डरें नहीं! हिमाचल में लीची को कोई बुखार नहीं
बागबानी विशेषज्ञों का दावा, बिहार में कुपोषण में कच्चे फल खाने से बिगड़ी बच्चों की तबीयत
हमीरपुर —फलों की रानी के रूप में पहचान बनाने वाली लीची पर इस बार चमकी बुखार की मार पड़ती हुई नजर आ रही है। बिहार में चमकी बुखार और लीची को लेकर जो भ्रम फैला है, उससे हिमाचल में भी लीची की बिक्री प्रभावित हुई है। इससे दुकानदार व बागबान परेशान दिख रहे हैं। लीची की बिक्री में आई मंदी से उन बागबानों की हवाइयां उड़ हुई हैं, जिन्होंने व्यापक स्तर पर लीची के बाग लगाए हैं। बता दें कि डाक्टरों के साथ बिहार सरकार के कुछ अधिकारियों ने भी कहा है कि वहां हुई बच्चों की मौत के पीछे उनका लीची खाना भी एक कारण रहा है। इसका असर यह हुआ है कि बिहार समेत देश भर में लीची को संदिग्ध नजर से देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि प्रदेश के कई इलाकों में लीची की बिक्री में करीब 35 फीसदी तक की गिरावट आई है। लीची का सीजन केवल 20 से 25 दिन का होता है। इसके बाद लीची खराब होना शुरू हो जाती है। इस बार लीची की बंपर फसल होने से बागबानों को अच्छा मुनाफा होने की उम्मीद थी, लेकिन चमकी बुखार ने लीची की चमक फीकी कर दी है। लीची के मौजूदा समय में दामों की बात करें, तो आजकल जो लीची अपने सीजन में 150 रुपए प्रति किलो तक बिक जाती थी, उसे आज लोग 50 रुपए प्रति किलोग्राम लेने को भी तैयार नहीं है। हमीरपुर में आजकल लीची के दाम 80 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से हैं, लेकिन दुकानदारों की मानें तो लोग 50 रुपए प्रति किलो लेने को भी तैयार नहीं हो रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो लीची को लेकर कोई डरने वाली बात नहीं है। बागबानी विशेषज्ञ यह मानते हैं कि लीची में ऐसा कोई तत्त्व नहीं होता, जिससे चमकी बुखार जैसी कोई बीमारी हो। बिहार में बच्चों के मरने की बड़ी वजह कुपोषण माना जा रहा है। उधर, इस बारे में बागबानी विभाग के उपनिदेशक डा. पवन ठाकुर ने बताया कि जिन क्षेत्रों में कोहरा नहीं पड़ता और पानी की सुविधा है, वहां लीची की खेती को बढ़ाने के प्रयास जारी रहेंगे। उन्होंने माना कि लीची को लेकर उठे भ्रम को लेकर बागबानों को मंदी के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
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