बचपन के शौक ने कैंटीन में मंजवाए बरतन अब बना दिया स्टार

By: Jun 26th, 2019 12:05 am

बचपन के शौक के चलते ही कालेज कैंटीन में जूठे बरतन मांजने पड़े और फिर उसी शौक ने वह दे दिया जितने की कभी आस भी नहीं की थी। यह कहना है आज के समय में हरफानमौला गायक हंसराज रधुवंशी का। गायक हंजराज रधुवंशी मूलत जिला सोलन की तहसील अर्की के अंतर्गत गांव मांगल से संबंध रखते हैं। हंसराज के पिता प्रेम लाल पेशे से कारपेंटर हैं और माता लीला देवी गृहिणी हैं। घर में हंसराज सबसे बड़े हैं उनके अलावा दो छोटे भाई- बहन भी हैं। हंसराज के छोटे भाई मंजीत रघुवंशी एचडीएफसी बैंक सोलन में कार्यरत हैं उनकी छोटी बहन वैटरिनरी फार्मासिस्ट हैं। हंसराज रघुवंशी ने अपनी दसवीं व जमा दो की परीक्षा जिला बिलासपुर से उर्त्तीण की, जिसके बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्होंने एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर में बीकाम संकाय में दाखिला लिया। हंसराज ने प्रथम वर्ष की शिक्षा उर्त्तीण की और इसके बाद अपनी आवाज के दम पर नाम कमाना चाहते थे, लेकिन हंसराज इसमें सफल नहीं हो पाए। इसके चलते हंसराज बीकॉम द्वितीय वर्ष में चार बार फेल हुए। हंसराज ने अपनी शिक्षा मध्य में ही छोड़कर दिल्ली जाकर जॉब करने का निर्णय लिया। गर्मी के मौसम में हंसराज को नौकरी करना मुश्किल हो गया और हंसराज ने एक बार फिर पढ़ाई की अहमियत को समझा और चार माह बाद ही वापस सुंदरनगर आ गए और फिर कालेज में बीए संकाय में दाखिला लिया और संगीत विषय  की शिक्षा ग्रहण करना शुरू कर दी। हंसराज ने घर में आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण घर से पैसा मांगना बंद कर दिया और कालेज की कैंटीन में नौकरी करना शुरू कर दी।

हंसराज के मन में गाना लांच करने की चाहत थी, जिसके लिए हंसराज ने पैसे इकट्ठे किए और अपना पहला गाना बाबाजी लांच कर दिया। हालांकि उस दौर में यू-ट्यूब पर लोग इतना ज्यादा गाने नहीं सुनते थे। गाने से अच्छा रिस्पांस आया और कालेज के छात्र छात्राओं में हंसराज कैंटीन हैल्पर के साथ-साथ गायक के रूप में भी उभरते रहे। कालेज के छात्र जो कि हंसराज के मित्र बन चुके थे वे हंसराज के गानों के कायल हो चुके थे और कई बार हंसराज को अपने टूअर पर मनोरंजन के लिए भी साथ ले जाते थे। इसके बाद हंसराज ने पहाड़ी भाषा में ‘अम्मा जी’ गाना लांच किया, इसके बाद हंसराज रघुवंशी ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ थीम के लिए ‘बाबूल’  गाना लांच किया, जिसकी स्टोरी दिल छू लेने वाली थी। इस दौर तक हंसराज सांस्कृतिक संध्याओं में  गाने का मौका लेने के लिए सरकारी कार्यालयों में धक्के खाते थे, लेकिन हंसराज ट्रायल देकर भी सिफारिश न होने के वजह से रिजेक्ट हो जाते थे। हंसराज ने बताया कि उन्हें अधिकारियों की एक ही बात अंदर तक जख्म कर गई थी कि आपको किसने भेजा है, यानी किसकी सिफारिश से आए हो। इसके बाद हंसराज ने ‘फकीरा’ गाना गया तब यू-ट्यूब का दौर शुरू हो गया था और लोगों ने ‘फकीरा’  को काफी ज्यादा प्यार दिया। ‘फकीरा’ के बाद हंसराज को 10 से लेकर 20 हजार रुपए के शो मिलने शुरू हुए। इसके  बाद हंसराज को लोगों का प्यार मिलता रहा और इसके बाद ‘कसोल’ गाना गाया, जिसको भी मार्केट में बहुत अच्छा रिसपांस रहा। इसके बाद हंसराज का अगला गीत ‘गंगा किनारे’ आया। जो कि टे्रंडिग में रहा इसको भी जनता का भरपूर प्यार मिला। अगला गीत गांजा मार्केट में आया जिसको युवा वर्ग ने पसंद किया, लेकिन कहीं न कहीं कुछेक लोगों ने इस गीत का विरोध भी किया। असल में जिदंगी बदल देने वाला भजन हंसराज ने शिवरात्रि से कुछ दिन पहले लांच किया ‘डमरु’ वाला। इस गीत ने आज दिन तक के सभी रिकोड तोड़ दिए और हंसराज रघुवंशी को प्रदेश के साथ देश और दुनिया में भी पहचान दिला दी। वर्तमान में इस गीत को  करीब साढ़े आठ करोड़ लोगों ने यू-ट्यूब पर देख लिया है। इस गीत ने मात्र तीन माह में ही इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। हिमाचल में इस गीत से बड़ा हिट गीत आज दिन तक कोई भी नहीं रहा है। हाल ही में लांच किए भजन ‘सोहना नजारा तेरे मंदरा दा’ को लोगों का भरपूर प्यार मिला है। इसके बाद ‘नाटी बाबा पहले ते ही बदनाम’ लोगों के समझ पेश की है। इस नाटी को भी लोग खूब पसंद कर रहे हैं। हंसराज रघुवंशी बाबाजी नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वह अपने हेयर स्टाइल की वजह से भी चर्चा में रहते हैं। हंसराज को अब अपने गीतों की वजह से हिमाचल प्रदेश सहित बाहरी राज्यों में भी परफ्राम कर रहे हैं।

आप जहां भी जाओ अपनी देवभूमि को न भूलो…

अपने गीतों की मिट्टी कैसे चुनते हैं और खुद को खुद में कैसे देखते हैं?

