हिमाचल में फसल बीमा योजना कटघरे में

By: Jun 23rd, 2019 12:07 am

हिमाचल में फसल बीमा योजना पर बड़ा सवालिया निशान लग गया है। मौजूदा समय में एक लाख इकसठ हजार किसानों ने बीमा करवा रखा है, लेकिन उन्हें फसल के नुकसान पर किसी तरह का मुआवजा नहीं मिल रहा। अब इस मसले पर किसान संघर्ष समिति मुखर हो गई है। समिति का आरोप है कि गरीब किसानों के क्रेडिट कार्ड से सरकार ने 14 करोड़ का प्रीमियम तो ले लिया, लेकिन जब भुगतान की बारी आई, तो महज उन्हें पांच करोड़ रुपए दिए गए हैं। यह प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक स्थिति है।  यह सब खेल हिमाचल सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को फायदा देने के लिए रचा है। गौर रहे कि किसानों की भलाई के नाम पर यह योजना साल 2009 में शुरू हुई थी। इसमें आम और सेब को तेज तूफान और कम बारिश से होने वाले नुकसान पर किसानों को मदद मिलनी थी,पर हो ठीक इसके उलट रहा है। संघर्ष समिति प्रदेशाध्यक्ष संजय चौहान और ठियोग से विधायक राकेश सिंघा ने इस मसले पर जयराम सरकार को जमकर घेरा है। एसडीएम ठियोग के जरिए सीएम को भेजे ज्ञापन में उन्होंने कहा कि कई बार कहने पर भी सरकार है कि टस से मस नहीं हो रही। उन्होंने किसानों की शिकायतों के प्रति एपीएमसी और सरकार के रवैये पर भी सवाल उठाए हैं।

रोहित सेम्टा, ठियोग

आढ़तियों को भरनी पड़ेगी 50 लाख की बैंक की गारंटी

आढ़तियों की मनमानी रोकने के लिए हिमाचल में अब तक का सबसे बड़ा एक्शन प्लान बन गया है। प्रदेश में सेब सीजन शुरू होने जा रहा है। जयराम सरकार इस बार बाहरी कारोबारियों को कोई ढील नहीं देना चाहती। तय हुआ है कि एपीएमसी आढ़तियों से 5 से लेकर 50 लाख रुपए तक बैंक गारंटी लेगी। मुख्य कंट्रोल रूम फागु में स्थापित होगा, जहां ड्राइवरों-कंडक्टरों की आधार लिंक्ड रजिस्ट्रेशन होगी। इससे धोखाधड़ी पर रोक लगेगी। जहां तक ढुलाई का सवाल है, इसके लिए पिछले साल की दरें ही लागू होंगी। पिछले साल 95 लाख सेब पेटी प्रोडक्शन हुई थी, जबकि इस बार यह आंकड़ा दो करोड़ को टच करने का अनुमान है। सबसे अधिक प्रोडक्शन रोहडू में हुई है। गुरुवार को शिमला में उपायुक्त अमित कश्यप ने इसे लेकर सेब उत्पादक से बात की है।

 प्रतिमा चौहान , शिमला

जापानी मशरूम का मुख्य केंद्र बनेगा पालमपुर

दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवा चुका जापान का मशहूर मशरूम शिटाके अब पालमपुर में उगाया जाएगा। पालमपुर को शिटाके मशरूम का मुख्य केंद्र बनाने की तैयारी हो गई है। जायका और आईएचबीटी में करार होने के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। आईएचबीटी के वैज्ञानिकों की मानें, तो इसके बेहतर नतीजे सामने आए हैं। पांच करोड़ से स्थापित होने वाले इस केंद्र में किसानों को ट्रेनिंग भी दी जाएगी। प्रदेश कृषि विवि के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने बताया कि इस मशरूम से स्किन,ब्लड कौलैस्ट्रॉल, शुगर, जुकाम व फ्लू व स्तन कैंसर से लड़ने की क्षमता है। अमूमन यह मशरूम आठ से 12 महीने में तैयार होता है जबकि आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ने महज दो महीने में इसे तैयार किया है। फिलहाल शिटाके मशरूम का यह प्रोजेक्ट अगर ऐसे ही आगे बढ़ता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब हिमाचल इसका मुख्य केंद्र होगा। जयदीप रिहान, पालमपुर

