ओवरहैड टैंक बनाया; न पाइपें,न ही पंप हाउस

बिझड़ी—सरकारी धन की फिजूलखर्ची की इससे बढ़कर हद और क्या हो सकती है कि आईपीएच विभाग ने एक ऐसी स्कीम के नाम पर दस लाख रुपए खर्च कर डाले जिसका आज दिन तक कोई अता-पता ही नहीं। मामला सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग के बड़सर डिवीजन का है। यहां विभाग के अधिकारियों ने रैली पंचायत में बिना अस्तित्व वाली करनेहड़ा-फगोटी भटेड़ स्कीम के नाम पर दस लाख रुपए एक टैंक बनाने के लिए फूंक डाले। विभाग ने एक ऐसी स्कीम का हवाला देकर करीब दस लाख की लागत का ओवरहैड टैंक बनवा दिया जिस स्कीम के लिए आज तक न पंप हाउस बना और न ही पाइप लाइन बिछी। यानी स्कीम का अता-पता नहीं लेकिन उसके नाम पर सीधे दस लाख खर्च कर डाले। विभागीय अधिकारियों द्वारा की गई इस फिजूलखर्ची की हद यही तक खत्म नहीं होती है। जिस ओवरहैड टैंक के लिए विभाग ने दस लाख रुपए जैसी एक बड़ी रकम खर्च की उस टैंक का पिछले छह सालों से कोई उपयोग नहीं किया गया है। यानि दस लाख रुपए खर्च करने के बाद भी इस ओवरहैड टैंक को विभाग ने सात सालों से उपयोग में लाने का कोई प्रयास नहीं किया। अब आलम यह है कि बिना पाइप लाइन और बिना पानी के लाखों का टैंक सफेद हाथी साबित हो रहा है। ओवरहैड टैंक का निर्माण वर्ष 2011-12 में हुआ था तथा अब निर्माण के सात साल बीत जाने के उपरांत भी विभाग ने एक दफा भी लाखों रुपए की लागत से बने इस टैंक का लाभ जनता को देने की कोशिश नहीं की। आलम ऐसा  है कि लाखों की लागत से बने इस टैंक में पानी की एक बूंद तक नहीं डाली जा रही है। टैंक तक पानी पहुंचाने के लिए न तो पाइप लाइन बिछी है और न ही स्कीम का कोई पंप हाउस बना है। मसला स्पष्ट है कि जब स्कीम ही नहीं बनी तो पानी कहां से आएगा। फिलहाल ऐसी स्थिति बनी है कि शिलान्यास के बाद से करनेहड़ा-फगोटी भटेड़ स्कीम का काम भी विभाग ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इससे ऐसा लग रहा है, मानो विभाग को सिर्फ  टैंक बनाने तक की फिकर थी, स्कीम को चलाने की नहीं। आईपीएच विभाग बड़सर डिवीजन के एक्सईएन जितेंद्र कुमार गर्ग कहना है कि इस स्कीम तथा इसके तहत बनाए गए ओवरहैड टैंक संबंधी मामला मेरे ध्यान में नहीं है। विभाग इसका पता लगाएगा तथा कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कोशिश करेगा।