नए दौर की पेशकश लिखें

By: Jun 7th, 2019 12:05 am

विकास अब आगे बढ़ने की पेशकश है, लिहाजा पिछले संदर्भ तेजी से बदलने होंगे। कुछ नई नीतियों की महक पैदा करके हिमाचल सरकार ने विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी और स्थानीय उम्मीदों की पारी बदली है। फिल्म नीति इसी परिप्रेक्ष्य में हिमाचल को सिनेमा के नजदीक और सिनेमा को प्रदेश के करीब लाने का प्रयास है। यह उन संभावनाओं को अंगीकार करने की शुरुआत भी है जो सिने पर्यटन की दस्तक से हिमाचल को सराबोर करती रही है। कुछ इसी तरह सांस्कृतिक नीति के तहत भी लोक कलाकार को अपनी विधा परिमार्जित करते हुए पाने का अवसर मिलेगा। इन्वेस्टर मीट से पहले नीतियों से निकले आदर्श और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन अगर गारंटी बने, तो हिमाचल नए मुकाम तक अवश्य ही पहुंचेगा। आज तक विकास के परिदृश्य में सत्ता का बंटवारा केवल सियासी उपलब्धियां चुनता रहा, नतीजतन काबिल होने के हर्ष में काबिलीयत हासिल नहीं हुई। हिमाचल आंकड़ों से तो भरपूर पेश हुआ और अपने पड़ोसी राज्यों से भी बाजी मार गया, लेकिन इस प्रस्तुति का नायक कहीं पिछड़ गया। मसलन पंजाब से कहीं अधिक सरकारी कालेज खोलकर भी अगर बच्चों की पढ़ाई सक्षम नहीं हुई तो विकास की इस पेशकश को पुनर्विचार की जरूरत है। स्कूलों की शुमारी में शिक्षा की पेशकश सही नहीं हुई, लिहाजा बचपन की सीढि़यां टूटने लगी हैं। विकास ने इमारतें चुन लीं, तो सरकारों ने बोर्ड लटकाने की परंपरा ओढ़ ली। ऐसे में भले ही कार्यालयों के पांव गांव तक पहुंच गए, लेकिन सुशासन की कमान हार गई। बेशक विकास से तरक्की खींच कर नागरिक समाज लगातार पायदान चढ़ गया, लेकिन मानव संसाधन की तरक्की तो नहीं हुई। क्यों हिमाचल में स्थापित निजी विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग कालेज हार चुके हैं या मेडिकल कालेजों की बढ़ती तादाद ने सामान्य चिकित्सकीय सेवाओं को कंकाल बना दिया। कार्यालयों-संस्थानों को वजूद मानती सियासत ने हिमाचल की पेशकश को लाचार और कसूरवार बना दिया। केंद्रीय विश्वविद्यालय को दो जगहों के बीच बंटवारे की वस्तु बनाकर जो हासिल हुआ, उससे कहीं अधिक छात्रों और संस्थान ने खो दिया। क्या हम इसी दौड़ में भविष्य संवारेंगे या भविष्य के प्रश्नों के अनुरूप नई प्रस्तुति देंगे। जो भी हो निवेश की अभिलाषा में यह तय करना जरूरी है कि हमारी अपनी प्रस्तुति का निर्लिप्त विचार क्या है। कल औद्योगिक नक्शा क्या होगा या पर्यटन के रास्ते कहां तक जाएंगे। हिमाचल के शहरीकरण का मिजाज क्या होगा या मनोरंजन का अंदाज कैसा होगा। भविष्य के परिवहन को रेखांकित करने की निरंतरता या निजी वाहनों के सामने सार्वजनिक परिवहन के विकल्प क्या होंगे, यह स्पष्ट नीतियों से ही संभव होगा। अनियंत्रित विकास की परिपाटी के बीच व्यवस्थित होने की कवायद कैसे शुरू होगी, हिमाचल में फिलहाल ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा ही नहीं हुई। पूरे प्रदेश में विकास के नाम पर अव्यवस्था का आलम सिर चढ़कर बोल रहा है। जिस प्रदेश में पंचायत चुनाव की भूमिका में विकास की बोली लगती हो, वहां विजन की व्यापकता को शायद ही स्वीकार किया जाए। इसलिए प्रदेश में धारा-118 या वन संरक्षण अधिनियम को दिखाकर विकास को डराया जाता है या निजी क्षेत्र के योगदान को अधमरा कर दिया जाता है। आश्चर्य यह कि विकास का न तो वैज्ञानिक आधार और न ही किसी सर्वेक्षण के अनुरूप इसे समझा गया। उपयोगिता या प्रासंगिकता के खाके बनाए बिना विकास को परिमार्जित करने के परिणाम प्रायः शून्य ही रहे, लिहाजा हिमाचल को स्पष्ट नीतियों और पारदर्शी व्यवस्था के तहत विकास की नई पेशकश शुरू करनी होगी, ताकि हर ईंट की योग्यता साबित करे कि हिमाचल की वास्तविक मंजिलें हैं कहां। क्षेत्रवाद के नारों से ऊपर हिमाचली प्रतिभा व क्षमता को दिखाने व साबित करने के लिए पूरी पेशकश बदलनी पड़ेगी। फिलहाल जिस शिमला के मार्फत ब्रिटिश राज का इतिहास हिमाचल  से जुड़ता है, उसकी वर्तमान प्रस्तुति पर तरस आता है। न हमारे पास पार्क हैं, न पार्किंग व्यवस्था और इससे भी खतरनाक पहलू यह कि हर बार सत्ता अपने प्रभाव के विकास को चमकाते हुए निरंतरता को हार जाती है। पिछले तीन दशकों से ऐसी सैकड़ों शिलान्यास पट्टिकाएं होंगी जिन्हें फांसी देकर विकास का नया पता ढूंढा जाता रहा है। क्या पुरानी योजनाओं-परियोजनाओं को धूल-धूसरित करके भी विकास जिंदा रह सकता है, यह भी सोचना होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App