मैं अपने गीतों की पंक्तियों को अपने आसपास की घटनाओं से ही चुनता हूं। मैं हर दिन कुछ नया और बेहतर करने का प्रयास करता हूं।  

किसी भी कामयाबी की पहचान तक पहुंचने के लिए क्या चाहिए और आपने यह कैसे बटोरा?

बुर्जुर्गों का आशीर्वाद, अपने काम के प्रति सच्ची लगन और मेहनत से ही हम अपनी जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं। 

अपनी आवाज से पहली मुलाकात कब हुई और कब लगा कि हसंराज रघुवंशी को संगीत के कीड़े ने काट लिया?

अपने दोस्तों -मित्रों को गाने सुनाता था, तो वे बहुत पसंद करते थे, लेकिन कभी मंच नहीं मिल पाया, तभी से ही संगीत के कीड़े ने काट लिया था, फिर जब स्वयं पैसा कमाना शुरू किया और गाने रिलीज किए उसके बाद लोगों का प्यार मिला।

कोई तो आदर्श होगा। क्या कैलाश खेर से प्रभावित रहे या कोई है जो मिसरी बनकर कानों में घुल जाता है?

एआर रहमान मेरे सबसे पसंदीदा कलाकार हैं। कैलाश खैर व मुकेश भी बहुत अच्छे हैं, उनके गाने भी मुझे पसंद हैं।

लोक संगीत में अपनी धुन जमाने के लिए अंदाज, स्टाइल या आगाज को अहमियत देते हैं?

मेरा कोई ऐसा विशेष प्लान नहीं रहा है, लेकिन मुझे जिन लोगों ने पसंद किया है, वह प्रश्न में लिखी तीनों चीजों के कारण मिला है। यह बात भी जरूर है कि मुझे अपना अंदाज पसंद है।

संगीत में दक्षता एवं लोकप्रियता हासिल करने के लिए आपकी मेहनत, सुरसाधना या परंपरा क्या है?

किसी भी कार्य को करने में सबसे अहम रोल तो मेहनत का ही रहता है। मैंने जो भी किया सच्चे दिल और कड़ी मेहनत से किया, इसके परिणाम आपके सामने हैं।

क्या आप हिमाचली संगीत का प्रतिनिधित्व करते हुए आगे भी इसी रास्ते पर चलेंगे या किसी बड़े इरादे की मंजिल का पीछा कर रहे हैं?

मैं देवभूमि हिमाचल का दीवाना हूं, मैं कहीं भी पहुंच जाऊं कभी अपनी जमीन नहीं भूल सकता और साथ ही अपने प्रोजेक्ट में हिमाचली संगीत को जोड़ने का प्रयास जरूर करूंगा।

हिमाचली मंचों से रघुवंशी की सबसे बड़ी शिकायत। होना क्या चाहिए?

हिमाचल के मंचों में सबसे बड़ी शिकायत सिफारिश की है। इसमें जनता से सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से सुझाब लिए जाने चाहिएं कि कलाकारों में वह इस बार किसे सुनना चाहते हैं। साथ ही संघर्ष कर रहे युवाओं के लिए ऑडिशन होने चाहिएं।

आपके लिए शोहरत और संतुष्टि के मायने क्या हैं?

मेरे लिए मेरा कर्म ही मेरी शोहरत है। मुझे जिस काम में संतुष्टि नहीं आती तो मैं उसे किसी भी शर्त पर नहीं करता हूं।

संगीत के प्रति दीवानगी का असर आपके व्यक्तित्व को रेखांकित कर महसूस करना कुछ अलग दास्तान है?

मैं संगीत से प्यार करता हूं, मेरे रोम-रोम में संगीत बसा हुआ है और वही मेरे कार्य और मेरे व्यक्तित्व में झलक रहा है।

गायकी में गुरु का महत्त्व आपके लिए किसी हस्ती से जुड़ता है या रियाज के दौरान खोजने की निरंतरता रही है?

गाने गाना मैंने शौक के तौर पर शुरू किया, लेकिन यह बात भी है कि मैं कई बार सीखने के लिए पहुंचा हूं और मैंने कई गुरुओं से सीखा भी है।

सफलता में कदम न ठिठकें, न बहकें और मर्यादित रहने की तमाम कसौटियों के बीच, रघुवंशी की अपनी मौलिकता क्या है?

जमीन से जुड़े रहना मेरी प्राथमिकता रहती है। महाकाल का आशीर्वाद, मेरे जीवन के संघर्ष के कुछेक पल और लोगों का प्यार ही मुझे मर्यादा में रखता है।

 पाने की भूख में, जीवन के कितने द्वार देखते हैं। कठिन पल साथ देते हैं या सहज होने से डर लगता है?

हर इनसान कुछ बड़ा करना चाहता है, मैं भी करना चाहता हूं, लेकिन यह बात जरूर है कि मैं चाहता हूं कि मैं अपने माता-पिता की जिंदगी और बेहतर बनाने के लिए कुछ हटकर करूं।

कोई गीत जिसे रघुवंशी खुद को सुनाता है?

बालीवुड की फिल्म जोकर का गीत ‘न जाने कहां गए वो दिन’ मेरे दिल के बहुत करीब है। उसे मैं बार-बार सुनता भी हूं और गुनगुनाता भी हूं।                      नितिन राव, धर्मशाला


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