जल्द बाहर आएंगे भाखड़ा डैम में डूबे मंदिर

By: Jun 27th, 2019 12:04 am

निजी क्षेत्र की भागीदारी से पुर्नस्थापित होंगे ऐतिहासिक मंदिर; दिल्ली के विशेषज्ञ कल से करेंगे सर्वे, चयनित जमीन का भी करेंगे निरीक्षण

 बिलासपुर —कहलूर रियासत के राजाओं द्वारा बसाए गए गोविंदसागर झील में जलमग्न मंदिरों की पुर्नस्थापना को लेकर अब अंतिम सर्वेक्षण होगा। इस बाबत 28 जून को दिल्ली से इंडियन ट्रस्ट ऑफ हैरिटेज डिवेलपमेंट एंड रूरल डिवेलपमेंट की पहली टीम बिलासपुर पहुंच रही है। यह टीम 30 जून तक जलमग्न मंदिरों को बाहर निकालकर चयनित जमीन पर स्थानांतरित करने के लिए संभावनाएं तलाशेगी और बाकायदा एक रिपोर्ट तैयार करेगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर ही जिला प्रशासन की ओर से धार्मिक पर्यटन निखार के लिए आगामी कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। अहम बात यह है कि जिला प्रशासन की ओर से मंदिरों के पुर्नस्थापन के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, जिसके लिए इच्छुक कंपनियों और फर्मों से आगामी 31 जुलाई तक डीपीआर व टेक्निकल बिड आमंत्रित की गई है। इसकी पुष्टि करते हुए जिलाधीश बिलासपुर राजेश्वर गोयल ने बताया कि इस मसले पर भाषा एवं संस्कृति विभाग से चर्चा के बाद दिल्ली की एक नामी संस्था से सर्वे करवाने का निर्णय लिया गया है जिसके लिए टीम बिलासपुर आएगी। यह टीम तीन दिन तक गोविंदसागर झील में जलमग्न मंदिरों पर सर्वे कर एक रिपोर्ट तैयार करेगी। उन्होंने बताया कि सर्वे करने वाली टीम यह भी देखेगी कि कितने मंदिरों को चयनित जमीन पर सुरक्षित पुर्नस्थापित किया जा सकता है। इसके साथ साथ टीम जिला प्रशासन द्वारा शहर के पास ही चिहिंत की गई लगभग 30 बीघा भूमि का भी जायजा लेगी। उन्होंने बताया कि लैंड ट्रांसफर को लेकर एडीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है। उल्लेखनीय है कि साठ के दशक में भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद पुराना बिलासपुर शहर भी जल के आगोश में समा गया था। 256 गांव पानी में डूबे थे और एक पूरी संस्कृति जल में समा गई थी। इस दौरान रियासतकालीन मंदिर भी डूब गए थे, जिनमें खनमुखेश्वर, सीताराम मंदिर, नर्वदेश्वर मंदिर, रंगनाथ मंदिर, शंकर मंदिर, खाकीशाह वीर्थन मंदिर, हनुमान मंदिर सांढू, मंड़ीगढ़ ठाकुरद्वारा मंदिर, रामबाग मंदिर, दिंदयूती मंदिर, धुनी मंदिर, खूहसीता मंदिर, बीड़े की बायं का मंदिर, गोपालजी मंदिर, बुद्धिपुरा मंदिर इत्यादि शुमार हैं। शिखर शैली के इन पौराणिक मंदिरों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए आज तक कई योजनाएं बनीं, लेकिन कोई भी सिरे नहीं चढ़ पाई।


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