बिना सिंचाई के भी खेती संभव
पालमपुर—प्रदेश के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर किसानों के पास सिंचाई की व्यवस्था नहीं है और किसानों को कृषि के लिए पूरी तरह बारिश के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में जिस वर्ष अच्छी बारिश होती है, उस वर्ष किसानों को सही उत्पादन मिलता है, जबकि कम वर्षा होने पर भारी नुकसान झेलना पड़ता है। ऐसे में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के जनक पद्मश्री सुभाष पालेकर ने सिंचाई सुविधा से वंचित रहे क्षेत्रों के लिए प्राकृतिक खेती विधि की तकनीक दी है। प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में प्राकृतिक खेती के छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तीसरे दिन शुक्रवार को पद्मश्री सुभाष पालेकर ने बताया कि जिन क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था नहीं हैं उनमें भी इस खेती विधि को अपना कर बेहतर उत्पादन पाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जीवामृत, घनजीवामृत और आच्छादन करने से खेतों में पानी की जरूरत बहुत ही कम हो जाती है। सुभाष पालेकर ने छह जिलों से आए 800 से अधिक किसानों और अधिकारियों को प्राकृतिक खेती विधि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने किसानों को मिश्रित फसलों के लाभ के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
…जीवाणुओं की अहम भूमिका
प्रशिक्षण कार्यक्रम में पद्मश्री सुभाष पालेकर ने किसानों को कृषि में जीवाणुओं की भूमिका के बारे में जानकारी दी। देसी गाय के गोबर और मूत्र में अन्य पशुओं की तुलना में असंख्य जीवाणु पाए जाते हैं। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं, जो कृषि में अहम भूमिका निभाते हैं। दस जून तक चलने वाले कार्यक्रम में सुभाष पालेकर किसानों को सुभाष पालेकर प्राकतिक खेती विधि के बारे में पूरी जानकारी देंगे।
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