भविष्य की दौड़ में अतीत बनी प्रकृति

By: Jun 4th, 2019 12:05 am

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक, सुंदरनगर से हैं

 

पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूकता, सजगता तथा अपने दायित्वों का पूर्ण ईमानदारी से हर इनसान को निर्वहन करना होगा। हमें युवा पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण तथा इसके महत्त्व से परिचित करवाना होगा तथा युवा वर्ग की दिनचर्या में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को आदत में बदलना होगा…

हिमाचल प्रदेश में प्रदूषण का अंदाजा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा जारी रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। एनजीटी ने हिमाचल प्रदेश सहित देश के 22 राज्यों के सबसे प्रदूषित 102 शहरों की सूची जारी की है, जिसमें भारत के छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश के 07 शहर शामिल हैं। ये शहर पौंटा साहिब, काला अंब, बद्दी, परवाणू, नालागढ़, डमटाल तथा सुंदरनगर हैं। भारत के क्षेत्रफल का 1.7 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश में अवस्थित है। यहां पर देश की जनसंख्या का महज 0.57 फीसदी जनमानस ही निवास करता है। इतनी कम जनसंख्या वाले राज्य में प्रदूषण का बढ़ना हैरतअंगेज है।  भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध राज्य में यदि प्रदूषण अनियंत्रित बीमारी की तरह फैल रहा है, तो कहीं न कहीं मानव को इस स्थिति के लिए अपने आप को जिम्मेदार मानना होगा। प्रदेश के सोलन जिला में बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़  तथा सिरमौर का पौंटा साहिब, काला अंब औद्योगिकरण की वजह से विषैले हो चुके हैं।

इसे औद्योगिकरण की अंधी दौड़ कहें या प्रदेश की माली अर्थव्यवस्था को उभारने की लालसा की आड़ में पर्यावरण का क्षरण। उद्योगों से निकलने वाले विषैले केमिकल, गैसों तथा प्रदूषित जल से आज हमारे नदी-नालों में जहर घुल रहा है, जिससे किसानों की खेती भी जहरीली हो गई है। इन्हीं उद्योगों से निकलने वाला विषैला कचरा कई बार मीडिया में भी सुर्खियों में रहा है, लेकिन महज एक-दो दिन खबर बनने के बाद सारी घटनाएं ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। ऐसी व्यवस्था में पर्यावरण का क्षरण नहीं होगा, तो क्या होगा? आज पर्यावरण पूरे विश्व में एक गंभीर मुद्दा बन गया है। प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से युक्त वातावरण में सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता है। इन्हीं खतरों से अवगत करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 2018 के लिए ‘प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करो’ शीर्षक निर्धारित किया गया था। प्लास्टिक से ही पर्यावरण को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। प्लास्टिक के दुष्प्रभाव का एहसास हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी प्रदेश को काफी पहले ही हो चुका था। 1 जनवरी, 1999 को हिमाचल प्रदेश में रंगीन पोलिथीन बैग के उपयोग पर रोक लगाई गई। इसके बाद वर्ष 2003 में हिमाचल प्रदेश प्लास्टिक को बैन करने वाला भारत का पहला राज्य बना। वर्ष 2004 में 70 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक बैग्स के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। सरकार ने जुलाई 2013 से राज्य में पोलिथीन में बंद खाद्य पदार्थों और अन्य सामान की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया है। इन अभियानों के अतिरिक्त प्रदेश सरकार ने संतुलित आर्थिक एवं पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित बनाने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं। प्रदेश सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को पुरस्कृत करने की योजना भी बनाई गई है। हिमाचल भले ही भारत के मानचित्र पर एक छोटा सा राज्य है, परंतु यह पहाड़ी राज्य देश के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।  हिमाचल को प्रकृति ने अपार प्राकृतिक उपहार भेंट किए हैं। जनमानस को भी इसके संरक्षण के लिए उत्सुकता दिखानी होगी। जब तक जनमानस सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पर्यावरण की समस्याओं पर गंभीर नहीं होगा, तब तक पर्यावरण को बचाना मुश्किल होगा। पर्यावरण के क्षेत्र में प्रदेश सरकार बेहतरीन कार्य कर रही है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। गत वर्ष शिमला जल संकट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाहाकार मचाया था। इसके साथ-साथ प्रदेश के अन्य भागों में भी पानी की कमी देखने को मिली। पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल के जंगलों के जलने की खबरें सुर्खियों में हैं। हिमाचल प्रदेश जो प्लास्टिक संरक्षण में अच्छा कार्य कर रहा है, यदि वन संपदा को इसी तरह से जलाता रहा, तो क्या हम वास्तव में पर्यावरण को बचा पाएंगे? पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिन पर्यावरण के प्रति लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करके ज्वलंत मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है। इस वर्ष भी यह महोत्सव हमेशा की तरह बड़ी धूमधाम और पर्यावरण संरक्षण के संकल्पों के मद्देनजर किया जाएगा। इस वर्ष होने वाले पर्यावरण दिवस का थीम होगा- ‘एयर पोल्यूशन’ तथा शपथ का विषय होगा- ‘खुले में नहीं जलाना’। हर वर्ष वायु प्रदूषण लाखों लोगों की जिंदगियों को निगल रहा है।

ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि पर्यावरण को बचाने की राह पर इस वर्ष के संकल्पों के साथ हम कुछ नया कर पाते हैं या पर्यावरण समस्याओं की अनदेखी  के ढर्रे पर ही अग्रसर रहते हैं। मनुष्य तथा पर्यावरण दोनों परस्पर एक-दूसरे के इतने संबंधित हैं कि उन्हें अलग करना कठिन है। जिस दिन पर्यावरण का अस्तित्व मिट गया, उस दिन मानव जाति का अस्तित्व भी मिट जाएगा और यह आधारभूत सत्य है। पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूकता, सजगता तथा अपने दायित्वों का पूर्ण ईमानदारी से हर इनसान को निर्वहन करना होगा। हमें युवा पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण तथा इसके महत्त्व से परिचित करवाना होगा तथा युवा वर्ग की दिनचर्या में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को आदत में बदलना होगा। इसके अतिरिक्त पेड़ों के कटने से हमारे पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंचती है। मुख्य तौर पर पेड़ों से बनने वाले कागजों की खपत पर भी अंकुश लगाना होगा।

भारत डिजिटल इंडिया की तरफ तीव्र गति से बढ़ रहा है। हमें अपनी दिनचर्या में कागजों की अपेक्षा डिजिटल कार्य प्रणाली को अपनाना होगा, ताकि वृक्षों का कटाव कम हो सके तथा प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। हिमाचल प्रदेश सरकार ने हर वर्ष राज्य में वन महोत्सव के दौरान पौधे लगाने का लक्ष्य तथा ‘वन समृद्धि, जन समृद्धि’, ‘एक बूटा बेटी के नाम’ व ‘सामुदायिक वन संवर्धन योजना’ आरंभ की है। आइए इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए युवा वर्ग को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें तथा प्रदेश के सभी नागरिकों तक यह संदेश पहुंच जाए कि वृक्षों को लगाने के साथ-साथ उनके रखरखाव का भी पूर्ण ध्यान रखें।


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