रियासतों के भविष्य के लिए गांधी जी से किया था परामर्श

By: Jun 12th, 2019 12:03 am

1948  के आरंभ में दिल्ली में एक बैठक की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि पहाड़ी रियासतों की एक शिमला हिल स्टेट्स यूनियन बनाए। इन्हीं दिनों बघाट के राजा दुर्गासिंह औ मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने दिल्ली में गांधी जी से भेंट की और  उन्होंने पहाड़ी रियासतों के भविष्य के बारे में परामर्श  किया। गांधी  जी ने उन्हें सलाह दी कि वे  वापस जाकर राजाओं और प्रजामंडल के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुला कर पहाड़ी रियासतों के भविष्य के बारे में फैसला करें…

गतांक से आगे …

बुशहर रियासत में प्रजामंडल आंदोलन :

1948  के आरंभ में दिल्ली में एक बैठक की जिसमें यह निर्णय लिया गया कि पहाड़ी रियासतों की एक शिमला हिल स्टेट्स यूनियन बनाए। इन्हीं दिनों बघाट के राजा दुर्गासिंह और मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने दिल्ली में गांधी जी से भेंट की और उन्होंने पहाड़ी रियासतों के भविष्य के बारे में परामर्श  किया। गांधी जी ने उन्हें सलाह दी कि वे वापस जाकर राजाओं और प्रजामंडल के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुला कर पहाड़ी रियासतों के भविष्य के बारे में फैसला करें। इसके फलस्वरूप बघाट के राजा दुर्गासिंह ने 26 से 28 जनवरी 1948 को एक सम्मेलन बुलाया जिसमें प्रत्येक रियासत से एक-एक प्रजामंडल के प्रतिनिधि और एक-एक राजा के प्रतिनिधि बुलाए गए। इस सम्मेलन में बुशहर से नेगी ठाकुर सेना ने राजा  के प्रतिनिधि के रूप में और सत्येदव बुशहरी ने प्रजामंडल के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि शिमला की सभी पहाड़ी रियासतों को मिलाकर इनका एक संघ बनाया जाए।  इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक समिति बनाई गई जो राजाओं तथा प्रजामंडल के प्रतिनिधियों से बात करें। इसके अध्यक्ष राजा दुर्गासिंह और उपाध्यक्ष  नेगी ठाकुर सेना बनाए गए। इसके आठ सदस्य थे। इनका एक कार्य यह भी था कि वह भारतीय स्टेट्स मंत्रलय से भी इस बारे में संपर्क स्थापित करें। इस सम्मेलन में राजा दुर्गासिंह तथा बुशहर के प्रजामंडल की प्रतिनिधि  सत्यदेव बुशहरी ने यह सुझाव रखा कि इस संघ का नाम ‘हिमाचल प्रदेश’ रखा जाए। इसी अवधि के केंद्रीय सरकार के स्टेट्स मंत्रलय ने 2 मार्च, 1948 को शिमला के सभी पहाड़ी राजाओं का एक सम्मेलन दिल्ली में  बुलाया और देश की बदलती परिस्थितियों को देखते हुए डनहें भारतीय संघ में विलीन होने का परामर्श दिया। पश्चिमी हिमालय का जो क्षेत्र सतलुज और तौंस नदियां के मध्य फैला हुआ है, 1948 ई. से पहले वह ‘शिमला की पहाड़ी रियासतों’ के नाम से जाना जाता। आज यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के जिला शिमला, सोलन के नामों से जाना जाता है। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र कुलिंद जनपद के अंतर्गत आता था। उठते-गिरते मौर्य, कुषाण, गुप्त और संभवतः मुखरी सम्राटों ने अपने-अपने स्वर्ण-काल में किसी न किसी रूप में वहां अपना प्रभुत्व जमाया था। पुरातन काल से ही यह भू-भाग खशदेश, कुलिंद देश, हिमाचल, जालंधर खंड आदि के नामों से संबोधित होता रहा है। नौवीं-दसवीं शताब्दी से लेकर पंद्रहवीं शताब्दी तक मैदानी भागों में राजपूत उद्यमियों ने इन पहाडि़यों में आकर अपने लिए छोटे-छोटे राज्य स्थापित किए। लेकर 1815 ई. तक यह क्षेत्र बारह और अठारह ठकुराइयों के नाम से प्रसिद्ध था।


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