गजेट्स से युवाओं की रीढ़ को नुकसान

By: Jun 22nd, 2019 12:03 am

स्पाइन सेवाओं के प्रमुख

डाक्टर अरुण भनोट का कहना है कि 20 से 40 साल की उम्र वाले प्रोफेशनल्स के बीच रीढ़ से जुड़ी समस्याएं अधिक देखी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि रिपीटीटिव स्ट्रेस इन्जरी को बार-बार एक ही प्रकार की गतिशीलता और ओवरयूज की वजह से मांसपेशियों और नसों में दर्द के रूप में परिभाषित किया जाता है…

जो युवा गजेट्स का इस्तेमाल अधिक करते हैं और लंबे समय तक एक ही पोजीशन में बैठकर काम करते हैं, उन्हें ‘रिपीटीटिव इन्जरी’ होने की आशंका बढ़ जाती है। इस प्रकार के 80 प्रतिशत मामलों का समाधान जीवनशैली में बदलाव से किया जा सकता है, जैसे अच्छा पोषण और भरपूर व्यायाम आदि अपनाकर। स्पाइन सेवाओं के प्रमुख डाक्टर अरुण भनोट का कहना है कि 20 से 40 साल की उम्र वाले प्रोफेशनल्स के बीच रीढ़ से जुड़ी समस्याएं अधिक देखी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि रिपीटीटिव स्ट्रेस इन्जरी को बार-बार एक ही प्रकार की गतिशीलता और ओवरयूज की वजह से मांसपेशियों और नसों में दर्द के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस स्थिति को ओवरयूज सिंड्रोम, वर्क रिलेटड अपर लिंब डिसॉर्डर या नॉन स्पेसिफिक अपर लिंब के रूप में भी जाना जाता है। डाक्टर भनोट कहते हैं इस आयुवर्ग वाले अधिकतर लोग लंबी दूरी की यात्रा करके या ड्राइव करके दफ्तर पहुंचते हैं और इसके बाद पूरा दिन अधिकतर समय एक जगह बैठकर काम करते रहते हैं।  वे कम्पयूटर या लैपटॉप पर काम करते हैं, लंबी मीटिंग के लिए बैठते हैं और अपने मोबाइल पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं।  घर पहुंचने के बाद ये लोग किताबें पढ़ने के लिए भी गजेट्स का इस्तेमाल करते हैं और पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं। स्क्रीन का इतना लंबा और अनावश्यक इस्तेमाल रीढ़ की हड्डी पर तनाव डालता है।  डाक्टर भनोट बताते हैं इससे लिगामेंट में स्प्रेन का खतरा बढ़ जाता है जो वर्टिब्रा को बांधकर रखता है। ऐसे में मांसपेशियों में कड़ापन आने लगता है और डिस्क में समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। रीढ़ इस्तेमाल में रहती है तो स्वस्थ बनी रहती है, लेकिन निष्क्रिय जीवनशैली के कारण आजकल युवाओं को ये समस्या हो रही है। वे ऐसा जीवन जी रहे हैं, जिसमें गजेट्स पर निर्भरता काफी ज्यादा बढ़ गई है। अधिकतर युवाओं में देखी जा रही आम समस्या है सर्वाइकल स्पाइन और पीठ की जैसे कि स्लिप डिस्क, रिपीटीटिव स्ट्रेस इन्जरी, सोर बैक और लिगामेंट की चोट।  डाक्टर का मानना है पिछले 12 महीनों में उनके पास हर महीने औसतन 15-20 प्रतिशत ऐसे मरीज आ रहे हैं, जो 40 साल से कम उम्र के हैं, लेकिन उन्हें स्पाइन की गंभीर समस्या हो चुकी है और इनमें रिपीटीटिव स्ट्रेस इन्जरी सबसे ज्यादा आम है। सबसे जरूरी है समय पर समस्या की पहचान और समाधान करने के लिए जीवनशैली में बदलाव किया जा सकता है। इसके तहत अच्छा पोषण, हल्का व्यायाम और नियमित अंतराल में थोड़ी-थोड़ी देर तक टहलकर सिटिंग टाइम को कम करके दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।


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