प्यार सेल्फलेस होता है : शहीद कपूर

By: Jun 12th, 2019 12:07 am

मुझे लगता है कि प्यार तो प्यार ही होता है, लेकिन जब आप यंग होते हैं, तो आपकी समझ थोड़ी लिमिटेड होती है, बाद में आप उसे थोड़ा बेहतर समझने लगते हैं…

प्यार दरअसल प्योर फॉर्म में जुनूनी ही होता है। प्यार की परिभाषा ही यही है कि प्यार सेल्फलेस होता है। आप जब किसी से सच में प्यार करते हैं, तो आप उन्हें अपने से भी आगे रखते हैं। ये विचार हैं ‘कबीर सिंह’ में आशिक की भूमिका निभा रहे शाहिद कपूर के। उनसे हुए एक इंटरव्यू की मुख्य बातें पेश हैं…

‘कबीर सिंह’, में आप एक जुनूनी आशिक का रोल कर रहे हैं। क्या आप ऐसे जुनूनी प्यार में यकीन रखते हैं? आपको लगता है कि असल जिंदगी में ऐसे जुनूनी आशिक होते हैं?

प्यार दरअसल प्योर फॉर्म में जुनूनी ही होता है। प्यार की परिभाषा ही यही है कि प्यार सेल्फलेस होता है। आप जब किसी से सच में प्यार करते हैं, तो आप उन्हें अपने से भी आगे रखते हैं। आप पहले उनके बारे में सोचते हैं, फिर अपने बारे में सोचते हैं, जो अपने आप में जुनून ही है। प्यार तो प्यार है। मुझे लगता है कि कबीर सिंह रियल लाइफ  में भी मिलते हैं। मुझे तो लगता है कि हम सब अपने जीवन में कभी न कभी कबीर सिंह वाले फेज से गुजर चुके हैं। कुछ लोगों के लिए वह फेज थोड़ा लंबा चलता है। कुछ लोग पूरी जिंदगी वैसे रहते हैं। कुछ लोग थोड़े फेज के बाद उससे निकल जाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हर इनसान ने कभी न कभी उस तरह के पैशनेट प्यार का अनुभव तो किया है।

आपने इश्क में या दिल टूटने पर कोई ऐसी अजीबोगरीब चीज की है?

अभी कुछ याद तो नहीं आ रहा है, लेकिन हां, ऐसे टाइम में इनसान थोड़े अजीबोगरीब मानसिक स्थिति में तो रहता ही है। जब आपका दिल टूटता है, तो आप थोड़े अलग ही हेडस्पेस मनरूस्थिति में रहते हैं। उससे बाहर निकलना काफी मुश्किल होता है, लेकिन निकलना जरूरी भी होता है।

 आपके लिए प्यार के मायने बदले हैं?

मुझे लगता है कि यह ग्रो करता है। प्यार तो प्यार ही होता है, लेकिन आपकी प्यार को लेकर जो समझ है, वह बढ़ती है, क्योंकि साल बढ़ने के साथ-साथ आपमें भी एक मैच्योरिटी आती है। मुझे लगता है कि प्यार तो प्यार ही होता है, लेकिन जब आप यंग होते हैं, तो आपकी समझ थोड़ी लिमिटेड होती है, बाद में आप उसे थोड़ा बेहतर समझने लगते हैं।

हमेशा आपकी एक्टिंग को सराहा है  पर आपको लगता है कि आपकी स्क्रिप्ट चॉइसेस कई बार सही नहीं रहीं। अपनी जर्नी को कैसे देखते हैं?

बिलकुल, बिलकुल मुझे उस पर काम करने की जरूरत है। लाइफ  में हमेशा सीखना होता है यार, कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जो आपकी ताकत हैं, आपको उस पर फोकस करना चाहिए। कुछ चीजें होती हैं, जो आपकी कमजोरी होती हैं, आपको उसको सुधारने की कोशिश करनी होती है। जैसा आपने कहा कि मेरी स्क्रिप्ट चॉइसेस कभी सही रही हैं, कभी गलत रही हैं, तो मुझे उन्हें बेहतर बनाना सीखना चाहिए, जिसके लिए मैं कोशिश कर रहा हूं। समय के साथ आपकी समझ भी बदलती है, तो आपके चॉइसेस में भी वह बदलाव दिखता है। मुझे लगता है कि अब ऑडियंस का भी मूड बदल रहा है। अलग-अलग तरह की फिल्में बन रही हैं। पहले काफी लिमिटेशंस थीं। फिल्ममेकर्स लिमिटेड आइडियाज लेकर आते थे। आज की डेट में बहुत वैरायटी है, जो बहुत अच्छी चीज है।

आपको लगता है कि ‘पद्मावत’  में आपके होने से पद्मावत को ज्यादा फायदा मिला?

हंसते हुए , अच्छी फिल्म थी। मैं खुश हूं कि मैंने वह फिल्म की, लेकिन हां, वह मेरे करियर की डिफाइनिंग महत्त्वपूर्ण फिल्म्स में से एक नहीं थी।

आपने कबीर को अर्जुन से कैसे अलग और बेहतर बनाया, जो इतना प्यार मिला?

दरअसल कभी बेहतर करना है, ऐसे नहीं सोचता। मुझे अर्जुन रेड्डी वाकई बहुत अच्छी लगी थी। मुझे विजय ‘अर्जुन रेड्डी के हीरो विजय देवरकोंडा का काम भी बहुत अच्छा लगा था। शायद इसलिए मैं कबीर सिंह कर रहा हूं, क्योंकि मुझे यह फिल्म बेहद पसंद आई थी। मेरी कोशिश यह रहती है कि मैं कुछ ओरिजिनल करूं। कबीर सिंह की अपनी ऐनर्जी हो, अपना बिहेवियर हो, अपना कैरेक्टर हो, लेकिन उस चक्कर में फिल्म की जो अच्छी चीजें हैं, उनको बदलना भी सही नहीं है, क्योंकि जो फिल्म अच्छी लगी थी, उसकी कुछ क्वॉलिटीज थी, जिसकी वजह से वह अच्छी लगी थी और यह कैरेक्टर ड्रिवेन फिल्म है। इस किरदार की कुछ खासियत है, जो उसको इतना इंट्रेस्टिंग बनाती हैं। उन क्वॉलिटीज को एक नए अंदाज में दिखाना मेरी कोशिश रही है। अर्जुन रेड्डी हमेशा ओरिजिनल रहेगी। मेरी जर्नी कबीर सिंह को खोजने की रही, जो अर्जुन रेड्डी नहीं है।


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