नए नजरिए की परिक्रमा

By: Jun 27th, 2019 12:05 am

हिमाचल के नए कदम जो तय कर रहे हैं, उनकी प्रगति के आईने में हम बदलते अरमानों की डोर देख सकते हैं, लेकिन मंजिल को अपने दीदार की सदी का इंतजार है। कुछ इसी तरह इन्वेस्टमेंट की फिराक में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के विदेश दौरे करवटें बदलने लगे हैं, तो एक नया नजरिया भी प्रदेश की परिक्रमा कर रहा है। हालांकि परिदृश्य की विदेशी चमक को हू-ब-हू उतारने की अपनी कसौटियां, पद्धति और विश्वास है, फिर भी हिमाचल को निवेश की आंख से परखने की पहल तो शुरू हुई। इसे हम अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नए शब्दकोष की तरह देखें या इसके लिए अपनी भाषा बदलें, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर इन कदमों को उतारने की लंबी परीक्षा बाकी है। अब तक जिस निवेश के घुंघरू बजे हैं, वहां गोल्फ रिजॉर्ट, स्किल यूनिवर्सिटी, शॉपिंग मॉल, हाइपर मार्केट या रियल इस्टेट में हिमाचल का नया शृंगार देखा जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रदेश आंखें खोलकर देखना चाहता है, तो विकास के पहरावे में विदेशी रंग देखे जा रहे हैं। यह नए हिमाचल की प्रस्तुति है, लेकिन हिमाचल को नए रूप में उतारने की जिरह व जज्बात बाकी है। जिस राज्य में प्रगति या विकास में केवल सरकार से पाने की तमाम शर्तें रही हों, वहां निजी निवेश के फलक पर फूल बरसाने की तहजीब बदलनी होगी। आश्चर्य तो यह कि विकास के यथार्थ में निजी क्षेत्र की दुनिया को बसाने की चाहत ही नहीं, बल्कि इसे धंधे के सौहार्द में सत्ता को जमाने की ख्वाहिश रही है। कहने का अर्थ यह कि अगर हिमाचल में सपने बदले हैं, तो आंख से कुछ तिनके हटाने होंगे। ये तिनके विभागीय ढर्रे की नीयत में फंसे हैं। ये उन परंपराओं का घालमेल हैं, जो हिमाचल की व्यवस्था को छोर बना देते हैं। दुर्भाग्यवश हिमाचल ने किसी मॉडल के तहत विकास नहीं किया और न ही कानून व नियमों के साम्राज्य को पनपने दिया, लिहाजा जो दिखाई देता है वहां तिजोरियों में माफिया तंत्र छिपा है। पिछले तीन दशकों से कितने उपग्रह शहरों की परिकल्पना हारी और हमेशा राजनीति ही क्यों कारण बनी। सेटेलाइट टाउन का सपना कभी राजगढ़ में देखा गया या वाकनाघाट की मुनादी शहरी विकास अपने आसपास लगा, फिर भी कोई इस विफलता का जिम्मेदार नहीं बना। गगल के समीप चैतड़ू में शहरी विकास में निवेश का सीना चौड़ा हुआ, तो किसने छुरा घोंपा। परिकल्पना के घोड़े तो ऊना में एनआरआई शहर तक दौड़े, मगर सियासत ने इसकी भूमि पर भी बारूद बिछा दिया। ऐसे में मुख्यमंत्री के इरादों की सौगात फिर जमीन चुन रही है, लेकिन निवेश को लाने से कहीं अधिक बसाने की इच्छाशक्ति का गैरराजनीतिक आचरण मजबूत करना होगा। क्यों आज तक हिमाचल में एक भी विशेष निवेश क्षेत्र यानी सेज स्थापित नहीं हुआ या बार-बार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की फरमाइश और जगह की पैमाइश बदल जाती है। हम आज तक स्पष्ट नहीं कर पाए कि प्रगति का कौन सा पांव पहले आगे रखना है, इसलिए बहुत कुछ बेतरतीब हुआ या जो हुआ उसमें प्राथमिकताएं बिखर गईं। अगर पिछले दशकों के चक्र को समझें, तो स्पष्ट हो जाएगा कि हिमाचल की नीतियां केवल एक समाज तैयार कर रही थीं, जो अपने भविष्य की हर कामना में सरकार को जिम्मेदार और असरदार मानता रहा। इसलिए प्रदेश का नजरिया आज अपने हर प्रश्न पर सरकार की ओर देखता और सरकारें भी बदले में खुश करती रहीं। इन्वेस्टर मीट अगर प्रदेश का नजरिया या सरकार की संगत बदल दे, तो नई तासीर का हिमाचल अपनी रफ्तार पकड़ सकता है। इन्वेस्टर मीट से पहले हिमाचल को अपने निवेश सलाहकार बोर्ड का गठन करना चाहिए, जिसमें हिमाचल के सफल व्यापारी, उद्योगपति, पर्यटन व्यवसायी तथा कारपोरेट या प्रशासन जगत में काम कर चुके प्रोफेशनल शामिल किए जाएं।


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