टांडा से हर हफ्ते दो बच्‍चे पीजीआई रैफर

By: Jun 26th, 2019 12:05 am

कांगड़ा—प्रीमेच्योर बच्चों के लिए टांडा मेडिकल कालेज में रेटिनोपैथी के इलाज में उपयोग होने वाली लेजर मशीन न होने से हर हफ्ते दो बच्चों को पीजीआई चंडीगढ़ रैफर करना पड़ता है। अलबत्ता डॉक्टर मनु शर्मा अपनी सेवाएं इस इलाज के लिए पूरी दक्षता के साथ दे रही हैं। बाकायदा उन्हें हाल ही में पीजीआई चंडीगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी सोसायटी की कान्फ्रेंस में बेस्ट स्टडी इन रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी के लिए बेस्ट पोस्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। हिमाचल प्रदेश में किसी भी सरकारी अस्पताल में लेजर मशीन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। परिणाम स्वरूप प्रीमेच्योर बेबी की रेटिनोपैथी की स्क्रीनिंग नहीं नहीं हो पाती और न ही इसे लेकर लोगों में कोई जागरूकता है। नतीजतन लोगों को इस बीमारी बारे कोई जानकारी नहीं होती, उन्हें तब पता चलता है जब बच्चा बड़ा होता है और कुछ देख नहीं पाता है। लिहाजा पहले 30 दिन में इलाज महत्त्वपूर्ण है। टांडा मेडिकल कालेज में डाक्टर मनु शर्मा इन बच्चों को जांच करती  हैं। अस्पताल के होस्टल दस बच्चों  में से दो को पीजीआई रैफर किया जाता है। डा. मनु  शर्मा ने बताया दो किलो से कम वजन वाले व 34 हफ्ते से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को अगर एक बार यह बीमारी हो गई और उसी समय इलाज नहीं हुआ तो जीवन भर बच्चे देख नहीं पाते हैं। डाक्टर मनु शर्मा मौजूदा समय में नागरिक अस्पताल कांगड़ा की एसएमओ है। डा. मनु शर्मा बताती हैं कि रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी प्रीमेच्योर बच्चों में होने वाली नई उभरती बीमारी है। हालांकि यह पहले भी थी, लेकिन अब इसके मामले बहुत ज्यादा सामने आने लगे हैं। इस बीमारी में बच्चे की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है। उन्होंने बताया कि अगर प्रीमेच्योर बेबी डिलीवर होता है, तो पेरेंट्स को उसकी आंख की जांच जन्म के 20 से 30 दिन के भीतर करवा लेनी चाहिए। इस अवधि में अगर बीमारी का पता चल जाए, तो उसका इलाज संभव है। अगर इलाज में देरी होती है तो बच्चा ताउम्र ब्लाइंडनेस का शिकार हो जाता है । डा. मनु शर्मा ने बताया कि देश पर की बात करें तो 26 फीसदी बच्चे इलाज के अभाव में इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि बहुत जल्दी लेजर ट्रीटमेंट भी यहां शुरू कर दिया जाएगा।


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