शिमला का संस्थागत चरित्र

By: Jun 21st, 2019 12:05 am

शिमला के अपने संघर्ष हैं और इन्हीं से झांकते अतीत को अपनी विरासत खोने का भय है। इसके कई कारण व तर्क हो सकते हैं, लेकिन शिमला का इतिहास आज भी उन्हीं पत्थरों पर जीता है, जो कभी ब्रिटिश हुकूमत को चिन्हित करते स्थापित हुए थे। शिमला अपने आप में संस्थागत चरित्र का चयन स्थल रहा है और इसीलिए आरट्रैक जैसे मुख्यालय का महत्त्व महज एक कार्यालय नहीं। शिमला के संस्थागत स्वरूप में आरट्रैक मुख्यालय का होना भारतीय सैन्य दस्तावेजों का प्रतिष्ठित परिवेश है। महू से शिमला में आरट्रैक एक अवधारणा के तहत 1993 में अवतरित हुआ था, तो कार्यालय की भूमिका इस दौरान भारत की सामरिक रणनीति का अहम किरदार थी। अब इसे यहां से स्थानांतरित करने का लगभग खाका तैयार है और अगर ऐसा होता है तो शिमला में बसा सैन्य इतिहास एक बार फिर विस्थापित हो जाएगा। इससे पहले ग्रीष्मकालीन मुख्यालय के रूप में कभी सेना का झंडा यहीं फहराता था, तो बाद में वेस्टर्न कमांड का रुतबा भी छिन गया। बहरहाल संस्थान के पक्ष में हिमाचल के अपने तर्क हैं और इसीलिए कांग्रेस ने भी इसे मुद्दा बनाया है। हालांकि शिमला की अपनी भौगोलिक गतिविधियों के बीच ऐसे प्रतिष्ठानों को समय के अनुसार प्रासंगिक बनाए रखने की चुनौती बढ़ चुकी है। सेना के तर्क और राष्ट्रीय उद्देश्यों की कसौटी पर शिमला में ऐसे संस्थानों से केंद्र सरकारें अपने पांव खींच रही हैं। ऐसे में यह महज विषय न होकर शिमला के अतीत को भविष्य से जोड़ने की सबसे बड़ी परीक्षा के रूप में उभरा है। हम इसे महज शिमला के परिदृश्य में देखेंगे तो सैन्य प्रतिष्ठानों को पूरा हिमाचल नजर नहीं आएगा, लेकिन इनके साथ प्रदेश का भावनात्मक रिश्ता है। कहां तो यह मांग रही है कि अधिक से अधिक सैन्य प्रतिष्ठान प्रदेश में स्थापित हों, लेकिन किसी न किसी वजह का हवाला देकर अतीत के अध्याय भी छीने जा रहे हैं। आरट्रैक को शिमला से स्थानांतरित करने की जो भी वजह हो, लेकिन इसे मजबूरीवश न समझा जाए। अगर ऐसे संस्थान के विस्तार के लिए शिमला को अब उपयुक्त नहीं समझा जा रहा, तो विकल्प के रूप में हिमाचल में ही समाधान निकाला जाए। सोलन या सिरमौर में शिमला की निकटता के साथ ऐसे परिसर की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। दूसरी ओर ब्रिटिश पीरियड से हिमाचल में स्थापित सैन्य प्रतिष्ठान अब नई रूपरेखा की मांग करते हैं। अंग्रेजों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से कमोबेश ठंडे इलाकों या हिल स्टेशनों के आसपास शिविर जमाए थे, जिन्हें अब स्थानांतरित करने की जरूरत है। इस बीच एक नए सैन्य एरिया के रूप में पालमपुर के दामन में नई छावनी बनाने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में यह भी तय करना होगा कि हिमाचल में सैन्य प्रतिष्ठानों का विस्तार क्यों न ऐसे क्षेत्रों में किया जाए, जो भौगोलिक दृष्टि से मैदानी हों। ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, सिरमौर या कांगड़ा के मैदानी क्षेत्र इस लिहाज से बेहतर विकल्प हो सकते हैं। डलहौजी, धर्मशाला कैंट, शिमला या पालमपुर जैसे शहरों में पर्यटन संभावनाओं को देखते हुए, सैन्य संस्थानों का दबाव कम करना ही होगा। खास तौर पर पर्यटक सीजन के दौरान बढ़ते यातायात ने ऐसे शहरों की प्रशासकीय जरूरतों को कुंद करना शुरू किया है, तो निजात पाने का एक तरीका सैन्य संस्थानों की मौजूदगी को अन्यत्र स्थानांतरित करके पूरा हो सकता है। शिमला में आरट्रैक रहे, इसके लिए राजधानी को आज के परिप्रेक्ष्य में तैयार होना पड़ेगा। वर्षों से एरियल ट्रांसपोर्ट नेटवर्क की मांग पर शिमला में अगर कुछ हो नहीं रहा, तो आफत में इसका संस्थागत आचरण ही आएगा। शिमला की अपनी ऐतिहासिकता और विरासत को सहेजने-संवारने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है। हम शिमला को महज राजधानी या पर्यटक शहर मानकर इसके साथ अन्याय कर रहे हैं, जबकि इसके परिचय में गूंथे गए इतिहास को वक्त की जीवंतता में सक्रिय बनाए रखने की चुनौती है।


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