नई शिक्षा नीति 2019 के पहलू

By: Jun 29th, 2019 12:04 am

अश्वनी भट्ट

लेखक, धर्मशाला से हैं

शिक्षा ही किसी समाज और देश की जागृति का मूल आधार है। अतः शिक्षा का उद्देश्य साक्षरता के साथ-साथ जीवनोपयोगिता भी होना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में 31 मई, 2019 को नई शिक्षा नीति का मसौदा मंत्रालय को सौंप दिया। इस मसौदे पर सबसे पहला विवाद हिंदी भाषा को थोपने पर किया गया, परंतु नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन किए बिना ही ऐसी अफवाहों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। नई शिक्षा नीति पांच प्रमुख मूलभूत विषयों पर आधारित है- उपलब्धता, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही। कुल चार अध्याय व 24 बंधों में नीति ने शिक्षा के भविष्य को लेकर अनेक विश्लेषण व सुझाव दिए हैं। पहले अध्याय में नई शिक्षा नीति ने प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल व शिक्षा को लेकर कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। समिति के सुझावों में वर्ष 2025 तक 3-6 वर्षों के बालकों की शिक्षा को मुफ्त, सुरक्षित, उच्च गुणवत्तापूर्ण, विकासात्मक स्तर के अनुरूप व देखभाल और शिक्षा की पहुंच को सुनिश्चित करना है। इसके लिए वर्तमान आंगनबाड़ी केंद्रों को सशक्त करना, इनमें प्रशिक्षित स्टाफ की भर्ती करना व जहां संभव हो सके, वहां इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के साथ जोड़ने की बात की गई है, जो एक बेहद स्वागत योग्य सुझाव है। प्रस्तावित नीति के दूसरे भाग में बुनियादी शिक्षा व संख्या ज्ञान को लेकर दिए गए सुझावों में 2025 तक पांचवीं कक्षा एवं उससे ऊपर के सभी विद्यार्थियों को बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के अर्जन के सामान्य स्तर पर लाना है। इसके लिए समिति द्वारा दिए गए दो महत्त्वपूर्ण कारकों को देखना पड़ेगा, जो शिक्षक अधिगम को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक है- बच्चों में पर्याप्त पोषण की कमी, जिस कारण उनके सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके लिए समिति ने मध्याह्न योजना को और ज्यादा सुदृढ़ करने के साथ-साथ सुबह के नाश्ते की व्यवस्था भी शिक्षण संस्थानों में करने की अनुशंसा की है। दूसरा कारण बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षण न देना है, जो सीखने के प्रतिफलों को प्राप्त करने में बाधा बनता है। इसके लिए समिति ने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षण देने की बात कही है। भाषा सप्ताह, भाषा मेला अथवा गणित सप्ताह या गणित मेला जैसे कार्यक्रमों को चलाने की बात की गई है। समिति ने चौथे अध्याय में शिक्षण प्रक्रिया में नई व्यवस्था को लेकर सबसे महत्त्वपूर्ण सुझाव दिया है। वर्तमान में चल रही 10़2़3 व्यवस्था के स्थान पर 5़3़34 की नई व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की है, जिसमें वर्ष 3-8, 8-11, 11-14 व 14-18 तक की आयु के बच्चों को उनकी अलग अवस्थाओं के अनुसार शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कक्षा नवमीं से बारहवीं तक वार्षिक परीक्षाओं के स्थान पर सेमेस्टर व्यवस्था को लाने की सिफारिश की गई है, जिसमें अपनी रुचि के अनुसार विद्यार्थी उपलब्ध विषयों में से अलग-अलग विषयों के चयन को लेकर स्वतंत्र होंगे। समिति ने उच्चतर शिक्षा को तीन स्तरों में बांटने की सिफारिश की है। स्तर -1 में अनुसंधानात्मक विश्वविद्यालय होंगे, जो शिक्षण और अन्वेषण में काम करेंगे। स्तर-2 में वही विश्वविद्यालय शामिल होंगे, जो मुख्यतः शिक्षण पर केंद्रित होंगे, जबकि स्तर-3 में वह कालेज शामिल किए जाएंगे, जो स्नातक स्तर के शिक्षण का कार्य देखेंगे। समिति ने नई खोजों व प्रयोगों को अधिमान देने की बात की है, साथ ही साथ राष्ट्रीय छात्रवृत्ति कोश की स्थापना की सिफारिश की है, जो पूरे देश के विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता प्रदान करेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान प्रस्तावित शिक्षा नीति ने पहली बार बृहद स्तर पर चर्चा उपरांत दूरगामी लक्ष्यों को केंद्रित करते हुए कई क्रांतिकारी सुझाव दिए हैं, परंतु इनके पालन में कई सैद्धांतिक, तकनीकी व राजनीतिक समस्याएं हैं। शिक्षा के अधिकार को 3 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों पर लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी। इसके अतिरिक्त शिक्षा के समवर्ती सूची में होने के कारण राज्य स्तर पर शिक्षण संस्थानों के नियंत्रण व संचालन पर किस तरह कार्य किया जाएगा, इस पर नीति में कोई ठोस बात नहीं कही गई है।


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