फायदे का धंधा है भीख

By: Jun 27th, 2019 12:04 am

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नगर निगम अब भीख मांगने वाले लोगों को रोजगार से जोड़ने की मुहिम चलाने जा रही है, ताकि उनकी आय सुनिश्चित हो सके और जीवन स्तर सुधरे। मगर भिखारी काम में लगने को तैयार नहीं हैं, उन्हें अपना मौजूदा हाल ही पसंद है। हजरतगंज चौराहे पर लगभग 20 साल से भिक्षावृत्ति में लगे आशू ने बताया कि इस धंधे में वह लगभग पांच साल से है। यहां कमाई ठीक-ठाक हो जाती है, हालांकि उसने यह बताने से मना कर दिया कि किसके लिए काम करता है। उसने कहा कि हम लोगों के हफ्तेवार चौराहे बंधे होते हैं। किसी एक जगह पर टिकना मना है। मुझे यही ठीक लगता है, मैं किसी और काम में जाना नहीं चाहता हूं। हनुमान सेतु के सामने बैठकर भिक्षा मांगने वाले सूरज भी इस धंधे में 20 साल से है। वह विकलांग के लिए गाड़ी खींचता है। उसने कहा कि सरकार की कोई भी योजना उसके लिए ठीक नहीं है, उसकी एक दिन की कमाई लगभग 1500 रुपए है। नगर निगम की योजना के बारे में बताने पर उसने कहा कि हम कूड़ा कलेक्शन से कितना पा जाएंगे? यहां पर बैठे-बैठे भरपेट भोजन भी मिलता है। हम शेल्टर हाउस में एक दो बार जा चुके हैं, लेकिन वहां पर काम ज्यादा है। भूखे भी रहना पड़ता है, इससे ठीक यही है। एक अन्य बुजुर्ग भिखारी रामदुलारे जो इस पेशे में लगभग 40 साल से हैं, बाराबंकी से यहां रोज आते हैं। उन्होंने कहा, नगर-निगम की सुविधा हमारे लिए नहीं ठीक है. हम तो यहीं पर ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं।

समय-समय पर होती है ट्रांसफर

भिखारियों के जीवन पर काम करने वाले एक पत्रकार अभिषेक गौतम ने बताया कि भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों का एक सेंडिकेट चलता है। हर दिन और घंटे में बदल-बदल कर ये लोग मंदिरों और चौराहों पर बैठते हैं। ये अपने जीवन से खुश रहते हैं। अगर बदलाव की कोई बात करो तो मना कर देते हैं।


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