बूढ़ी लिफ्ट में मरीजों की जान

By: Jun 27th, 2019 12:05 am

शिमला—आईजीएमसी में 20 वर्ष पुरानी लिफ्ट के सहारे मरीजों की जान बचाने की जद्दोजहद की जा रही है। यह इतनी पुरानी है कि कभी भी इनकी सांसे फुल जाती है। कई बार मरीजों ने भी शिकायत की है कि इन लिफ्टों को बदला जाए जिसमें अब जाकर आईजीएमसी प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले में प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव तैयार करने का फैसला लिया है। आईजीएमसी प्रदेश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा मेडिकल कालेज माना जाता है। बताया जा रहा है कि आईजीएमसी में लगभग 12 से 14 लिफ्टे हैं जिसमें खासतौर पर लिफ्ट का इस्तेमाल ओटी और ब्लड टैस्ट करवाने के लिए मरीजो के लिए रहता है जिसमें अब हालत ऐसी है कि ओटी के लिए जाने वाली लिफ्ट खराब है और ब्लड टैस्ट करवाने के लिए भी लिफ्टों का इस्तेमाल मरीज नहीं कर पा रहे हैं। अस्पताल में लिफ्टों की हालत ऐसी है कि जो लिफ्टें खुली हैं वो खुली की खुली रह गई हैं। आप्रेशन के बाद कई बार मरीजों को संकरी लिफ्ट से ले जाना पड़ता है। अब आईजीएमसी ने इस मसले को लेकर एक बैठक का भी आयोजन किया है जिसमें लिफ्ट को बदलने को लेकर बातचीत की गई है। प्रदेश भर से प्रतिदिन आईजीएमसी में तीन से चार हजार मरीज इलाज करवाने आते हैं। कई मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें व्हील चेयर और स्ट्रेचर का इस्तेमाल करना पड़ता है वहीं कुछ मरीज बुजुर्ग होते हैं जिन्हें लिफ्ट में जाना जरूरी रहता है।

कई बार अटक चुकी हैं लिफ्टें

आईजीएमसी में कई बार मरीज पुरानी लिफ्ट होने के कारण चलती लिफ्ट में ही अटक गए हंै जिसमें इक्का-दुक्का केस ऐसे भी सामने आए हैं जिसमें मरीजों को बीच लिफ्ट में सांस की दिक्कत भी पेश आ चुकी है। आईजीएमसी में बच्चों को भी लिफ्ट में ले जाया जाता है जिससे बच्चों की भी सांस घुटन की शिकायत सामने आई है।

एसीएस ने भी कहा जल्द बदलो लिफ्टे

पिछले सप्ताह एसीएस हैल्थ के आईजीएमसी सर्वेक्षण में एसीएस हैल्थ आरडी धीमान ने आईजीएमसी प्रशासन को यह कहा है कि जल्द से जल्द पुरानी लिफ्टों को बदलने के लिए प्रोपोजल प्रदेश सरकार को सौंपा जाए। उन्होंने कहा कि अब अस्पताल में काफी रश है, जिसमें मरीजांे को असुविधा का सामना न करना पड़े। इसके लिए लिफ्टों का सही तरह से चलना जरूरी है।

शिमला में अब सुकून कहां बस कंकरीट ही बचा है

आजादी के बाद बहुत वर्षों तक शिमला के ऐतिहासिक रिज और माल रोड ने अपना इतिहास, संस्कृति और अस्तित्व जिस गरिमापूर्ण ढंग से बचाए रखा था, वह वर्तमान में कमजोर, अदूरदर्शी और लापरवाह प्रशासन की वजह से पूरी तरह हुड़दंगी कल्चर में तबदील हो गया है। एक समय था जब माल और रिज पर शांति व्ववस्था कायम रखने की दृष्टि से धारा 144 तक लगी रहती थी। माल के बीचोंबीच डिवाइडर लगे रहते थे, जिनके मध्य निरंतर पुलिस की टीमें दो-दो की टोलियों में दाएं-बाएं चलने की संस्कृति कायम रखे रहती थी। कोई मजदूर भारी सामान लेकर नहीं चल सकता था। न कोई चने और चाय चलते फिरते बेच सकता और न उत्सवों पर भजन-कीर्तन कर पाता और न लंगर-छबीलें लगाने की इजाजत होती थी। वर्तमान में लगता है शिमला प्रशासन तमाम कानून भूल गया है और कुछ समय सुकून से बिताने आए बाहर के पर्यटक और साथ स्थानीय लोगों को संस्कृति और मनोरंजन के नाम पर कानफोड़ू वाहियात संगीत और दारू-नृत्य के हवाले कर दिया गया है और यह सब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने और सिर पर हो रहा है। इस बार तो पंजाबी के नाम पर ऐसा संगीत तक ईजाद कर लिया गया, जैसे हिमाचली लोक संगीत कहीं रहा ही नहीं। रिज के ऊपर पुलिस बैंड बजाने की पुरानी परंपरा थी, जिनकी पहाड़ी धुनें कानों में सरसों के फूलों से शहद बीनती मधुमक्खियों के संगीत की तरह जाकर गजब का सुकून और मिठास दिया करती थी, लेकिन आज के हुड़दंगी शोर की आवाजें रिज पर चलते हुए ऐसे कानों में घुसती हैं, जैसे किसी मुहल्ले में छप्पर टोले के नंगधड़ंग फटे हुए कनस्तरों को पीट रहे हों। क्या यही हमारी पर्यटन संस्कृति के प्रति उच्च सोच है? क्या यही रिज और शिमला माल की ऐतिहासिकता और गरिमा को बचाए रखने की सरकारी सोच है? सांप वाली औरतों, मांगने वाले बच्चों, केतलियों में चाय बेचने वालों, भिखारियों, उत्सवों में लंगर व छबीलें लगाने वाले देशप्रेमियों से तो माल और रिज पर टहलते देश-विदेश के पर्यटक और स्थानीय निवासी पहले ही परेशान थे और अब ऊपर से यह कानफोड़ हुड़दंगी संस्कृति, हमारा सुकून छीन रही है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App