अंतरिक्ष विज्ञान में करियर

By: Jul 3rd, 2019 12:08 am

अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना करियर बनाना कोई आसान बात नहीं, फिर भी आज कई ऐसे युवा हैं जो स्पेस से जुड़े रहस्यों को जानने में काफी रुचि रखते हैं और इसी में अपना एक बेहतर भविष्य भी देखते हैं…

अपने करियर में आसमान की ऊंचाईयों को छूने का सपना तो हर कोई देखता है, लेकिन दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं। जो आसमान की ऊंचाईयों में ही अपना करियर बनाने की चाह रखते हैं। जी हां, अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना करियर बनाना कोई आसान बात नहीं, फिर भी आज कई ऐसे युवा हैं जो स्पेस से जुड़े रहस्यों को जानने में काफी रुचि रखते हैं और इसी में अपना एक बेहतर भविष्य भी देखते हैं। अगर आप भी स्पेस साइंस से पढ़ाई कर आगे बढ़ते हैं, तो आपके सामने इससे जुड़े कई रोजगार के अवसर भी मौजूद होते हैं।

क्या है अंतरिक्ष विज्ञान

अंतरिक्ष विज्ञान को स्पेस साइंस और एस्ट्रोनॉमी भी कहते हैं। ये ब्रह्मांड की खोजबीन से जुड़ा विज्ञान है। इसमें वायुमंडल के बाहर होने वाले गतिविधियों और निर्माण जैसी चीजों से संबंधित प्रक्रियाओं में रिसर्च और अध्ययन किया जाता है। इसमें ग्रह, तारों, पृथ्वी, सौरमंडल आदि इन सभी चीजों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस क्षेत्र में दिन-ब-दिन युवाओं की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही है। इसलिए कहा जा रहा है कि आने वाले पांच सालों में इस फील्ड में नौकरियां काफी बढ़ेगी।

इतिहास

सभी प्राकृतिक विज्ञानों में से अंतरिक्ष विज्ञान सबसे प्राचीन है। इसका आरंभ प्रागैतिहासिक काल में हो चुका था। प्राचीन धार्मिक  और मिथकीय कार्यों में इसका प्रयोग होता था। खगोल शास्त्र के साथ ज्योतिष का बड़ा गहरा संबंध रहा है। आज भी कई लोग इन्हें एक ही मानते हैं। प्राचीन खगोलविद तारों और ग्रहों के बीच के अंतर को समझते थे। उनके अनुसार तारे लगभग शताब्दियों तक एक ही स्थान पर बने रहते हैं, जबकि ग्रह कम समय में ही अपने स्थान से हट जाते हैं। खगोल विज्ञान को वेद का नेत्र भी कहा जाता है। ऋग्वेद आदि ग्रंथों में नक्षत्र, चंद्रमास, सौरमास, मलमास, उत्तरायण, दक्षिणायण इत्यादि के संबंध में उदाहरण मिलते हैं। प्रसिद्ध खगोलविद जॉन प्लेफेयर के अनुसार 6 हजार वर्ष पूर्व भी भारत में खगोल विज्ञान था। आर्यभट्ट ने 5वीं और 6वीं शताब्दी में ग्रहों की गति के विषय में कई महत्त्वपूर्ण खोजें कीं। खगोल शास्त्र का आधुनिक युग जर्मन भौतिकविद किरचाक से आरंभ हुआ। भारत में स्वर्गीय प्रोफेसर मेघनाथ साहा ने सूर्य और तारों के भौतिक तत्त्वों के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।  हमारे देश में डा. एस चंद्रशेखर और डा. जयंत विष्णु नारलीकर ने खगोल विज्ञान में कई महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।

वेतनमान

खगोल भौतिकी में कोई पाठ्यक्रम करने के बाद कोई भी अभ्यर्थी  कई अनुसंधान संस्थानों तथा सरकारी संगठनों में अनुसंधान वैज्ञानिक लग सकता है। अनुसंधान कार्य पूरा करने के बाद विभिन्न संस्थानों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। विभिन्न सरकारी संस्थान भी खगोल विशेषज्ञों को वैज्ञानिकों के रूप में भर्ती करते हैं और उन्हें उच्च वेतन तथा अन्य अनुलाभ एवं भत्ते दिए जाते हैं। अनुसंधान कार्य के दौरान उन्हें 30 से 40 हजार रुपए तक मासिक वेतन तथा अन्य अनुदान एवं सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। निजी क्षेत्रों में वेतन अनुभव और योग्यता के आधार पर निर्धारित होता है।

इसरो

इसरो भारत की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है। इसकी स्थापना 1962 ई. में हुई। इसरो की गिनती विश्व की सबसे बड़ी छह अंतरिक्ष एजेंसियों में होती है। वर्तमान में एएस किरन कुमार इसरो के अध्यक्ष हैं। इसरो भारत को स्पेस सुपर पावर बनाकर विश्व में पहचान दिलाने में खास भूमिका निभा रहा है।

