इंटरनेट युग में पुस्तकालय और लाइब्रेरियन

By: Jul 28th, 2019 12:03 am

अवसर विशेष

राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम 12 अगस्त को राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस मनाने जा रहे हैं। इस प्रसंग में पुस्तकालयों के स्वरूप और लाइब्रेरियन की भूमिका पर फिर से विचार करने की जरूरत है। यह जरूरत इसलिए है क्योंकि इंटरनेट के युग में पुस्तकालय के स्वरूप व लाइब्रेरियन की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है। सबसे पहले और सबसे जरूरी बात यह है कि पुस्तकालय समुदाय के साथ स्रोतों को शेयर करने के स्थान हैं। स्कूल के दिनों से ही हम सुनते रहे हैं कि किताबें हमारी सबसे बढि़या मित्र हैं तथा पुस्तकालय ज्ञान के मंदिर होते हैं। पुरानी किताबों की बहुत प्रिय खुशबू से लेकर नवीनतम डिजीटल डाटा माइनिंग सॉफ्टवेयर तक, पुस्तकालयों ने एक लंबी यात्रा तय की है। प्राचीन और मध्य भारत में पुस्तकालयों की स्थापना शासकों व महान संरक्षकों द्वारा की गई। नालंदा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय अपने बड़े पुस्तकालयों के लिए माने जाते थे। उधर, अंग्रेजों के शासन में आम लोगों के लिए कई पुस्तकालय खोले गए। अंग्रेजों ने लाइब्रेरी ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसायटी कोलकाता, एशियाटिक सोसायटी लाइब्रेरी मुंबई, कलकत्ता पब्लिक लाइबे्ररी कोलकाता, जेएन पतित इंस्टीच्यूट मुंबई, कोन्नेमारा पब्लिक लाइब्रेरी चेन्नई, खुदा बख्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी पटना, ओरियंटल रिसर्च इंस्टीच्यूट लाइब्रेरी मैसूर तथा भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीच्यूट पुणे जैसे पुस्तकालय भी स्थापित किए। आजादी के बाद के युग में पुस्तकालय भारत में शिक्षा तथा अनुसंधान संबंधी संस्थानों के अखंड हिस्से बन गए हैं। प्री-इनफारमेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी युग में प्रायः सभी पुस्तकालयों में संरक्षण के लिए साफ ढंग से लिखे तथा टाइप्ड कैटेलॉग कार्ड्स, बौरोविंग कार्ड्स, लिस्ट ऑफ इंडेक्सिज, किताबें तथा कई अन्य प्रकार के दस्तावेज शामिल हैं। इन्हें संगठित करना, संरक्षित करना तथा सही समय पर सही तरीके से सही लोगों तक इन्हें पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आजकल इलेक्ट्रॉनिक विश्व में उपलब्ध मैटीरियल से सही सूचना छानबीन कर निकालना भी एक चुनौती वाला कार्य है।

वर्तमान परिदृश्य

पुस्तकालय अब प्रौद्योगिकी के साथ-साथ विकसित हो रहे हैं, जो कि ई-बुक्स, म्यूजिक, मूवी इत्यादि की सेवाएं भी दे रहे हैं। प्रत्येक लाइब्रेरी का वास्तविक फोकस सूचना है। सूचना को किताबों, पीरियोडिकल्स, पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन स्रोतों में स्टोर किया जाता है। इसलिए पुस्तकालयों तथा लाइब्रेरियन्स को इस बात में विशेषज्ञ होना पड़ेगा कि कैसे सही सूचना प्राप्त करने के लिए संगठित तथा समझदार हुआ जाए।

पुस्तकालयाध्यक्ष तथा नया सूचना परिदृश्य

पर्सनल कम्प्यूटर्स तथा साइटेशन इंडेक्स जैसी इंडेक्सिंग की नई अवधारणाओं के आगमन से अकादमिक ज्ञान का संसार आर्टिफिशियल मार्गों के जरिए सिकुड़ गया। वर्तमान परिदृश्य में, पहुंच योग्य सूचना के ये समूह बनाए जा सकते हैं ः मनोरंजनात्मक सूचना (यू-ट्यूब एंड लाइक्स), नेबरहुड इन्फार्मेशन (गूगल मैप्स, सिटी डायरेक्टरी इत्यादि), वेनिटी इन्फारमेशन (सोशल नेटवर्किंग इन्फार्मेशन) तथा अकादमिक सूचना। अंतिम वर्ग की सूचना को और आगे वगीकृत किया जा सकता है, जैसे एंट्री-लेवल एकेडिमक तथा हायर एकेडमिक। पब्लिशिंग हाउस अकादमिक सूचना के लिए अस्तित्व बनाए हुए हैं।

भविष्य में लाइब्रेरियन के कार्य

इंटरनेट पहले ही सूचना उपयोगकर्ता के रीडिंग व लर्निंग व्यवहार पर अपना प्रभाव स्थापित कर चुका है। ऐसी स्थिति में पुस्तकालयाध्यक्ष के भविष्य में क्या कार्य होंगे, इस पर भी विचार करना जरूरी है। यह स्थिति सूचना की गेम में पुस्तकालयाध्यक्षों को कहां छोड़ती है? हम भविष्य के लिए क्या योजना

बनाते हैं? परंपरागत रूप से

लाइब्रेरियन चार कार्य करते थे। ये थे : सेलेक्शन, एक्वीजिशन, क्लासिफिकेशन तथा रेटरीवल। इनमें से सेलेक्शन, क्लासिफिकेशन व रेटरीवल के कार्य अब सर्च इंजन करने लगे हैं। अब लाइब्रेरियन के पास जो काम शेष बचा है, वह है मात्र एक्वीजिशन। इस तरह लाइब्रेरियन की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है। साथ ही पुस्तकालयों के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है क्योंकि इंटरनेट के युग में पुस्तकालय अब यूजर्स की जेब में चाहे-अनचाहे प्रवेश कर गया है। इस तरह परंपरागत पुस्तकालय व पुस्तकालयाध्यक्ष की भूमिका भविष्य के लिए सीमित हो गई है। इनके समक्ष अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती पैदा हो गई है। नए कार्य और भूमिका को अपनाकर ये अपना अस्तित्व बचाए रख सकते हैं।


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