ओवरलोडिंग ने फिर ली बेगुनाहों की बलि

By: Jun 21st, 2019 12:03 am

42 सीटर बस में ठूंस-ठूंस भरी थीं 70 सवारियां

पहले से ही ब्लैक स्पॉट घोषित था ब्योट मोड़

कुल्लू – नाम बड़े और दर्शन छोटे, औट-लुहरी सड़क पर यह कथनी उचित बैठी है। इसे दर्जा तो राष्ट्रीय राजमार्ग-305 का मिला है, लेकिन सड़क की हालत संपर्क मार्ग से भी बद्तर है। निजी बसों में लगातार हो रही ओवरलोडिंग भी हादसे का कारण मानी जा रही है।  औट-लारजी व घाटी को गांवों को जोड़ने वाली यह सड़क पूरी तरह से जोखिम भरी है। इसका ताजा उदाहरण बंजार के ब्योट मोड़ पर हुआ बस हादसा है। ब्लैक स्पॉट घोषित इस मोड़ पर सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं हैं। हैरानी तो इस बात की है कि यहां पर रेलिंग तो लगाई है, लेकिन रेलिंग के बीच इस ब्लैक स्पॉट पर खुला छोड़ा गया है, जिससे एनएच आथॉरिटी की लापरवाही भी उजागर हुई है। कुल्लू जिला में ओवरलोडिंग के कारण बस हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे। लगघाटी बस दुर्घटना का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि बंजार उपमंडल के ब्योट मोड़ में बस दुर्घटना ने परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठा दिए। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि यदि ओवरलोडिंग पर पूर्ण पाबंदी लगा दी गई है, तो विभाग पाबंदी को लागू क्यों नहीं करवा पा रहा। बता दें कि 42 सीटर बस में 70 से अधिक सवारियां बैठाई गई थीं। अब तक दुर्घटना के पीछे ओवरलोडिंग और सड़क की दुर्दशा सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। जिला में अब तक जितने भी सड़क हादसे हुए हैं, वहां पर ओवरलोडिंग ही बड़ा कारण रहा है। बता दें कि ब्योट हादसे में 36 लोगों की जिंदगियां चली गई हैं, जबकि 37 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। इससे पहले भी जिला कुल्लू में हादसे हुए हैं, जिनका कारण ओवरलोडिंग रहा है, लेकिन परिवहन और पुलिस विभाग इस पर कोई रोक नहीं लगा रहा है।

यहां हुए बड़े हादसे

* झीड़ी में 2013 में निजी बस हादसा, 25 से अधिक लोगों की मौत। बस 42 सीटर थी, जिसमें 60 सवारियां थीं

* मणिकर्ण के सरसाड़ी में वर्ष 2015 में बस हादसा हुआ बस में 64 लोग सवार थे, जिसमें 40 से अधिक मौतें

* अप्रैल, 2014 को शालंग में बस हादसा हुआ। बस 42 सीटर थी, जिसमें 50 से अधिक लोग सवार थे

महज 25 मिनट में चली गईं 36 जिंदगियां

कुल्लू  – घर जाने की जल्दी थी, लेकिन ब्योट मोड़ पर मौत अपना मुंह खोल बैठी थी और 36 जिंदगियां मात्र 25 मिनट में चली गईं। हादसे से गाड़ागुशैणी, वाहू, बछुट, मोहनी, जिभी, बालीचौकी के कई घरों में अंधेरा हो गया। मौत ने घर के एक सदस्य को ही नहीं निगला, बल्कि बाप-बेटी को भी मौत के घाट उतार दिया। हालांकि रोजाना घर जाने के लिए आभागे लोग बस की तरफ दौड़ पड़े थे, लेकिन ब्योट मोड़ के काल ने जिंदगियों को जिभी खड्ड  में पहुंचा दिया। यह बंजार घाटी का सबसे बड़ा हादसा है, जिसने समस्त बंजार को गमगीन कर दिया। एक गांव के तीन से चार लोगों की मौत हो गई है। बता दें कि हादसे की सूचना मिलते ही पूरी बंजार घाटी और मंडी जिला के बालीचौकी क्षेत्र के लोग बंजार अस्पताल पहुंच गए थे और अस्पताल में अपनों की तलाश कर रहे थे। जैसे ही शवों और घायलों को बंजार अस्पताल पहुंचाया, तो डाक्टरों की कमी भी सामने पेश आई। लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर जिला प्रशासन कुल्लू व स्वास्थ्य विभाग से डाक्टर मांगे। इसके बाद तुंरत प्रशासन व डाक्टरों की टीम घटनास्थल व बंजार अस्पताल पहुंच गई। बाकायदा कुल्लू जिला की 12 एंबुलेंस और मंडी जिला से दो एबुलेंसे भी मौके के लिए भेजी गईं। प्रशासन के घटनास्थल पर पहुंचने से पहले क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने अपने स्तर पर घायलों की मदद करते हुए उन्हें पहाड़ी से सड़क तक पहुंचाया। यही नहीं, जब एंबुलेंस की कमी दिखी तो बंजार घाटी के लोगों ने अपने निजी वाहनों में घायलों को क्षेत्रीय अस्पताल कुल्लू पहुंचाया।

पिता-पुत्री की मौत से सदमें में बंजार

घटना में एक बेटी व बाप ने अपनों का भी साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया है। बंजार घाटी सहित मंडी व समूचे कुल्लू में पिता-पुत्री की हादसे में मौत के बाद हर कोई सदमे में है।


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