फिर मरने लगी रिवालसर की मछलियां

रिवालसर—तीन धर्मों के आस्था की प्रतीक एवं विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक रिवालसर झील में पल रही मछलियों पर फिर से संकट के बादल घिर आए हैं। सोमवार को हुई भारी वर्षा से नगर की नालियों में बह रहे गंदे पानी का रुख झील में हो जाने के कारण पहले से प्रदूषण की मार झेल रही झील और प्रदूषित हो गई।  झील में ऑक्सीजन की कमी हो जाने से मंगलवार सुबह तक लगभग पांच दर्जन मछलियां मर चुकी थीं और कुछ तड़प रही थीं, जबकि हजारों की संख्या में झील के किनारे ऑक्सीजन को लेकर एकत्रित होते देखी गइर्ं।  झील का पानी प्रदूषित हो जाने से मछलियों के मरने का सिलसिला जारी है। वहीं स्थानीय प्रशासन द्वारा फिश फीडिंग को लेकर लचीलापन दिखाए जाने के कारण टनों के हिसाब से लोग मछलियों को चारा डाल रहे हैं, जो झील की सतह में समा रहा है। इससे उसकी सड़ांध पूरे झील क्षेत्र में फैली हुई है। स्थानीय दुकानदार ऐसे बिस्कुट के पैकेट भी बेचते देखे गए, जो कि पूरे प्रदेश में कहीं नहीं मिलते हंै, केवल रिवालसर में ही मछलियों या बंदरों व कुत्तों के चारे के लिए बेचे जा रहे हंै। झील बचाओ अभियान में जुटी क्षेत्र की संस्था डीएजी के निदेशक नरेश शर्मा, अध्यक्ष अजय व संस्था के दर्जनों सदस्यों  ने बताया  कि ऐसे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच की जाए, क्योंकि यही खाद्य पदार्थ झील में समाकर जहर का काम कर रहे हैं और झील के वातावरण को प्रदूषित कर रहे हंै। डीएजी संस्था के ऑडिटर पुष्पराज शर्मा, लोमश संस्था के प्रधान चेतराम, पूर्व बीडीसी उपाध्यक्ष बल्ह पवन ठाकुर सहित क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि रिवालसर झील को बचाने को लेकर सरकार ने 2017 में रिवालसर लेक डिवेलपमेंट अथारिटी का गठन किया था, जिसके अध्यक्ष एसडीएम बल्ह को बनाया गया था। जिसकी तीन महीने में एक मीटिंग रखना जरूरी रखा गया था, लेकिन पिछले 9 महीनों में एक भी मीटिंग न होना प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में हुई बैठकों का न तो प्रशासन के पास रिकार्ड है और न ही बैठकों में लिए फैसलों को अमल में लाया गया है। वहीं नगर पंचायत अध्यक्ष लाभ सिंह ने कहा कि मरी हुई मछलियों को झील से निकालकर दफना दिया जाएगा।a