पंजाब से गुजरात तक हिमाचली प्लम-खुमानी की धूम

By: Jun 17th, 2019 12:06 am

हिमाचली स्टोन फ्रूट ने इस बार देश भर की मंडियों में धूम मचा दी है। प्लम हो या खुमानी, बादाम हो या फिर चेरी हर फल को भरपूर दाम मिल रहे हैं। अपनी माटी के इस अंक में हमारी टीम ने स्टोन फ्रूट का जायजा लिया। तो पता चला कि अकेले ढली मंडी से रोजाना 30 टन माल देश भर की मंडियों में भेजा जा रहा है। यानी बागबान रोजाना ढली में 60 लाख का स्टोन फू्रट लेकर आ रहे हैं। यहां से यह फल पंजाब गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली व बंगलुरु की मंडियों में पहुंचाया जा रहा है। ढली मंडी में ही प्लम 100 से 230 तक बिक रहा है। इसी तरह चेरी 60 से 120 तक, खुमानी और शक्करपारा 50  व  बादाम 55 रुपए तक बिक रहा है। किलो, शक्करपारा 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। बता रहे हैं कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार स्टोन फू्रट की रिकॉर्ड तोड़ पैदावार ने इस बार विदेशी स्टोन फू्रट को पछाड़ दिया है। इन दिनों अकेले शिमला ढली मंडी से ही रोजाना 30 टन स्टोन फू्रट देश की बड़ी मंडियों को भेजा जा रहा है। प्रदेश में इन दिनों प्लम, चेरी, आड़ू, खुमानी व बादाम शक्करपारा का सीजन पीक पर है। ऐसे में लोकल मांग पूरा होने के साथ बाहरी राज्यों में भी स्टोन फू्रट की डिमांड पूरी की जारी है। रिकॉर्ड उत्पादन होने से इस बार सस्ता बिक रहा स्टोन फू्रट आम उपभोक्ताओं की भी पहुंच में है। शिमला ढली मंडी एसोसिएशन के उपप्रधान अमन सूद का कहना है कि इस बार स्टोन फ्रूट की आमद अच्छी है। इससे पिछले साल के मुकाबले बाहरी मंडियों मांग को पूरा कर पा रहे हैं। ठियोग, कोटखाई चौपाल के अलावा करसोग आदि से भारी मात्रा में स्टोन फू्रट मंडी में पहुंच रहा है।

रोहित सेम्टा, ठियोग

2022 तक होगी किसानों की आय दोगुनी

केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी का लक्ष्य रखा है और इसमें मशरूम अग्रणी भूमिका निभा सकता है। यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक व कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव डा. त्रिलोचन महापात्रा ने कही। वह खुंब अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट में आयोजित कार्यक्रम के दौरान संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पहले सरकार किसान का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देती थी लेकिन अब सरकार किसानों की आय को बढ़ाने पर जोर दे रही है। आजादी के बाद देश में नई तकनीकी आने के कारण उत्पादन में अत्याधिक बढ़ोतरी हुई, जिससे देश में भूखमरी की समस्या दूर हो गई है। उन्होंने कहा कि किसानों को सभी योजनाओं की जानकारी होनी चाहिए व अव्यवस्थाओं को ठीक करके ही आमदनी बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि उत्पादों की ब्रांडिंग की जाए ताकि किसानों को मशरूम के पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।

