अंतर्मन से आहूत विचारों का काव्य संग्रह

By: Jul 14th, 2019 12:03 am

पुस्तक समीक्षा

किताब खोलते ही ‘अंग-संग’ शीर्षक से लिखी कविता पर नजर पड़ती है। इसमें विचारों-भावनाओं का एक समंदर हिलोरे मारता नजर आता है। इन अथाह आवेशों पर नियंत्रण ही वास्तव में किसी भी प्रस्तुति के लिए अवश्यंभावी है। कवयित्री ने शायद कोशिश भी की है। संपादन एक और महत्त्वपूर्ण पहलू है, उसी तरह जैसे सब्जी में नमक कितना खपाएं। काव्य संग्रह के अधिकांश हिस्से में संदेश स्पष्ट है, जो प्रकृति की वंदना की ओर इशारा करता है। प्रोमिला भारद्वाज के कविता संग्रह ‘अंजुरी भर आस’ में कुल 71 कविताएं शामिल हैं। इसी संग्रह की दूसरी कविता ‘क्षितिज’ का संदेश मानव को महामानव बताने-बनाने के लिए पर्याप्त है-‘पृथ्वी की दृढ़ता आकाश की विशालता, तुम में समाई, हम में समाई।’ प्रोमिला भारद्वाज ने दिल खोलकर सोचा और जी भर कर लिखा। उनके लेखन में तृप्ति का एक एहसास होता है। ‘पहाड़ के शिखर पर शुद्ध शीतल हवा मिली, गहरी सांस ली, पीए कुछ घूंट पवित्र पवन के।’ काव्य संग्रह में ज्यों-ज्यों नजर दौड़ाते हैं, लेखिका के सृजन में तरलता और सरलता दृष्टिगोचर होती है। स्वभाव में माधुर्य और बिंब-प्रतिबिंब अध्यात्म में नहाए नजर आते हैं। ऐसा सरल लेखन और सारी बात कह पाना आजकल बिरले ही देखने को मिलता है। प्रोमिला भारद्वाज की कविता ‘थकती नहीं औरतें’ महिला के संघर्ष भरे जीवन को जान पाने के लिए शीर्षक ही सार वाक्य है। कुल मिलाकर प्रोमिला भारद्वाज ने जो भी लिखा है, वह अंतर्मन से आहूत विचारों का ही अक्स है।

                      -ओंकार सिंह

लोक लघुकथाएं सुनाती पुस्तक

मंडी जिले से संबद्ध हिमाचल के प्रसिद्ध लेखक कृष्ण चंद्र महादेविया की नई पुस्तक ‘हिमाचली लोक साहित्य में लोक लघुकथाएं’ साहित्यिक बाजार में आ गई है। यह विचारणीय है कि वाचिक लोक लघुकथाओं को लिखित रूप में किताबों में समेटने में महादेविया जी का योगदान अविस्मरणीय है। साथ ही हिमाचली लोक लघुकथाएं भी हर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। लोक लघुकथाओं के परंपरागत रूप से छेड़छाड़ किए बिना उसकी सरलता, निश्छलता व नैसर्गिकता को बरकरार रखते हुए संग्रहण करने की महत्ती आवश्यकता है। इस तरह के संग्रहण में महादेविया जी का कौशल हर किसी को कायल बना देता है। वस्तुतः हिमाचली लोक लघुकथाएं बच्चों के साथ सभी आयु के व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। लोक साहित्य का संग्रहण श्रमसाध्य कार्य है। इस दृष्टि से भी महादेविया जी के योगदान की प्रशंसा होनी चाहिए। प्रस्तुत पुस्तक में 54 लोक लघुकथाएं दी गई हैं। इन लघुकथाओं में विषय की व्यापक विविधता है। ये कथाएं हिमाचली लोक जीवन के साक्षात दर्शन कराती प्रतीत होती हैं। इस संग्रह की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इन कथाओं को हिंदी के साथ-साथ पहाड़ी भाषा में भी पेश किया गया है। सरल भाषा में लिखी गई ये लघुकथाएं सामाजिक संदेश देने के साथ-साथ पाठकों का मनोरंजन भी करती हैं। लघुकथाएं सरपट अपने लक्ष्य की ओर दौड़ती हुई कोई न कोई सामाजिक संदेश भी छोड़ जाती हैं।   -राजेंद्र ठाकुर                   


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