सीताबाड़ी मेला

By: Jun 22nd, 2019 12:06 am

भारत में कई मेले और त्योहार मनाए जाते हैं। जिनके पीछे एक पूरा इतिहास छिपा होता है। भारत के प्रत्येक त्योहार और मेले के पीछे एक रौचक कहानी और कारण होता है, जो उस त्योहार की महत्ता को प्रदर्शित करता है। भारत में सीताबड़ी का मेला एक ऐसा ही उत्सव है जो भगावन राम की पत्नी देवी सीता को समर्पित है। सीता माता को एक आदर्श पत्नी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने कभी अपने सतीत्व को भंग नहीं किया। रावण की कैद में रहने के बाद भी वह सदैव पतिव्रता नारी रहीं। सीताबाड़ी मेला राजस्थान के शहर सीताबाड़ी में आयोजित होने वाला एक वार्षिक मेला है। बारां जिले में केलवाड़ा कस्बे के पास स्थित सीताबाड़ी मंदिर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। इसका हिंदूओं के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। सीताबाड़ी को वो पवित्र जगह माना जाता है जहां भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी को समाज से निकालने के बाद रहने की शरण दी थी। कहा जाता है जब भगवान राम ने सीता का त्याग कर दिया था, तब माता सीता अपने निर्वासन के बाद यहीं ठहरी थी, यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और इसी आश्रम में माता सीता ने अपने दोनों पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था, महर्षि वाल्मीकि ने लव-कुश को यहीं शिक्षा-दीक्षा दी और उन्हें धनुर्विद्या में पारंगत किया। श्रीराम की सेना और लव-कुश के बीच युद्ध भी यहीं हुआ माना जाता है जिसमें लव-कुश ने विजय प्राप्त की थी। मंदिर में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की बहुत ही सुंदर मूर्तियां विराजित हैं। यहां भक्त दूर-दूर से माता सीता और भगवान राम के दर्शन करने आते हैं। सीताबाड़ी के प्रसिद्ध जल कुंड में स्नान करके अपने मोक्ष की कामना करते हैं। यह मेला प्रतिवर्ष जून के महीने में सीताबाड़ी मेला नाम से लगता है, जिसमें दूर दराज से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

सीताबाड़ी मंदिर की खासियत

सीताबाड़ी का मेला सीताबाड़ी मदिंर के पास लगता है। भक्त माता सीता और भगवान राम के दर्शन करने इस मंदिर में आते हैं।  यह धार्मिक स्थल लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, वहीं यहां की प्राकृतिक छटा लोगों के मन को मोह लेती है, बारिश के समय प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को देशी-विदेशी पर्यटक निहारे बिना नहीं रह पाते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और मन को हर्षित करने वाला वनवासी क्षेत्र केलवाड़ा राजस्थान की आदिवासी संस्कृति की छटा तो बिखेरता ही है, वहीं कस्बे के पास स्थित सीताबाड़ी मंदिर त्रेता युग की यादें लोगों के मन में उद्वेलित कर देता है। भक्त मंदिर में दर्शन कर अपने आपको सभी भगवानों की कृपा का पात्र मानते हैं। सीताबाड़ी मंदिर के पास माता सीता और श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के खूबसूरत मंदिर स्थित हैं। यहां सात जलकुंड बने हैं, जिनमें वाल्मीकि कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूरज कुंड और लव-कुश कुंड प्रमुख जलकुंड हैं। सीताबाड़ी मंदिर के पास घने जंगल में सीता कुटी बनी हुई है। कहा जाता है कि निर्वासन के दौरान माता सीता रात्रि में यहीं विश्राम किया करती थीं।

सीताबाड़ी मंदिर की पौराणिक कथा

सीताबाड़ी मंदिर को लेकर पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वो स्थल है जहां श्री राम की पत्नी देवी सीता ने अपने पुत्रों यानी लव तथा कुश को जन्म दिया था। श्री राम द्वारा उनका त्याग करने के बाद देवी सीता अपने दोनों पुत्रों के साथ यहीं वास करती थीं। सीताजी को उनके देवर लक्ष्मण जी ने उनके निर्वासन की अवधि में सेवा के लिए इसी स्थान पर जंगल में वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ा था। एक किंवदंती है कि जब सीताजी को प्यास लगी, तो सीताजी के लिए पानी लाने के लिए लक्ष्मणजी ने इस स्थान पर धरती में एक तीर मार कर जलधारा उत्पन्न की थी, जिसे लक्ष्मण बभुका कहा जाता है। इस जलधारा से निर्मित कुंड को लक्ष्मण कुंड कहा जाता है। लव-कुश का जन्म स्थान होने के कारण सीताबाड़ी को लव-कुश नगरी भी कहा जाता है।


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