-सौरभ शर्मा, सोलन

ओलों की मार, जमीन पर आड़ू

जिला सिरमौर के ऊंचाई वाले क्षेत्र नौहराधार में बुधवार रात को तेज तूफान व ओलावृष्टि से बागबानों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ है। बुधवार देर शाम को पहले तेज तूफान चला व बाद में ओलावृष्टि हुई जिसके कारण फलदार पौधों को काफी नुकसान हुआ है। नौहराधार के चौरास, फागनी, टारना तलांगना, जौ का बाग, उलाना आदि क्षेत्रों में ओलावृष्टि ने कहर बरपाया है। बागबानों के सेब, आड़ू 70 फीसदी झड़ गए तथा बचे आड़ू, सेब के दानों में दाग लग गया है। ओलावृष्टि से कई स्थानों पर फ्रांसबीन की फसल खेतों में पूरी तरह से बिछ गई है। इसके अलावा टमाटर की फसलों को भी भारी नुकसान हो गया है, जिस कारण किसानों की आर्थिकी पर विपरीत असर पड़ने की आशंका बन गई है। हालांकि कई बड़े बागबानों ने ओलावृष्टि से फसल को बचाने के लिए अपने बागीचों में जालियां लगाई गई हैं, मगर छोटे बागबान जिनके बागीचों में जालियां नहीं लगी हैं ओलावृष्टि से उनके बागीचों में भारी नुकसान की सूचना है। मौजूदा समय में तापमान में गिरावट सेब की फसल के लिए नुकसानदायक मानी जा रही है। इन दिनों सेब की फसल की सेटिंग हो रही थी, परंतु इस ओलावृष्टि से सेब के बीमे सहित फूल आदि झड़कर गिर गए हैं जो बागबानों के लिए निराशाजनक है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इन दिनों आड़ू का सीजन चल रहा है। ऐसे में ओलों की मार और तापमान की गिरावट सेब में होने वाली सेटिंग को प्रभावित करेगी। उधर, एसएमएस उद्यान विभाग राजगढ़ यूएस तोमर ने बताया कि नौहराधार, चाड़ना, अंधेरी केंद्र में बागबानों के बागीचों को काफी नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि विभागीय रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र में 2.82 करोड़ का नुकसान हुआ है, जिसकी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जा रही है। उन्होंने बताया कि बागबानों के नुकसान का विभाग हरसंभव मदद करेंगे।

संजीव ठाकुर, नौहराधार

बदलते तेवर मौसम के…

मौसम के बदले तेवर देखकर किसान बागबान चिंतित हैं। मौजूदा समय में सेब, आड़ू, प्लम, खुमानी आदि फलदार पौधों की तैयार होने की प्रक्रिया चली हुई है। ऐसे में तापमान सामान्य बना रहने की जरूरत होती है, मगर क्षेत्र में हो रही ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान पहुंच रहा है।

मैदानी क्षेत्रों में अभी नहीं हुई मक्की की बिजाई

इस बार बे मौसमी होने वाली बारिश ने किसानों व बागबानों को खासा नुकसान पहुंचाया है। बता दें कि प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में 80 फीसदी किसान मक्की की बिजाई नहीं कर पाए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि खेतों में बिजाई से पहले होेने वाली नमीं के लिए बारिश ही नहीं हो पा रही है। हांलाकि मौसम विभाग की बार-बार चेतावनी जारी करने के बाद किसानों ने खेतों को पूरी तरह से बिजाई के लिए तैयार कर दिया है। मक्की से पहले खेतों में गोबर फेंकने से पहले, पहली बार खेतों को जोतने का कार्य भी पूरा कर दिया है। बावजुद इसके खेत पूरी तरह से बंजर पड़े हुए है। खेतों में नमीं न होने की वजह से मक्की के साथ इस मौसम में उगाए जाने वाले वेजिटेबल भी अभी तक किसान नहीं उगा पाए है।

जानकारी के सोलन, बिलासपुर, कांगड़ा, हमीरपुर, नाहन, सिरमौर में सबसे ज्यादा मक्की की फसलों को उगाया जाता है। अब मिली जानकारी के अनुसार इन जिलों में खेत बंजर पड़े हुए है। यहां पर कोई भी किसी भी तरह के बिजों की बिजाई किसान व बागबान नहीं कर पा रहे है। बता दें कि  हिमाचल के जिन क्षेत्रों में किसानों ने मक्की की बिजाई की भी है, उन्होंने रासायनिक खाद्य का प्रयोग ज्यादा किया है। इससे प्राकृतिक खेती को दिए जाने वाले बढ़ावें को लेकर यह एक बड़ा खतरा है। जानकारी के अनुसार इस समय तक  प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में किसान मक्की की फसलों को दूसरी बार राढ़ लगाना भी शुरू कर देते है। अब दो माह देरी जब मक्की की बिजाई को हो गया है, किसानों की रातों की नींदे भी उड़ने लगी है। विभागीय जानकारी के अनुसार जिला के कई किसानों ने तो इस बार मक्की की बिजाई से मुंह भी फेर दिया है। इससे इस बार प्रदेश में गेहुं की पैदावार कम होने का अंदेशा भी जताया जा रहा है। फिलहाल 80 प्रतिशत किसानों का मक्की की बिजाई न करना बड़ा चिंतनीय विषय है। ऐसे अब देखना होगा कि कृषि विभाग मैदानी क्षेत्रों के किसानों के फायदें के लिए इस ओर क्या कदम उठा पाते है।