गिरिपार के टमाटर को बुला रही दिल्ली

सिरमौर जिला के  गिरिपार में टमाटर की फसल तैयार हो गई है। इस टमाटर की दिल्ली में खूब डिमांड रहती है। पिछली बार टमाटर का एक क्रेट 800 रुपए तक बिका था। इसी से प्रेरणा लेकर इस बार किसानों ने यहां बड़े स्तर पर टमाटर उगाया है। एक अनुमान के अनुसार इस बार अकेले कफोटा में ही टमाटर के 10 लाख बूटे लगाए गए हैं। इसी तरह शिलाई,शिल्ला, बोकाला, डाबरा, पाब, मानल, कोग, मिनल बाग, भटाड़, मस्तभौज के रांगुआ, जुईनल, पभार, जामना, माशू, च्योग, कांडो, ठाणा, गुद्दी मानपुर, शरली, कुंबली, नेड़ा आदि क्षेत्रों में भी फसल बड़े स्तर पर लगाई गई है।   टमाटर व्यापारी बलबीर पुंडीर ने बताया कि अमूमन क्षेत्र का टमाटर जुलाई माह के पहले सप्ताह से मंडी पहुंचना शुरू होता था, लेकिन इस बार जून के तीसरे सप्ताह तक टमाटर मंडियों में पहुंचना शुरू हो जाएगा। उन्होंने किसानों से आह्वान किया है कि वे स्वयं मंडी जाकर अपनी फसल बेचें। किसी के बहकावे में न आएं।

दिनेश पुंडीर,पांवटा साहिब

हरिपुरधार में स्वयं सहायता समूह

साथी हाथ बढ़ाना

हरिपुरधार के कई महिला स्वयं सहायता समूह विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट तैयार करके खूब नाम कमा रहे हैं। यहां मौजूदा समय में करीब 10 स्वयं सहायता समूह रजिस्टर्ड हैं। इनमें चूड़ेश्वर महादेव महिला स्वयं सहायता अपने प्रोडक्ट के लिए प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में मशहूर हो गया है। इस समूह की ओर से तैयार किए जाने वाले शुद्ध गाय के घी व आर्गेनिक खेती से तैयार लोकल मसालों की खूशबू पूरे उत्तर भारत में बिखर रही है। समूह की महिलाएं आर्गेनिक खेती से तैयार कई प्रकार की दालें भी बाजार में महिलाओं के सभी प्रोडक्ट हाथों हाथ बिक रहे हैं। यही नहीं विदेशों से भी मसालों व दालों की डिमांड महिलाओं के पास आ रही है। हरिपुरधार की महिलाएं स्वाबलंबी बनना चाहती हैं। महिलाओं के पास उत्तर भारत के कई राज्यों के अलावा विदेशों से फोन पर माल की डिमांड आती है। बाहरी राज्यों व आस्ट्रेलिया व कनाडा आदि देशों के लिए कुरियर के माध्यम से माल भेजा जा रहा है।

संजीव ठाकुर, नौहराधार              

मसाला उत्पादन में पहला स्थान

हरिपुरधार में सबसे पहले 2012 में महिलाओं ने जय भंगायणी गु्रप की स्थापना की थी। इस गु्रप ने 2018 में मसाला उत्पाद तैयार करने व बेचने में प्रदेश भर में पहला स्थान प्राप्त किया था। वह अवार्ड 12 जुलाई, 2017 को विधानसभा अध्यक्ष डा. राजीव बिंदल ने इस गु्रप को प्रदान किया था।

