाल
1 धान की रोपाई में कितनी तरह के कीड़े काट सकते हैं। किसानों को इसके उपचार बताएं?
नरेंद्र,मंडी