किसान मक्की के सीड को बढ़ा दें

समय पर बारिश न होने के चलते कृषि विभाग ने भी चिंता जाहिर की है। कृषि विभाग के निदेशक देशराज शर्मा ने किसानों से अपिल की है कि वह मक्की की बिजाई कर दें, वहीं खेतों में डाले जाने वाले मक्की के बिजों की मात्रा को भी बड़ा दें, ताकि कुछ पौधे अगर नमीं न होने की वजह से खराब हो जाएं, तो बाकी पौधे तो बच जाएंगे।

कोटलू में टमाटर का लगा सड़न रोग

कोटलू क्षेत्र में अनेकों किसान  तैयार हो रही टमाटर की फसल को सड़न रोग लगना जारी है, जिस कारण हर रोज किसानों की फसल का भारी नुकसान जहां हो रहा है। जिसके चलते कोटलू क्षेत्र के किसानों ने कृषि विभाग से गुहार लगाते हुए कहा कि विशेषज्ञ कृषि उनके क्षेत्र का दौरा करते हुए टमाटर की फसल को जो सड़न रोग लग रहा है उस बारे उपचार का सहयोग बिना किसी देरी करें, ताकि किसानों की तैयार होने वाली फसल जो की सडन रोग का शिकार हो रही है वह बच सके। एक किसान कर्म सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने लगभग 3000 पौधे टमाटर के लगाए हुए हैं जिनको निरंतर सडन रोग अपनी चपेट में लेता जा रहा है। किसान अपनी फसल को बर्बाद होते हुए निराशा में डूबा हुआ है। टमाटर की फसल का जो लाभ उन्हें मिलना है वह नहीं मिलेगा, यदि समय रहते कोई इलाज नहीं किया तो पूरी फसल भी बर्बाद हो सकती है। इस बारे कृषि विभाग के करसोग प्रसार अधिकारी करसोग आकेश कुमार ने कहा कि अभी तक उक्त क्षेत्र से किसानों ने टमाटर को लगे हुए सड़न रोग बारे जानकारी नहीं दी है, परंतु जानकारी मिलते ही किसानों तक यह जानकारी पहुंचाई जा रही है यदि सडन रोग लगा है तो एक बिगा में वबेस्टिन दवा का स्प्रे किसान टमाटर के पौधों पर करें जो कि 60 लीटर पानी मैं 60 मिलीग्राम का घोल मिलाकर करें तो पौधों की बीमारी थमेगी, फिर भी यदि कोई फर्क नहीं पड़ता है तो किसान कार्यालय पहुंचकर विस्तारपूर्वक जानकारी बताएं कृषि विशेषज्ञ मौके पर जाकर किसानों को पूरी जानकारी देने के लिए हर समय उपलब्ध हैं।

