समानता की खोज

By: Jun 8th, 2019 12:05 am

सदगुरु  जग्गी वासुदेव

अभी इस समय 90ः से भी ज्यादा लोग अपनी शारीरिक और बौद्धिक योग्यताओं के बल पर जीते हैं, लेकिन आज आप जो कुछ भी कर सकते हैं वह सब भविष्य में मशीनें करेंगीं। कोई भी ऐसा काम, जो स्मृति या यादों को इकठ्ठा करके, उस तक पहुंच बनाकर, उस का विश्लेषण करके और उस स्मृति को प्रकट करके किया जाता हो। हर वो चीज जो आप इस समय खुद को तार्किक बुद्धि मानकर, उस बुद्धि के इस्तेमाल से कर रहे हैं, वह सब आने वाले समय में मशीनों द्वारा की जाएगी। जब मशीनें यह सब करने लगेंगीं, तो आप हर हाल में अपने भीतर के गहरे आयामों की खोज करने लगेंगे। वो दिन, एक अद्भुत दिन होगा, क्योंकि उसका अर्थ यह होगा कि हम छुट्टी पर होंगे। तब हम धन कमाने के लिए काम नहीं करेंगे और जीवन को संपूर्ण रूप से एक अलग तरीके से देख सकेंगे। आप जिसे अपना शरीर कहते हैं और जिसे अपना मन कहते हैं वह असल में स्मृतियों या यादों का एक ढेर भर है। स्मृति ही वह चीज है, जिसने आप को वह बनाया है जो आप हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई पुरुष एक रोटी का टुकड़ा खाता है तो कुछ देर बाद वह रोटी का टुकड़ा एक पुरुष बन जाता है, अगर एक स्त्री उसे खाती है तो वह रोटी स्त्री बन जाती है, अगर एक कुत्ता उसे खाता है तो वह कुत्ता बन जाती है। आप कह सकते हैं कि रोटी बहुत ही होशियार है। पर असल में रोटी इसमें कुछ नहीं करती, उस सिस्टम की स्मृतियां ही उस रोटी के टुकड़े को पुरुष, स्त्री या कुत्ता बनाती हैं। मानव की तार्किक बुद्धि ने जो भी चीजें पैदा की है वे छोटे-छोटे द्वीपों की तरह हैं, जिनमें तकनीक भी शामिल है। चेतना वह समुद्र है जिसमें हम रहते हैं। आप के शरीर की संरचना भी अपने आप में स्मृति या याददाश्त का एक आयाम है। स्मृति एक तरह से सीमा रेखा भी तय करती है, लेकिन बुद्धि का एक आयाम है, जिसे हम चित्त कहते हैं। आधुनिक शब्दों में हम इसे एक तरह से चेतना या जागरूकता भी कह सकते हैं। बुद्धि के इस आयाम में कोई स्मृति नहीं होती। जहां स्मृति नहीं होती वहां सीमा रेखा नहीं होती। जैसे-जैसे हमारी तकनीकी काबिलियत बढ़ती ह, हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हम अपने आप को अपनी तार्किक बुद्धि की सीमाओं से परे ले जाएं और बुद्धि के ज्यादा गहरे आयाम तक पहुंचें,वो आयाम जो हमारे अंदर मौजूद जीवन का स्रोत है। यदि कुछ भी करना है तो उसके लिए मानवीय ऊर्जा, समय व साधनों की कुछ मात्रा समर्पित करनी पड़ती है। इसलिए हमें चेतना में निवेश करना चाहिए। अब तक हम सिर्फ  जीवित रहने के लिए प्रयास करते रहे हैं, लेकिन जब ये तकनीकें यथार्थ बन जाएंगीं, तब अपना अस्तित्व बनाए रखना कोई मुद्दा ही नहीं रहेगा। जब अस्तित्व कोई मुद्दा ही नहीं होगा तो हम जरूर ही चेतना में निवेश करना शुरू करेंगे। लेकिन जितना जल्दी हम यह शुरू करेंगे, उतना ही उन नई संभावनाओं की ओर आगे बढ़ने पर समस्याएं कम होंगी, जो तकनीकों द्वारा प्रदान की जाएंगी।


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