सरकार का जिक्र और पैमाने

By: Jun 27th, 2019 12:04 am

संयोग था कि राष्ट्रपति अभिभाषण पर प्रधानमंत्री मोदी को जवाब 25 जून को देना पड़ा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह एक ‘काली तारीख’ है। 1975 में इसी तारीख की रात में आपातकाल की घोषणा की गई थी। सारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं, संस्थाओं, न्यायपालिका और मीडिया को ठप्प कर दिया गया। सेंसर के पहरे बिठा दिए गए। बेशक लोकतंत्र और देश की आत्मा को कुचला गया था। करीब 1 लाख नेताओं और विरोधी नागरिकों को जेलों में ठूंसा गया। यह 44 साल पुराने इतिहास का यथार्थ है। यदि इतिहास के सुखद और सकारात्मक पन्नों को भी पलटें, तो 25 जून, 1983 को भारतीय क्रिकेट टीम ने लंदन में एकदिनी मैचों का पहला विश्व कप जीत कर दुनिया को हैरान कर दिया था। कितना ऐतिहासिक और गर्वीला क्षण था वह। प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल को ही याद क्यों किया? विश्व कप का जिक्र तक क्यों नहीं किया? 2019 में राष्ट्रपति अभिभाषण का जवाब प्रधानमंत्री ने यह क्यों दिया, क्योंकि अभिभाषण में आपातकाल का जिक्र तक नहीं है। राष्ट्रपति कोविंद ने अभिभाषण के जरिए मोदी सरकार-2 का आगामी पांच साल का एजेंडा देश के सामने रखा था। उसमें आपातकाल शामिल नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी जवाब के लिए ऐसा बही-खाता ले आए, जिसमें गांधी परिवार के लिए सिर्फ अपराध-बोध ही था। प्रधानमंत्री ने ‘छोटी-बड़ी’ लकीर और ‘ऊंचाई’ के जरिए कांग्रेस की सियासी गिरावट पर ही तंज कसे। उनके निशाने पर गांधी परिवार ही रहा और सोनिया-राहुल गांधी की जमानत पर भी व्यंग्य किया। राष्ट्रपति अभिभाषण में तो इस परिवार का उल्लेख नहीं है। प्रधानमंत्री ने अभिभाषण के जवाब में विशुद्ध राजनीति की। इससे देश एकबारगी सोचने को बाध्य होगा कि प्रधानमंत्री के ‘न्यू इंडिया’ सपने का सच आखिर क्या है? बेशक देश के ज्यादातर घरों में बिजली पहुंच चुकी है। जहां नहीं पहुंची है, वहां भी उजालों का बिखरना तय है। करोड़ों घरों तक गैस का सिलेंडर पहुंचा, शौचालय बनाए जा रहे हैं, गरीबों को पक्के घर के लिए आर्थिक राशि मिल रही है, आयुष्मान भारत की मदद भी लोगों को हासिल हो रही है, किसानों और छोटे दुकानदारों की पेंशन का निर्णय भी कैबिनेट कर चुकी है। यदि यही ‘न्यू इंडिया’ को परिभाषित करते हैं, तो कमोबेश बेहतर हालात का सच स्वीकार किया जा सकता है। राष्ट्रपति अभिभाषण की विशेषताओं में ये भी शामिल हैं, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इसी साल 150वीं जयंती के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने देश की हरेक इकाई से सहयोग की अपेक्षा की है। उन्हें वह सहयोग भी दिया जाना चाहिए, क्योंकि गांधी सभी के ‘राष्ट्रपिता’ हैं। इसी के साथ यदि प्रधानमंत्री मोदी के 64 मिनट के जवाब में मुजफ्फरपुर में मरने वाले 170 बच्चों का कोई उल्लेख नहीं किया गया, जय श्रीराम और जय हनुमान के बलात नारों पर भीड़ जिनकी हत्याएं कर रही है, उस पर प्रधानमंत्री व्यथित नहीं हुए, यदि बेरोजगारी और घटते उत्पादन का जिक्र नहीं किया गया, तो प्रधानमंत्री का जवाब अधूरा और एकांगी है। देश की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिंह राव और डा. मनमोहन सिंह को ‘भारत रत्न’ सर्वोच्च सम्मान दिया गया या नहीं, यूपीए सरकार के दस सालों के कार्यकाल में वाजपेयी सरकार के अच्छे कामों का उल्लेख किया गया अथवा नहीं। मौजूदा पीढ़ी के ज्यादातर नौजवानों को आपातकाल का कड़वा और काला यथार्थ नहीं पता है। उनकी प्राथमिकता भी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार पर अपने सख्त रुख को फिर दोहराया है, जल संचय की गंभीरता को ग्रहण किया है, घर-घर नल के जरिए पानी पहुंचाना भी इन पांच सालों की उच्च प्राथमिकता है। बेशक उनका हौसला ऊंची उड़ान भरने का है, तो देश की शुभकामनाएं और समर्थन उनके साथ है। उन्हें अभी देश ने प्रचंड जनादेश दिया है, लेकिन इंदिरा गांधी कैसे चुनाव जीतीं, राजनारायण कैसे हारे और फिर जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने क्या फैसला दिया, आज उन ऐतिहासिक घटनाओं की कोई प्रासंगिकता नहीं है। वक्त बहुत बदल चुका है, राजनीति के रंग और तेवर भी बदल चुके हैं, हमें पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनना है, ‘न्यू इंडिया’ बनाना है, तो चिंताएं और सरोकार भी नए ही होने चाहिएं।


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