नरेंद्र शर्मा,करसोग

लुणसू में नमकीन पानी से डरती हैं बीमारियां

लुणसू मैं पहाड़ के गर्भ से निकलने वाला नमकीन पानी पीने से कई प्रकार की बीमारियों का नाश होता है। देहरा विधानसभा क्षेत्र के हरिपुर सब तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले दुर्गम क्षेत्र मैं बसे लुणसू गांव से और यहां पहाड़ी से निकलने वाले नमकीन पानी के चश्मे से जहां सदियों से पहाड़ी से नमकीन पानी निकल रहा है और जून महीने मैं लगने वाले लुणसू के मेलों मैं दूर-दूर से लोग आकर यहां नमकीन पानी पीते हैं। लुणसू मैं लगने वाले मेलों को मृगसनान के नाम से जाना जाता है जो की सोलह दिन तक चलते हैं। ये मेले सात जून को शुरू हुए और 24 जून को समापत होंगे। जिस पहाड़ी से नमकीन पानी निकलता है वहां शिव मंदिर भी बनाया गया है। लुणसू मैं आकर नमकीन पानी पीने से पेट संबंधी कई प्रकार की बीमारियों मैं लाभ होता है। कहते हैं की नमकीन पानी पीने के बाद भुने हुए चने खाने से दस्त लग जाते हैं और साथ मैं वह रही बनेर खड मैं स्नान करने से दस्त ठीक हो जाते हैं जो की किसी चमत्कार से कम नहीं है। कब्ज गैस तथा पथरी के रोगीयों के लिए ये पानी रामबाण औषधी है। और सबसे बड़ी चमत्कार वाली बात तो ये है की जिस पहाड़ी से ये नमकीन पानी निकलता है उस से लगभग बीस मीटर की दूरी पर एक बाबड़ी है इस बाबड़ी का पानी आम पानी के जैसा है जो की अपने आप मैं किसी चमत्कार से कम नहीं है। आज दिन तक कोई भी हुक्मरान या सरकार प्रकृति की इस अद्भुत देन से नवाजे इस गांव तक सड़क सुविधा तक मुहैया नहीं करवा पाई है।

-बाबू राम, भटेहड़ वासा

माटी के लाल

सोहण सिंह फोन नं. 98160-77514

जैविक खेती का कमाल

उपमंडल सरकाघाट की ग्राम पंचायत चौरी के गांव गंधौल के सोहन सिंह ने सेवानिवृति के बाद हार्ट पेसेंट होने के बावजूद 2012 में खेतीबाड़ी को अपनी दिनचर्या बनाया। धीरे-धीरे खेती बाड़ी करने की तकनीकियों को समझा और जैविक खाद से सब्जियों को उगाना शुरू किया। करीब एक वर्ष पूर्व उन्होंने 800 ग्राम प्याज अपने खेतों में उगाकर मिशाल पेश की थी और 15 क्विंटल प्याज बाजार में बेचकर हजारों रुपए कमाए। हाल ही में उन्होंने आधा किलो प्याज, ढाई किलो घिया व बढि़या किस्म के बैंगन उगाए हैं। यही नहीं बड़ी इलायची की भी बड़ी खेप तैयार की है। सोहन सिंह एक फसल के सीजन में सभी खर्चे निकाल कर करीब 35-40 हजार रुपए कमा लेते हैं। सोहन सिंह का कहना है कि खेतीबाड़ी करने से हर व्यक्ति बड़ी आसानी से परिवार का पालन पोषण कर सकता है और सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित करने में लगी हुई है।

पवन प्रेमी, सरकाघाट

करंट से मौत पर राहत बढ़ी

खेती कार्य के दौरान करंट से मौत पर पीडि़त किसान परिवार को अब तीन लाख रुपए मुआवजा दिया जाएगा। प्रदेश सरकार ने इसके लिए बजट बढ़ा दिया है। अपनी माटी के लिए दिव्य हिमाचल द्वारा जुटाई गई जानकारी के अनुसार इस योजना में बजट बढ़ाने की लगातार मांग उठ रही थी। इस पर प्रदेश की जयराम सरकार ने अब बजट का प्रावधान कर दिया है। गौर रहे कि मुख्यमंत्री किसान व खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना के तहत  किसानों को करंट लगने पहले पीडि़त परिवार को डेढ़ लाख रुपए दिए जाते हैं। खास बात यह भी कि पहले किसान की मौत पर  तीन महीने में इसके लिए आवेदन करना पड़ता था, वहीं अब सरकार ने अब इस अवधि को छह महीने कर दिया है।  किसान व खेतिहर मजदूर जीवन सुरक्षा योजना के तहत  अब दोगुनी राशि मिलेगी। प्रदेश सकरार ने इसके लिए बजट मुहैया करवा दिया है

देश राज, निदेशक कृषि विभाग, शिमला

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