एप्पल प्रोडक्शन बढ़ाने में नीदरलैंड करेगा हैल्प

हिमाचल में सेब की पैदावार बढ़ाने में नीदरलैंड्स की तकनीकी मददगार साबित हो सकती है। इसके लिए हिमाचल सरकार ने नीदरलैंड से मदद मांगी है। मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार एवं भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से नीदरलैंड्स के हेग में आयोजित दूसरे अंतरराष्ट्रीय ‘रोड-शो’ में हिमाचल के मजबूत पहलुओं, ध्यानपूर्वक बनाई गई नीतियों, उपयुक्त अवसरों एवं राज्य की निवेश को प्रोत्साहित करने की तत्परता के बारे में जानकारी दी। जयराम ठाकुर ने कहा कि नीदरलैंड विश्व में कृषि उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है और यह अपनी स्मार्ट लॉजिस्टिक्स, भंडारण एवं पैकिंग तकनीकों के लिए जाना जाता है, जिससे खाद्य पदार्थ अधिक समय तक ताजा रखे जा सकते हैं, जो कृषि में सहयोग को प्रमुख क्षेत्र बनाता है।

मैदानी क्षेत्रों में अभी भी नहीं हुई मक्की की बिजाई

इस बार बे मौसमी होने वाली बारिश ने किसानों व बागबानों को खासा नुकसान पहुंचाया है। बता दें कि प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में 80 फीसदी किसान मक्की की बिजाई नहीं कर पाए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि खेतों में बिजाई से पहले होेने वाली नमीं के लिए बारिश ही नहीं हो पा रही है। हालांकि मौसम विभाग की बार – बार चेतावनी जारी करने के बाद किसानों ने खेतों को पूरी तरह से बिजाई के लिए तैयार कर दिया है। मक्की से पहले खेतों में गोबर फेंकने से पहले, पहली बार खेतों को जोतने का कार्य भी पूरा कर दिया है। बावजूद इसके खेत पूरी तरह से बंजर पड़े हुए हैं। खेतों में नमीं न होने की वजह से मक्की के साथ इस मौसम में उगाए जाने वाले वेजिटेबल भी अभी तक किसान नहीं उगा पाए हैं। जानकारी के सोलन, बिलासपुर, कांगड़ा, हमीरपुर, नाहन, सिरमौर में सबसे ज्यादा मक्की की फसलों को उगाया जाता है। अब मिली जानकारी के अनुसार इन जिलों में खेत बंजर पड़े हुए हैं। यहां पर कोई भी किसी भी तरह के बिजों की बिजाई किसान व बागबान नहीं कर पा रहे हैं। बता दें कि  हिमाचल के जिन क्षेत्रों में किसानों ने मक्की की बिजाई की भी है, उन्होंने रासायनिक खाद्य का प्रयोग ज्यादा किया है। इससे प्राकृतिक खेती को दिए जाने वाले बढ़ावें को लेकर यह एक बड़ा खतरा है। जानकारी के अनुसार इस समय तक  प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में किसान मक्की की फसलों को दूसरी बार राढ़ लगाना भी शुरू कर देते हैं। अब दो माह देरी जब मक्की की बिजाई को हो गया है, किसानों की रातों की नींदे भी उड़ने लगी है। विभागीय जानकारी के अनुसार जिला के कई किसानों ने तो इस बार मक्की की बिजाई से मुंह भी फेर दिया है। इससे इस बार प्रदेश में गेहुं की पैदावार कम होने का अंदेशा भी जताया जा रहा है। फिलहाल 80 प्रतिशत किसानों का मक्की की बिजाई न करना बड़ा चिंतनीय विषय है। ऐसे अब देखना होगा कि कृषि विभाग मैदानी क्षेत्रों के किसानों के फायदे के लिए इस ओर क्या कदम उठा पाते हैं।

किसान मक्की के सीड को बढ़ा दें

समय पर बारिश न होने के चलते कृषि विभाग ने भी चिंता जाहिर की है। कृषि विभाग के निदेशक देशराज शर्मा ने किसानों से अपिल की है कि वह मक्की की बिजाई कर दे, वहीं खेतों में डाले जाने वाले मक्की के बिजों की मात्रा को भी बड़ा दे, ताकि कुछ पौधे अगर नमीं न होने की वजह से खराब हो जाएं, तो बाकी पौधे तो बच जाएंगे।