काल गणना भी अंतरिक्ष विज्ञान की उपज

प्राचीन काल में धार्मिक उत्सव और कैलेंडर को सूर्य और चंद्रमा की गति से निर्धारित किया जाता था। दिन, महीने और साल भी सूर्य और चंद्रमा की गति से निर्धारित हुए। आज का कैलेंडर रोमन कैलेंडर पर आधारित है, जो साल को 12 महीनों और महीने को 30 या 31 दिनों में बांटता है।

हिमाचल में खगोल पर्यटन

हिमाचल पर्यटन विकास निगम ने राज्य में पर्यटक को लुभाने के लिए खगोल पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। इसके लिए राज्य के कई होटलों को चुना गया है। दिल्ली में स्पेस टेक्नोलॉजी एंड एजुकेशन के साथ करार किया गया है। ऑफ  सीजन में इन होटलों में 35 फीसदी की छूट दी जाएगी। अंतरिक्ष विज्ञानी इन होटलों में अधिक पावर वाले टेलीस्कोप लगाएंगे। ये होटल चैल, नारकंडा, धर्मशाला, खजियार, काजा, केलांग, कल्पा और खड़ापत्थर में हैं।

दूरबीन ने दिखाया रास्ता

दूरबीन के आविष्कार से तो जैसे अंतरिक्ष विज्ञान को पंख ही लग गए। इटली के अंतरिक्ष विज्ञानी गैलिलीयो गैलिली (1564-1642)ने सन् 1612 में पहली बार आकाशमंडल के अध्ययन में दूरदर्शी यंत्र (दूरबीन)का प्रयोग किया। दूरबीन के आविष्कार ने इस विज्ञान को बुलंदियों तक पहुंचाया। उसके बाद अंतरिक्ष खोजों ने रफ्तार पकड़ी।

अंतरिक्ष विज्ञान से आर्थिकी

अगर ज्योतिष किसी व्यक्ति का भविष्य बताता है, तो अंतरिक्ष विज्ञान किसी देश का भविष्य बनाता है। प्राचीन काल में वर्षा, अकाल, मौसम और ज्वार-भाटे की भविष्यवाणी अंतरिक्ष विज्ञान के आंकड़ों पर आधारित थी। आज भी अंतरिक्ष विज्ञान यह जानकारी देता है। देश की आर्थिकी में अंतरिक्ष विज्ञान अहम भूमिका निभाता है।

पात्रता क्या है

यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां शैक्षिक कौशल के साथ-साथ  अभिरुचि भी  महत्त्वपूर्ण है। मस्तिष्क की वैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा खोज की आकांक्षा होना प्राथमिक आवश्यकता है। अन्य तकनीकी योग्यता के साथ-साथ जमा दो स्तर पर तथा स्नातक स्तर पर भौतिकी एवं गणित विषय होना अनिवार्य है। इस क्षेत्र में करियर के लिए छात्रों को सामान्यतः भौतिकी, गणित एव इंजीनियरी तकनीकों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से भौतिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि में बीई या बीएससी की डिग्री होनी चाहिए।

प्रमुख शिक्षण संस्थान

* केंद्रीय विवि हिमाचल प्रदेश, धर्मशाला

* पुणे विश्वविद्यालय अंतरिक्ष विज्ञान में एमएससी पाठ्यक्रम चलाता है, जिसमें  इसरो का भी कुछ पाठ्यक्रम रखा गया है।

* तिरुवनंतपुरम में आईआईटी के छात्रों के लिए एक नया संस्थान प्रारंभ किया गया है। इसका लक्ष्य इसरो की आवश्यकता के अनुसार इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना है। कई ऐसे पाठ्यक्रम भी हैं, जिनके पूरा होने पर छात्रों को खगोल विज्ञान में प्रमाणपत्र प्रदान किए जाते हैं।

* बंगलूर में सेंट जोसेफ कालेज तथा बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ  फंडामेंटल रिसर्च में  सर्टिफिकेट कोर्स के साथ  खगोल विज्ञान में एमएससी भी करवाई जाती है।

* कालीकट विश्वविद्यालय, खगोल विज्ञान में एमएससी कोर्स संचालित करता है।

अंतरिक्ष विज्ञान वेधशालाएं

* आईआईएससी कोरमंगलम, बंगलूर

* वेणूबप्पू वेधशाला (वीबीओ) कावलूर, तमिलनाडु

* कोडेकनाल वेधशाला, मद्रास

* गौरीविदनूर वेधशाला, बंगलूर

* भारतीय खगोल वेधशाला हांले, लेह-लद्दाख

* अनुसंधान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा केंद्र, बंगलूर


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