शक्ति चंद राणा

By: Jun 13th, 2019 12:05 am

बैजनाथ

मृत्युभोज कितना जायज

आजकल सोशल मीडिया में मृत्युभोज को लेकर बहस जारी है। इस विषय को लेकर विद्वानों द्वारा अपने-अपने ढंग से तर्क-वितर्क दिए जा रहे हैं। कुछ का मत है कि जिस घर में किसी प्राणी का स्वर्गवास हो गया हो, वहां पर भोजन और जल ग्रहण करना धर्मसम्मत नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि उस कुल के लोगों की शुद्धि तक उस घर में भोजन, जिसे प्रेतभोजन या प्रेतान्न कहते हैं, कर लेने में कोई हर्ज नहीं है, परंतु कुल के बाहर वालों के लिए उस शुद्धि तक जल ग्रहण भी निषेध है। एक तर्क दिया जाता है कि यदि मृत्युभोज पर रोक लग जाती है, तो दिवंगत पितरों को भूखा रहना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में पितृकोप का भंजन बनना पड़ेगा। मृत्युभोज को वास्तव में कितने भी तर्क-वितर्क देकर हम सही ठहराने की कोशिश क्यों न कर लें, लेकिन सभ्य, संवेदनशील और विवेकशील व्यक्ति की अंतरात्मा उसे मृत्युभोज ग्रहण करने की अनुमति नहीं देती। इसका मुख्य कारण यह है कि जिस घर में शोक और दुख की स्थिति हो, वहां भोजन ग्रहण करना संवेदनहीनता ही प्रतीत होती है। अतः ऐसी चली आ रही रूढि़यों का समाप्त होना समाज हित में होगा। इससे बेहतर यह  है कि यदि शोकग्रस्त परिजन अपने दिवंगत पितृ के लिए कुछ अर्पण करना ही चाहते हैं तो वे जरूरतमंदों, किसी मंदिर में भूखे भिखारियों, वृद्धाश्रम अथवा अनाथालयों में क्रिया शुद्धि के पश्चात दान कर सकते हैं। बैजनाथ क्षेत्र के मशहूर विद्वान पंडित रवि शर्मा के साथ इस विषय पर विस्तृत चर्चा के पश्चात उनका मत है कि मृत्युभोज मात्र गोत्र के लोगों के लिए ही कहा गया है। दसवें दिन सबके लिए धाम रूप में अथवा एक वर्ष बाद बारखी के दिन धाम का आयोजन भी शास्त्रसम्मत नहीं है। जो दस दिन तक गऊ पिंडदान, दीपक जलाए रखने की परंपरा, भूमि पर सोने की बातें आज आधुनिकता के नाम पर त्यागी जा रही हैं, जबकि ये सभी प्राणी के लिए आवश्यक बताई गई हैं। चतुर्वार्षिक श्राद्ध तक सारी शुद्धि के पश्चात यदि कोई चाहे तो अपने सारे गांव को भोजन करवाने की शास्त्रों में पूरी सहमति से आज्ञा है अर्थात एक भव्य भोज का आयोजन कर सकते हैं। इस विवेचना के उपरांत यह आपकी अपनी सोच-समझ, अंतरात्मा पर छोड़ देते हैं कि आपको क्या उचित लगता है।  एक वाक्य हमारे इस मार्ग को बिना शक-संदेह के प्रशस्त करने को बहुत है- ‘महाजना येन गतः सः पंथा’ अर्थात- बडे़ लोगों ने जो मार्ग अपनाया है, तू भी उसी पर चल, वही उचित मार्ग है। उससे भटक कर खो जाने का भय अवश्य है।

 


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