डलहौजी में साहित्यिक गतिविधियों को समर्पित होटल

By: Jun 23rd, 2019 12:03 am

आपने कई ऐसे होटलों के नाम सुने होंगे जो ग्राहकों की आवभगत के उद्देश्य से बनाए गए हैं, किंतु ऐसे होटल का नाम नहीं सुना होगा जो प्रतिस्पर्धा के इस युग में भी अपने व्यावसायिक हितों को छोड़कर साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रोत्साहन में लगा है। यह होटल है डलहौजी का मेहर नामक होटल जिसे वहां के मशहूर कलमकार, ट्रैकर व चित्रकार मनमोहन बावा संचालित कर रहे हैं। मनमोहन बावा ने बताया कि 43 साल पहले उन्होंने यह होटल पैसा कमाने के मकसद से नहीं खरीदा, बल्कि डलहौजी में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के आशय से खरीदा था जहां समय-समय पर साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा यहां ट्रैकिंग करने के उद्देश्य से आए ट्रैकरों का मार्गदर्शन भी किया जाता है। हाल में पंजाब के प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुरेश सेठ ने इस होटल का दौरा कर उसके मालिक मनमोहन बावा से साहित्यिक विषयों पर लंबी चर्चा की। डलहौजी की आबोहवा में साहित्यिक-सांस्कृतिक ऊर्जा का समावेश पुनः सुरेश सेठ, अशोक दर्द और मनमोहन बावा के बीच चली बातचीत के माध्यम से हो गया। साहित्यकार सुरेश सेठ ने अपने निजी भ्रमण के दौरान डलहौजी की हसीन वादियों को निहारा। बता दें कि सुरेश सेठ का नाम उन साहित्यकारों में शुमार है, जिन्होंने पंजाब में रहकर हिंदी साहित्य में भरपूर योगदान दिया। पचास वर्ष से निरंतर रचनारत सुरेश सेठ हिंदी के यशस्वी उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार और व्यंग्य लेखक हैं। सुरेश सेठ की अब तक 35 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें वृहत कथा संग्रह ‘विरासत’ और कथा संग्रह ‘लापता फूलों का बसंत’ शामिल हैं। सुरेश सेठ ने आठ वृत्तचित्र भी बनाए हैं। अब शीघ्र ही उनका 50 कविताओं का संग्रह भी आने वाला है। ज्ञात हो कि सुरेश सेठ को सरकारी कालेजों में 41 वर्ष का अध्यापन का लंबा अनुभव है तथा वह 3 सरकारी कालेजों के प्राचार्य रह चुके हैं। सुरेश सेठ ने बताया कि हाल ही में रचित की गई ‘नश्तर की मुस्कान’ शीर्षक से विमोचित पुस्तक में 100 ऐसे जुझारू व्यंग्यों का संग्रह है, जो कि पिछले 50 वर्षों में देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं। उन्होंने बताया कि इन व्यंग्य संग्रहों में 70 साल की आजादी के इस लंबे सफर में देश में जो विकृत परिस्थितियां राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक पैदा हो गई हैं, उन पर चोट करना ही पुस्तक का उद्देश्य है।

                  -कुलदीप भारद्वाज, डलहौजी


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