योग से राष्ट्र निर्माण

By: Jun 21st, 2019 12:05 am

अदित कंसल

लेखक, नालागढ़ से हैं

11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को ‘विश्व योग दिवस’ के रूप में मान्यता प्रदान की है। 21 जून वर्ष का सबसे लंबा दिन है। प्रकृति, सूर्य व उसका तेज इस दिन सबसे अधिक प्रभावी रहता है। 21 जून, 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। तब से पूरी दुनिया के लोगों की योग के प्रति श्रद्धा व आस्था में वृद्धि हुई है। आयुष पद्धतियों के अंतर्गत आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी आते हैं। योग भारत की प्राचीन परंपरा की अमूल्य विरासत है। अति खेदजनक है कि आज हमारे विद्यार्थी नैतिक व चारित्रिक पतन की ओर अग्रसर हैं। विद्यार्थियों की दिनचर्या दूषित है।

वे अनुशासन, मर्यादा, संयम, आत्मबल से वंचित होते जा रहे हैं। डा. वाईएस परमार, स्नातकोत्तर महाविद्यालय नाहन में एक छात्र ने वरिष्ठ प्रोफेसर पर थपड़ों व घूसों से हमला कर दिया। प्रोफेसर का कसूर केवल इतना था कि उसने कालेज प्रांगण में कार में जोर-जोर से म्यूजिक चला रहे बच्चों को रोका था। हाल ही में आईआईटी में पढ़ने वाली छात्रा ने इसलिए आत्महत्या कर ली, क्योंकि वह मोटी थी, यद्यपि परीक्षा में वह प्रथम आई थी। बाल कल्याण आयोग की फेसबुक अकाउंट रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश में 70 प्रतिशत विद्यार्थियों पर डाक्टर-इंजीनियर बनने का दबाव है। अधिकतर छात्रों ने इस दबाव व तनाव के लिए अपने मां-बाप को जिम्मेदार ठहराया। विद्यार्थी अवसादग्रस्त जीवन जी रहे हैं। असफलता से हतोत्साहित होकर आत्महत्या कर रहे हैं। विद्यार्थी नशे की चपेट में आ रहे हैं। प्रदेश में ओवरडोज से छात्रों की मौत ने सभी को सकते में ला दिया है। स्पष्ट है कि वर्तमान में विद्यार्थी नशा, सोशल मीडिया व जंक फूड के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है, जिसके कारण विद्यार्थियों की रचनात्मकता, उत्पादन क्षमता, एकाग्रता, मौलिकता, नवाचार, बौद्धिकता व सृजनात्मकता का हनन हो रहा है। मानवीय मूल्य व नैतिकता हाशिए पर धकेले जा रहे हैं।  विद्यार्थी असली जिंदगी से अलग वर्चुअल दुनिया में जी रहे हैं। समय प्रबंधन खराब हो रहा है।

जंक फूड के अत्यधिक प्रयोग के कारण विद्यार्थियों में तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, हिंसा, नकारात्मकता, उदासीनता, कुंठा व हताशा बढ़ रहे हैं। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि विद्यार्थियों को इन सब विकारों से बाहर निकाला जाए, ताकि उनका चरित्र निर्माण हो सके। यह केवल योग से ही संभव है। योग एक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ स्वस्थ जीने की कला व विज्ञान है।

योग से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक सभी पहलू विकसित होते हैं। यदि विद्यार्थी नियमित योग करें, तो उनमें नवीन ऊर्जा व शक्ति का संचार होगा। दिनचर्या नियमित व नियंत्रित हो जाएगी। प्रदेश सरकार को विद्यालयों व महाविद्यालयों  में योग को अनिवार्य विषय बनाना चाहिए। प्रत्येक विद्यालय में योग शिक्षक की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए। योग करवाने के लिए सेवानिवृत्त अध्यापकों, सामाजिक संस्थाओं व योग चिकित्सकों की  सेवाएं ली जा सकती हैं। विद्यालय की प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को योग के प्रति जागरूक करना चाहिए। विद्यार्थी निर्माण ही राष्ट्र निर्माण है।


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