नकली सिगरेटों पर लगाम जरूरी

By: Jun 16th, 2019 12:01 am

कानून की खामियों के चलते किया जा रहा लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़

चंडीगढ़ –राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अवैध सिगरेटों की निर्माण स्थली बनता जा रहा है और अगर इस पर लगाम न लगाई गई, तो यह कानून व्यवस्था की बड़ी समस्या बनने के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंता भी बन जाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक गैर कानूनी सिगरेटों के निर्माण (जिनमें कई विदेशी ब्रांडों की नकल भी शामिल है) में तीव्र वृद्धि इसलिए हो रही है, क्योंकि कानून में खामियां हैं, नतीजतन सरकार को सालाना 13,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। सिगरेट लाइसेंसों का नियमन इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट एंड रेग्युलेशन एक्ट, 1951 द्वारा किया जाता है। सन् 1991 में हुई डि-लाइसेंसिंग के बाद केवल पांच इंडस्ट्रीज ही अनिवार्य लाइसेंसिंग के तहत हैं जिनमें तंबाकू के सिगार व सिगरेट एवं तंबाकू के सबस्टीट्यूट शामिल हैं। लेकिन फिर भी कानून में खामी के चलते गैर कानूनी सिगरेटों का निर्माण जारी है। दिल्ली के एक वरिष्ठ वकील अजय कुमार कहते हैं कि इस एक्ट में फैक्टरी की परिभाषा उत्पादों पर कोई अपवाद प्रस्तुत नहीं करती। यह कहती है की 50 कामगारों के साथ व बिजली से चलने वाली यूनिट या 100 कामगारों के साथ बगैर बिजली की यूनिट, एक फैक्टरी स्थापित कर सकती है, जिसके लिए अनिवार्य लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती और यहीं पर समस्या पैदा होती है। पूरे एनसीआर में एजेंसियों द्वारा हाल ही में छापेमारी की गई, जिनमें फरीदाबाद डीसीपी, स्वास्थ्य विभाग-हरियाणा, गाजियाबाद और नोएडा डिस्ट्रिक्ट टो-बैको कंट्रोल कमेटी शामिल थीं। इन छापों में पाया गया कि ये छोटी इकाईयां न केवल अपने ब्रांड बना रही हैं, बल्कि पेरिस, विन, ऐस्स, मोंड आदि जैसे मशहूर विदेशी ब्रांडों की नकल भी तैयार कर रही हैं।  एनसीआर के अलावा पंजाब, हरियाणा, यूपी, एमपी व राजस्थान में भी ऐसी बहुत सी यूनिट कुकुरमुत्ते सी उग आई हैं।


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