पर्यावरण संरक्षण जरूरी

By: Jun 5th, 2019 12:05 am

संदीप शर्मा

साहित्यकार

आज फिर विश्व पर्यावरण दिवस ने हमारी चौखट पर दस्तक दी है। स्कूल के बच्चे हाथों में पर्यावरण बचाओ की तखतियां लेकर भरी धूप में सड़कों पर चीखकर सभ्य हिमाचलियों को जागरूकता की धुनें सुनाएंगे। नेता लोगों ने भी तैयारी कर ली है कि कुछ रोना पर्यावरण का तो जरूर रोना है। दफ्तर के एसी की ठंड में अफसरों ने भी कुछ योजनाएं बना ली हैं। इसके बाद जेसीबी मशीनें सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों को जड़ों से उखाड़ देंगी। विकास की अंधी आंधी में पर्यावरण फिर हार जाएगा। स्टोन क्रशर खनन वाले फिर वादियों में गिद्ध दृष्टि लिए अपने पंख फैलाएंगे और शान से नेताओं की पिछली पंक्ति में बैठकर राजनीतिक चंदे से अपनी पहुंच बनाएंगे। स्लेटों के कच्चे घरों को तोड़कर कंकरीट के जंगल उगेंगे और रास्ते की बाधा बने पीपल के बूढे़ पेड़ रास्तों से हटेंगे। प्लास्टिक में लिपटा कीमती सामान हिमाचल की सरहदों में घुसकर बेखौफ तांडव मचाएगा और पोलिथीन मीठे जहर को लपेटकर हिमाचली बच्चों को खुशियां बांट कर एहसान जताएगा।

क्या यह पर्यावरण जागरूकता है? क्या यह पर्यावरण बचाव है? नहीं हम मूर्ख बन रहे हैं, चाहे हमने पोलिथीन पर   बैन लगाया, तो फिर घर-घर में पोलिथीन कैसे आ रहा है। 2009 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने प्रदेश में प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन अब भी सैकड़ों टन प्लास्टिक दूध, चिप्स, ब्रेड, वाटर बोटल्स, कोल्ड ड्रिंक्स जैसे उत्पादों के रूप में कचरा बनकर हिमाचल की खूबसूरत वादियों को ग्रहण लगा रहा है। प्लास्टिक कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने की परियोजना शिमला में कार्यशील, कुल्लू व बद्दी में स्थापित की जाएंगी, ये बातें भी अब दुबक रही हैं। उठिए, जागिए ठोस कदम उठाइए, सिर्फ पर्यावरण बचाओ ही मत चिल्लाइए। जंगलों को जलाने वालों को सलाखों के पीछे लाइए, निरीह जानवरों के बेखौफ शिकारियों की कनपटी पर कभी बंदूक रखिए, ताकि उनको मौत का आभास हो।

पोलिथीन, प्लास्टिक के जहर को घरों से दूर करिए और भाषण कम, पर्यावरण बचाव के लिए कुछ कर्म करिए। अवैध खनन पर लगाम लगाइए। अवैध खनन के गुनहगारों को सड़कों पर दौड़़ाइए। क्या आधुनिक मानवीय विकास के साथ पर्यावरण को बचाया जा सकता है? मुख्य तौर पर पर्यावरण को बचाने के लिए विकास के घूमते पहिए को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन आज मानवीय समाज ऐसे प्रबंधन के दौर से गुजर भी रहा है, जहां हर चीज को उच्चतम प्रबंधन के दम पर दुरुस्त किया जा सकता है। आज उच्च तकनीकें हैं और इन्हीं तकनीकों के दम पर पर्यावरण को काफी कम नुकसान हो, यह सुनिश्चित करना समय की चुनौती है। हमें प्रकृति मां के सच्चे रक्षक होने का अपना कर्त्तव्य निभाना होगा। नियम सरकार को बनाने होंगे और उनका पालन प्रशासन करवाएगा। जागरूकता बहुत धीमी गति से काम करती है, जबकि सख्त नियम पल में दृश्य बदल देते हैं। हमें फिर पर्यावरण की ओर लौटना होगा और चहुं ओर पर्यावरण की फिजाओं में फैले पर्यावरण को प्रमाणित करना होगा।

 


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