शीघ्र आएगा उपन्यास ‘नकटौरा’

By: Jun 2nd, 2019 12:04 am

चित्रा मुद्गल से सीधी बात

हाल ही में अमेठी क्षेत्र के गांव बरौलिया के पूर्व प्रधान एवं भाजपा कार्यकर्ता सुरेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई और अमेठी की नवनिर्वाचित सांसद स्मृति ईरानी द्वारा उनकी अर्थी को कंधा दिए जाने की घटना ने भारतीय समाज को चौंका दिया। आम तौर पर महिलाओं को अंतिम संस्कार की क्रियाओं से दूर रखा जाता है। ऐसे में स्मृति ईरानी द्वारा अर्थी को कंधा देने की घटना ने रूढि़वादी और शिक्षित समाज को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। यह संयोग मात्र है कि देश की विख्यात हिंदी कथाकार चित्रा मुद्गल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आवां’ की नायिका विमला देवी ने भी एक किरदार सुगंधा की सांप्रदायिक हत्या होने पर उसकी अर्थी को कंधा देकर वर्जनाओं को तोड़ दिया। इसी ज्वलंत विषय को लेकर लघुकथा-लेखक मुकेश शर्मा ने साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल से बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश :

प्रश्न : क्या किसी की अर्थी को किसी महिला द्वारा कंधा देना उचित है?

उत्तर : हमारे पंडित जी कहते थे कि स्त्री सृजन का विस्तार करती है। अर्थी को कंधा देना उसकी प्रकृति से मेल नहीं खाता। किंतु स्त्री होने के कारण उसके ऐसा करने को वर्जित नहीं किया जा सकता। इसलिए जहां मजबूरी हो, वहां महिलाएं ऐसा कर सकती हैं। तेरह दिन के अनुष्ठान को वे भी पूरा करेंगी। चूंकि स्त्री का मन मुलायम होता है, अतः सामान्य परिस्थितियों में उन्हें इन क्रियाओं से न जोड़ा जाए।

प्रश्न : क्या स्त्री को स्त्री होने की कीमत चुकानी पड़ती है?

उत्तर : स्त्री को लेकर जो वर्जनाएं बना दी गई हैं, मैं उनके विरुद्ध हूं। जैसे स्त्री को माहवारी हो तो किसी से बात न करे। यदि स्राव हो रहा है तो महिला को आराम चाहिए। यह उसकी प्राकृतिक जरूरत है। किंतु इसमें अतिवाद जोड़ दिया गया। छुआछूत होने लगा। धर्म के गलत नियम बना दिए गए। मैं इसके विरुद्ध हूं। आजकल पिता ही लड़की की मां को कहते हैं कि उसके लिए अच्छे पैड लाकर दो। यह बदलाव है। अब जैसे गांव में कहते हैं कि सिर पर पल्ला रखो। जैसे आजकल जींस है, हमारे समय में बैलबॉटम होती थी। महिलाएं पहनती थीं। मैंने भी गांव जाने पर पल्ला रखा, यह आदर प्रकट करने का प्रतीक है। लेकिन यह महिला पर थोपा न जाए। मन है तो पल्ला करें और नहीं है तो न करें, दबाव नहीं होना चाहिए। इसी तरह यदि कोई महिला मन से मजबूत है तो पिता के न रहने पर कंधा दे सकती है। आज वे हवाई जहाज उड़ा रही हैं, एमरजेंसी को डील कर रही हैं। संकीर्णता, रूढि़वाद, अंधविश्वास खत्म होना चाहिए। मेरे उपन्यास ‘आवां’ की एक महिला पात्र विमला देवी ने जब अर्थी को कंधा दिया तो लोगों ने शोर मचाया कि यह शास्त्र-सम्मत नहीं है। तब विमला देवी ने कहा कि जो धर्म-नियम औरत के विरुद्ध हैं, मैं उन्हें कंधा दे रही हूं। अब रूढि़यों का चश्मा उतारना होगा।

प्रश्न : क्या भारतीय समाज इसे स्वीकार कर लेगा?

उत्तर : स्वीकार करना चाहिए। हमें समय के अनुसार बदलना चाहिए। रजस्वला स्त्री अछूत नहीं है। यह सही है कि विध्वंसक कार्यों से दूर रखना उसका सम्मान है। किंतु यदि महिला मजबूत है तो वह सही निर्णय ले सकती है। उसे रूढि़वादी वर्जनाओं से मुक्त करना चाहिए।

प्रश्न : सांसद स्मृति ईरानी ने जो वर्जनाओं को तोड़ने वाला यह कदम उठाया, इस पर कुछ कहना चाहेंगी?

उत्तर : स्मृति ने जो हिम्मत दिखाई है, वह देखकर मुझे अच्छा लगा। दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी है। मेरे उपन्यास ‘आवां’ में जो उन्नीस साल पहले कहा गया, आज औरतें वही हिम्मत दिखा रही हैं। सामाजिक सरोकार के बिना सृजनात्मक साहित्य परिणति को प्राप्त नहीं होता। सृजन से बदलाव नहीं आता, यह कहना गलत है। मेरे उपन्यास ‘नाला सोपारा’ को पढ़ने के साथ ट्रांसजेंडर के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव आया।

प्रश्न : क्या इस दौर में साहित्य पढ़ा जा रहा है?

उत्तर : साहित्य पढ़ना थोड़ा कम हुआ है। सवा सौ करोड़ की आबादी में साहित्य जितना पढ़ा जाना चाहिए था, उतना पढ़ा नहीं जा रहा है। लेकिन आज भी साहित्य पढ़ने वाले कोई कम नहीं हैं। यह संख्या जितनी बढ़नी चाहिए थी, उतनी नहीं बढ़ पाई, लेकिन आने वाले समय में यह संख्या बढ़ेगी। तार्किकता का विकसित होना जरूरी है। मैं टीवी पर तर्कसंगत टीवी सीरियल को ही देख पाती हूं। कौन मंत्री बनेगा, ऐसी खबरों में अटकलें तो हो सकती हैं, लेकिन तार्किकता तो विकसित हो। पूअर एंटरटेनमेंट नहीं होना चाहिए। पहले सत्तर फीसदी प्रकाशन मिशन भाव से होता था, लेकिन अब यही व्यापार भाव से हो रहा है।

प्रश्न : आप आजकल क्या नया लिख रही हैं?

उत्तर : आजकल अपने उपन्यास ‘नकटौरा’ का अंतिम भाग लिख रही हूं। गांव में जब घर से बारात जाती है तो स्त्रियां घर में रह जाती हैं। तब वे आपस में पुरुष का वेश धारण करके स्वांग करती हैं, पुरुषों की तरह गालियां भी देती हैं और पुरुषों के दबदबे को कायम करती हैं। यही नकटौरा कहलाता है। आज देश इसी नकटौरे से गुजर रहा है। यह चिंता का विषय है। 

-मुकेश शर्मा, मोबाइल नंबर : 9810022312.


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