इंडियन बरबेरी यानी ट्री हल्दी

बबैरिस अरिस्टाटा दारू हल्दी, सिट्रा इत्यादि नामों से जाने जाना वाला यह झाड़ीनुमा पौधा सामान्यता 3-4 मी. लंबा होता है, जो कि एक सदाबहार पौधा है। शायद ही आज की पीढ़ी ने इस पौधे के स्वादिष्ट और अनेक गुणों से भरपूर फलों को चखा होगा। इसमें सुनहरे पीले रंग के फूल लगते हैं। पक्के हुए फलों का रंग जामुनी होता है। इसका तना पूरी तरह से कांटों और पत्तियों से ढका रहता है। सामान्यता यह पौधा उत्तरी हिमालय क्षेत्र  में पाया जाता है दक्षिणी भारत में यह नीलगिरी की पहाडि़यों और श्रीलंका में भी पाया जाता है। इसका उपयोग प्राचीन काल से ही चिकित्सा प्रणाली में बड़े पैमाने में किया जाता है। इसके गुणों को हल्दी के समान कहा गया है। इस पौधे में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो कि हमारे शरीर के लिए  अत्यंत लाभकारी होते हैं, जो कि हमारे शरीर से नुकसान, देह उत्पादों या पदार्थों को नष्ट कर कई तरह की बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं।

औषधीय और खाद्य उपयोग: इसके फलों में विटामिन सी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है और पके हुए फल खाने में बहुत स्वादिष्ट होते हैं और वे एपैटाइजर का काम करते हैं, जो कि भुख को बढ़ावा देता है। इसकी जड़ों  और तनों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण पदार्थ पाए जाते हैं जो कि विभिन्न प्रकार की बीमारियों में हमारी  प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और बचाते हैं। इसका उपयोग त्वचा के रोगों , दस्त पीलिया कैंसर शुगर में काफी लाभदायक होता है। इसकी जड़ छाल का काढ़ा अल्सर के लिए भी उपयोग किया जाता है। इस पौधे का अर्क हर्बल क्रीम बनाने में भी किया जाता है। यह पूरा पौधा डाई बनाने  के काम आता है। इसकी जड़ शराब बनाने में भी प्रयोग की जाती है।

मंजू लता सिसोदिया, सहायक प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

माटी के लाल

बलदेव के सेब, वाह जी वाह

बलदेव सिंह

फोन नं. 94171-85001

लोगों में यह भ्रम है कि सेब की फसल कुल्लू, मनाली, रोहड़ू रामपुर के ठंडे पहाड़ों में ही हो सकती है, लेकिन सत्य यह है कि अगर मनुष्य में मेहनत करने की मजबूत इच्छा शामिल हो तो सेब की फसल कहीं भी उगाई जा सकती है। यह कार्य नरोला गांव निवासी बलदेव ने कर दिखाया है। गर्म इलाके में बलदेव वर्मा ने अपने आंगन नारोला में सेब के बूटे लगाए जिनमें सेब के फल लग चुके हैं। उन्हें यह प्रेरणा तहसील घुमारवीं की पन्याला गांव के हरिमन शर्मा से मिली, जिन्होंने घूमारवीं-जाहू सड़क के साथ ही सेब का बागीचा लगाया है। तथा अब वह उनसे उपज भी ले रहे हैं। गांव की आवाज कमेटी नरोला के सदस्यों में कैप्टन जगदीश वर्मा, इंद्रदेव, हंसराज,बालक राम आदि ने बलदेव सिंह वर्मा के लगाए सेब के पौधों को देखा तथा इनकी इस कार्य के प्रति मेहनत और लगन की प्रशंसा की।

  -पवन प्रेमी, सरकाघाट

किसान बागबानों के सवाल

मेरी भिंडी की जड़ काली पड़ जाती है । 10-15 दिन के बाद पौधा सूख जाता है। इसके लिए हम कौन सी दवाई का छिड़काव करें? 

– मदन लाल चंबा

किसानों को सलाह दी जाती है कि भिंडी में  लगे में आप नीम ऑयल 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ लहसुन 25 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिडकाव करें, जब छिड़काव करें तब घोल में टीपोल मिलाएं ताकि यह असरदार रहे।

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आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है, तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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