बाहरवीं शताब्दी के अंत में सिरमौर पर उग्रचंद का शासन था

By: Jun 26th, 2019 12:04 am

 जुब्बल की परंपरा और इतिहास के अनुसार बाहरवीं शताब्दी के अंत में सिरमौर पर उग्रचंद नाम के राजा का शासन था। सिरमौर का इतिहास और परंपरा उस राजा को मदन सिंह कहता है, परंतु यह बात इसलिए ठीक नहीं लगती है कि उस काल में नाम के साथ सिंह जोड़ने की परंपरा नहीं थी और न ही किसी और राजा के साथ ‘सिंह’ का उदाहरण मिलता है…

गतांक से आगे …

जुब्बल रियासत ः यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आठवीं, नौवीं शताब्दी में जब कन्नौज पर राठौड़ों का आधिपत्य था तब किसी उद्यमी राठौड़ राजकुमार ने  मैदानी भाग से आए अन्य राजपूतों की तरह सिरमौर में आकर अपने आपको स्थापित कर लिया हो। एक संभावना यह भी हो सकती है कि कन्नौज के किसी राठौड़ वंशी राजा ने सिरमौर क्षेत्र के प्रशासन को चलाने के लिए अपने परिवार के किसी राजकुमार को वहां का प्रांतीय प्रशासक नियुक्त किया हो। बाद में जब केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई या समाप्त हो गई हो तो उस शासक के वंशज अपने आपको शक्तिशाली बनाकर स्वतंत्र हो गए और सिरमौर राज्य की नींव डाल दी, परंतु वह प्रथम व्यक्ति कौन था, क्या नाम था, इसका भी कोई प्रमाण नहीं मिलता। फ्रांसिस हेमिल्टन ने लिखा है कि जब राठौड़ यहां आए तो उस समय सिरमौर क्षेत्र खशों (भाटों और कुनेतों) के अधीन था। राठौड़ों के यहां पहुंचने तक इस क्षेत्र में ब्राह्मण लोग भी नहीं बसे थे। आगे लिखा है कि राठौड़ों का इस क्षेत्र पर 15 पीढि़यों तक अधिकार रहा।

जुब्बल की परंपरा और इतिहास के अनुसार बाहरवीं शताब्दी के अंत में सिरमौर पर उग्रचंद नाम के राजा का शासन था। सिरमौर का इतिहास और परंपरा उस राजा को मदन सिंह कहता है, परंतु यह बात इसलिए ठीक नहीं लगती है कि उस काल में नाम के साथ सिंह जोड़ने के परंपरा नहीं थी और न ही किसी और राजा के साथ ‘सिंह’ का उदाहरण मिलता है। ऐसे उदाहरण बहुत मिलते हैं जहां राजा अपने नाम में बाद ‘चंद’ शब्द को जोड़ते थे। इनमें त्रिगर्त (कांगड़ा), बिलासपुर, कुमाऊं प्रमुख थे। अतः जुब्बल का विवरण युक्ति संगत लगता है।

उग्र चंद के राज्य की सीमा बहुत दूर तक फैली हुई थी। श्रुति के अनुसार यह सीमा उत्तर में नोगड़ी नदी तक फैली हुई थी। राज्य के उत्तरी भाग में स्थित हाटकोटी का प्राचीन नगर प्राचीन मंदिरों और तीर्थ स्थल के लिए प्रसिद्ध था। यह नगर यमुना की सहायक नदी पब्बर के दाहिने किनारे पर बसा है। यहां पर दुर्गा, शिव और कई महत्त्वपूर्ण मंदिर हैं। राजा उग्रचंद बारवहीं शताब्दी (1195) ई. के अंतिम चरण में देवी के दर्शन करने तथा ग्रीष्म ऋतु को बिताने के लिए अपनी रानी तथा पुत्रों के साथ हाटकोटी आए।

जब राजा, रानी और तीनों पुत्र हाटकोटी के पास अपने सूनपुर राजप्रसाद में थे तो राजा को राज्य के किसी आवश्यक कार्य हेतु अकस्मात ही वापस सिरमौरी ताल लौटना पड़ा और रानी तथा तीनों पुत्रों को हाटकोटी के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण वीर भाट के संरक्षण में रखा गया। रानी तथा तीनों पुत्रों को हाटकोटी छोड़कर एकदम वापस सिरमौरी ताल लौटने के कारण यह भी हो सकता है कि इसी अवधि में दिल्ली तथा उत्तरी भारत के मैदानों पर मोहम्मद गौरी के आक्रमण बराबर हो रहे थे ।


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