सच्ची प्रार्थना

By: Jun 1st, 2019 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

आपका कभी ईश्वर से मिलना हो तो जानते हैं आप उन्हें क्या कहेंगे? अरे! मैं तो अपने भीतर आपसे मिल चुका हूं। ईश्वर आप में नृत्य करते हैं उस दिन जिस दिन आप हंसते और प्रेम में होते हो। सुबह हंसना ही सच्ची प्रार्थना है। सतही हंसना नहीं, बल्कि अंदर की गहराई से हंसना। हंसी आपके भीतर से आपके हृदय से आती है। सच्ची हंसी ही सच्ची प्रार्थना है। जब आप हंसते हो तो सारी प्रकृति आपके साथ हंसती है। यही हंसी प्रतिध्वनि होती है और गूंजती है, यही वास्तविक जीवन है। जब सब कुछ आपके अनुसार हो रहा हो, तो कोई भी हंस सकता है, लेकिन जब आपके विपरीत हो रहा हो और आप हंस सके तो समझो विकास हो रहा है। तो आपके जीवन में आपकी हंसी से मूल्यवान और कुछ नहीं। चाहे जो हो जाए इसे किसी के लिए खोना नहीं है। घटनाएं आती हैं और जाती है। कुछ तो सुखद होंगी और कुछ दुखद, लेकिन जो कुछ भी हो आप को वे छु न पाएं। आपके अस्तित्त्व के भीतर ऐसा कुछ है जो कि अनछुआ है। उस पर ही रहें जो अपरिवर्तनशील है। तभी आप हंसने के योग्य होंगे। हंसने में भी भेद है। कभी-कभी आप अपने आप को नहीं देखने के लिए या कुछ सोचने से बचने के लिए हंसते हो, लेकिन जब आप हर क्षण यह देखते हो और अनुभव करते हो कि जीवन हर क्षण है और जीवन का हर क्षण अपराजेय है, तो आपको कोई परेशान नहीं कर सकता। हंसी हमें खोलती है, हमारे दिल को खोलती है और जब हम आप पूछें , मैं उस मुक्ति को या अबोधता को अनुभव नहीं कर पा रहा हूं। मैं क्या करूं? आपके अस्तित्त्व के कई स्तर हैं। पहला शरीर का ध्यान रखें कि आपने पूरा विश्राम किया है, सही भोजन किया है और कुछ व्यायाम किया है। फिर श्वास पर ध्यान दें। श्वास की अपनी एक लय है। श्वास की उस लय को प्राप्त करके तन और मन दोनों को ऊपर उठाया जा सकता है। तब आप उन धारणाओं और विचारों को देखें जो कि आपके मन में सदैव बने रहते हैं। अच्छे, बुरे, सही, गलत, ऐसा करना चाहिए, ऐसा नही करना चाहिए, ये सब आपको बांध लेते हैं। हर विचार किसी न किसी स्पंदन या भावना से जुड़ा है। स्पंदनों को देखें और शरीर में अनुभव को देखें। भावना की लय को देखें। यदि आप देखेंगे तो आप कोई गलती नहीं करेंगे। आप के पास एक ही तरह की भावनाओं का पथ है, लेकिन आप इन भावनाओं को अलग कारणों से, अलग-अलग वस्तुओं से, अलग -अलग लोगों से, स्थितियों परिस्थितियों से जोड़ लेते हो। एक विचार को विचार के रूप में ही देखें, एक भावना को भावना के रूप में ही देखें, तब आप खुल जाएंगे। अपने आप में ईश्वरत्व को देख पाएंगे। देखना इन्हें अलग-अलग परिणाम देता है। जब आप नकारात्मकता को देखते हैं तो ये तुरंत समाप्त हो जाती हैं और जब आप सकारात्मकता को देखते हैं, तो वह बढ़ने लगती है। जब आप क्रोध को देखेंगे, तो यह समाप्त हो जाएगा और जब आप प्रेम को देखेंगे, तो यह बढ़ जाएगा। यही सर्वोत्तम और एकमात्र उपाय है। आने वाले हर विचार को देखें और उन्हें जाते हुए देखें। नकारात्मक विचारों के आने का एकमात्र कारण तनाव है। स्रोत स्वच्छ है तो मात्र सकारात्मक विचार ही आएंगे।

 


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