गीता रहस्य

By: Jun 1st, 2019 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

जहां-जहां मनुष्य का मन वेग से पहुंचता है, वह ब्रह्म उससे पहले ही वहां विराजमान है। इस परमेश्वर को चक्षु आदि इंद्रियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। केवल वेदाध्ययन से वेदों का ज्ञान प्राप्त करके यज्ञ और कठोर योगाभ्यास के बाद किसी योगी के हृदय में यह ब्रह्म प्रकट होता है।वह ब्रह्म द्वापर में श्रीकृष्ण महाराज के अंदर प्रकट था जिसे मूढ़ जन नहीं देख सकते थे…

गतांक से आगे…

श्रीकृष्ण के अंदर प्रकट हुए ईश्वर को नहीं जानते, केवल श्रीकृष्ण महाराज के मनुष्य शरीर को जानते हैं। यही अज्ञान है, यही अविवेक है। वस्तुतः निराकार ब्रह्म मनुष्य की आंखों से इस कारण भी दिखाई नहीं देता,क्योंकि वह ईश्वर इंद्रियों का विषय ही नहीं है वह तो तपस्या द्वारा ज्ञान का विषय है। इस विषय में यजुर्वेद मंत्र 40/4 में स्पष्ट कहा ‘ अनेजदेकम पूर्वमर्षत’ अर्थात वह ब्रह्म अद्वितीय है। अर्थात उसके समान दूसरा ब्रह्म न था और न होगा। वह कंपन रहित अर्थात सदा एक रस रहने वाला, मन के वेग से भी अधिक वेगमान है। जहां-जहां मनुष्य का मन वेग से पहुंचता है, वह ब्रह्म उससे पहले ही वहां विराजमान है। इस परमेश्वर को चक्षु आदि इंद्रियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। केवल वेदाध्ययन से वेदों का ज्ञान प्राप्त करके यज्ञ और कठोर योगाभ्यास के बाद किसी योगी के हृदय में यह ब्रह्म प्रकट होता है। वह ब्रह्म द्वापर में श्रीकृष्ण महाराज के अंदर प्रकट था, जिसे मूढ़ जन नहीं देख सकते थे। श्लोक 9/12 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि अर्थहीन आशा, अर्थहीन कर्मों, अर्थहीन ज्ञान वाले तथा अज्ञानी पुरुष जो हैं वह राक्षसी और असुरों के जैसे मोहित करने वाली प्रकृति अर्थात स्वभाव को ही धारण किए हुए हैं।  भावः प्रकृति में रज, तम एवं सत्व तीन गुणों से यह शरीर एवं मन बुद्धि, चित्त बने हैं। जैसे ऋग्वेद मंत्र 10/35/1 में कहा कि मनुष्य के शरीर को धारण करके प्रायः साधारण प्राणी इन्हीं गुणों में विचरण करता है अर्थात रजोगुण से प्रभावित विषय विकारी, तमोगुण से प्रभावित आलस्य, निद्रा एवं पुरुषार्थ आदि न करना तथा सतोगुण से प्रभावित होकर जीव अहंकारी होता है। यही असुरी वृत्तियां हैं और इनको धारण करने वाले जीव अर्थात नर एवं नारी असुर कहलाते हैं। वस्तुतः ऐसे जीव अविद्याग्रस्त होते हैं। अविद्या क्या है, इसके विषय में योगशास्त्र सूत्र 2/5 में स्पष्ट वर्णन किया गया है। यजुर्वेद मंत्र 40/3 में भी परमात्मा ने समझाया है कि जीव जब माता के गर्भ से जन्म लेता है तब वह मनुष्य योनि में आता है।                              –


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App