कुंडलिनी जागरण से अलौकिक शक्तियां

By: Jun 22nd, 2019 12:05 am

अर्थात कुंडलिनी शक्ति मूलाधार चक्र से ऊपर उठकर मणिपूर चक्र से होती हुई, हृदयाकाश और भ्रूमध्य (आज्ञा चक्र) को पार करती हुई सहस्रार चक्र में अपने पति शिव के साथ विहार करती है। योगीजन और योग की साधना करने वाले साधक उपर्युक्त चक्रों पर ध्यान लगाकर प्राणायाम के द्वारा सोई हुई कुंडलिनी शक्ति को जगाने का प्रयत्न करते हैं। शरीर और मन की शुद्धि होने पर, ब्रह्मचर्य पालन से प्राणों पर नियंत्रण हो जाने से जब सोई हुई कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है तो उसका मुख या फन जो नीचे की ओर होता है, वह साधना से ऊपर की ओर उठ जाता है…

-गतांक से आगे…

अर्थात कुंडलिनी शक्ति मूलाधार चक्र से ऊपर उठकर मणिपूर चक्र से होती हुई, हृदयाकाश और भ्रूमध्य (आज्ञा चक्र) को पार करती हुई सहस्रार चक्र में अपने पति शिव के साथ विहार करती है। योगीजन और योग की साधना करने वाले साधक उपर्युक्त चक्रों पर ध्यान लगाकर प्राणायाम के द्वारा सोई हुई कुंडलिनी शक्ति को जगाने का प्रयत्न करते हैं। शरीर और मन की शुद्धि होने पर, ब्रह्मचर्य पालन से प्राणों पर नियंत्रण हो जाने से जब सोई हुई कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है तो उसका मुख या फन जो नीचे की ओर होता है, वह साधना से ऊपर की ओर उठ जाता है। फिर कुंडलिनी ब्रह्म नाड़ी के अंदर ऊपर की ओर यात्रा आरंभ कर देती है। जितने भी साधन, परिश्रम, तपस्या एवं योग क्रियाएं हैं, वे सब इस सोई हुई कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने के लिए हैं। जिस साधक की कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है, उसमें अनायास रूप से अद्भुत अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं। ऐसी स्थिति में वह रहस्यमय विद्याओं का ज्ञाता हो जाता है अथवा वह जिस देवी-देवता की सिद्धि करना चाहता है, वह उसे शीघ्र मिल जाती है। ऐसे साधक में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार का नाश हो जाता है। उसकी स्मरण शक्ति बहुत प्रखर हो जाती है। उसे दिव्य सिद्धियों की प्राप्ति होती है और उच्चलोक के देवी-देवताओं के दर्शन होते रहते हैं। सिद्ध योगियों और महापुरुषों से भारतभूमि कभी खाली नहीं रही। कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में जिस महापुरुष ने अनेक साधनों के साथ-साथ तांत्रिक साधना से भी सिद्धि प्राप्त किया था, उनका यश संपूर्ण विश्व में व्याप्त हो गया था। वह सिद्ध महापुरुष स्वामी विवेकानंद के गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस थे। स्वयं भैरवी ब्राह्मणी ने उनसे सभी तांत्रिक साधनाएं कराई थीं। उनके स्वयं के शब्दों में, ‘मुख्य-मुख्य चौंसठ तंत्रों में जो-जो साधनाएं बताई गई हैं, उन सभी साधनाओं का अभ्यास करते समय अनेक साधक पथभ्रष्ट हो जाते हैं, लेकिन माता की कृपा से मैं उन सभी साधनाओं को पूरा कर सका। मुझे किसी भी साधना के लिए तीन दिन से अधिक समय नहीं लगा।’ इस बात से यह सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि तंत्र साधनाएं बहुत कठिन होती हैं और इनमें पथभ्रष्ट होने का भय बना रहता है। इस परीक्षा में सफल होने पर ही सिद्धि की प्राप्ति होती है। जो साधक कुंडलिनी को जाग्रत करने में सफल हो जाते हैं, उनसे कोई भी सिद्धि अछूती नहीं रहती। वे जो भी सिद्धि पाना चाहते हैं, उसे प्राप्त कर लेते हैं।     


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