17 साल बाद रूद्रनाग में शाही स्नान कर शक्तियां अर्जित करंेगी माता रूपासना

By: Jun 10th, 2019 12:05 am

कुल्लू—मणिकर्ण घाटी कोठी हरकंडी की आराध्य माता रूपासना 17 सालों बाद तीर्थ स्थल रूद्रनाग में शाही स्नान करेंगी। वहीं, तीर्थ स्थल में शक्तियां अर्जित करेंगी। तीर्थ यात्रा की तैयारियों को लेकर पांच रूपासना के मुख्य कारकारिंदों समेत पांच गांव  हारियानों ने कमर कसी ली है। शाही स्नान के साक्षी हजारों श्रद्धालु बनेंगे। माता के तीर्थ यात्रा को लेकर पांच हारियान ही नहीं बल्कि आसपास के गांव तथा अन्य श्रद्धालुओं में भी खुशी की लहर है। बता दें माता रूपसना की 15 जून से तीर्थ यात्रा शुरू होगी।  लावलश्कर के साथ माता पूरे देव वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनियों के साथ धारला मंदिर से रवाना होगी और रात्रि ठहराव धार्मिक एवं तीर्थ स्थल मणिकर्ण में करेंगी। 16 जून को सुबह पूजा-अर्चना के बाद माता रूद्रनाग के लिए रवाना होगी और शाम को रूद्रनाग पहुंचंेगी। 17 जून को माता रूद्रनाग में शाही स्नान कर शक्तियां अर्जित करेंगी। पूरे देव विधान से माता की शाही स्नान की परंपरा को बखूबी से निभाया जाएगा। इस दौरान माता संग देव कारकून और यात्रा में मौजूद सभी श्रद्धालु आस्था की डूबकी लगाएंगे। वहीं, यहां पर श्रद्धालुओं के लिए देव भोज का आयोजन भी किया जाएगा। 18 जून को माता तीर्थ स्थल रूद्रनाग से शक्तियां अर्जित कर वापस लौटेगी और रात्रि ठहराव छाकना गांव में करेगी। 19 जून को अपने मूल मंदिर धारला पहुंचेगी और इस दिन पाठ होगा। माता रूपासना के कारदार लाल चंद ने बताया कि 17 सालों के बाद माता रूद्रनाग में शाही स्नान करंेगी। माता शक्तियां अर्जित कर सुख समृद्धि लाएगी। तीर्थ यात्रा को लेकर इन दिनों तैयारियां जोरों पर चली हुई है। उन्होंने बताया कि इससे पहले माता अपने भाई देवता सुननारायण और देवता कालीनाग से मिलने भी गई थी। देव मिलन कर माता ने दोनों भाइयों से तीर्थ यात्रा की आज्ञा मांगी है।  वहीं, तीर्थ यात्रा के लिए माता रूपासना के आदेश पर हारियानों ने डढ़ेई गांव की माता कैलाशना को भी न्यौता दिया  है।  माता कैलाशना रूपासना माता की छोटी बहन है।  बता दें कि माता रूपासना के प्रति हारियान, मणिकर्ण घाटी ही नहीं बल्कि हिमाचल, पंजाब, दिल्ली और नेपाल के लोगों को अटूट आस्था है। माता रूपासना दुष्ट आत्माओं को भगाने में माहिर मानी जाती है। माता का मुख्य पर्व धारगन ब्रौत मेला है। इसके अलावा सायर सक्रांति और बिरशू मेला भी मुख्य पर्वों में से एक हैं।


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