योग से स्वस्थ जीवन

By: Jun 21st, 2019 12:05 am

आशीष बहल

लेखक, चुवाड़ी, चंबा से हैं

वर्तमान युग में जहां मनुष्य अपने स्वास्थ्य के लिए चिंतित रहता है, तो वहीं स्वस्थ जीवन के लिए कई प्रकार के साधन उपलब्ध करवाने का दावा किया जाता है। इनमें से सबसे अधिक प्रभावशाली है भारत की प्राचीन संस्कृति और पद्धति- ‘योग’। योग शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में कुछ तस्वीरें उभरती हैं, जिसमें कुछ सांस लेने की क्रियाएं, कुछ आसन, व्यायाम इत्यादि का ध्यान सबसे पहले आता है। योग कोई नई क्रिया नहीं है। यह हमारी कई हजार साल पुरानी ऋषि-मुनियों द्वारा तैयार की गई एक सांस्कृतिक विरासत है। इन्हीं योग क्रियाओं से प्राचीन समय में लोग खुद को स्वस्थ रखते थे। योग कई वर्षों से हमारे जीवन का हिस्सा रहा है, परंतु इसे पहचान और प्रसिद्धि कुछ दशकों में मिली है।

आज 21 जून, 2019 को पांचवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व मे मनाया जाएगा और लोगों में योग के प्रति जो उत्सुकता है, उससे यह साफ नजर आ रहा है कि भारत की यह प्राचीन विरासत अब भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में फैल चुकी है। ‘योग’ मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि कई शब्दों और विचारों को अपने अंदर समेटने का एक जरिया है। योग कोई ऐसा विषय भी नहीं कि इसे विचारों में पिरोया जा सके। योग तो एक क्रिया है, जो निरंतर इस जगत को चलायमान बनाए हुए है।  योग खुद को खुद से आत्मसात करने की एक सुनियोजित क्रिया है। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि योग क्या है? योग शब्द संस्कृत धातु ‘युज’ से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है। हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है। योग एक ऐसी क्रिया है, जो वैज्ञानिक ढंग से अध्यात्म को समझाती है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्त्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है।

पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं। पतंजलि योग दर्शन के अनुसार- ‘योगश्चित्तवृत्त निरोधः’। अर्थात चित की वृत्तियों का निरोध ही योग है। योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है। जीवन जीने की एक कला है योग। अनेक सकारात्मक ऊर्जा लिए योग का गीता में भी विशेष स्थान है।  किसी भी कार्य में मन, चित और ध्यान से उस कार्य में सफलता हासिल होती है और योग से भी मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे इनसान किसी कार्य को कुशलता से कर पाता है। कहा भी गया है कि ‘योग कार्यसु कौशलम’ अर्थात किसी कार्य को कुशलता से करना ही योग है। आओ मिलकर योग को अपने जीवन में उतार कर अपने विचार, व्यवहार को शुद्ध करें और समाज को भी नव चेतना दें, ताकि समाज निरोग्य हो। संसार के सब प्राणियों में प्रेम भाव बढ़े और योग के बल पर ही हम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अपनी विचारधारा को संसार के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं।

 


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