कांग्रेस-मुक्त भारत की ओर…

By: Jul 13th, 2019 12:03 am

कांग्रेस में भागमभाग मची है। कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जा रहे हैं। कांग्रेस बिखर रही है, नेतृत्वहीन है, नियति क्या होगी? इससे पहले भी कांग्रेस के टुकड़े हुए हैं। 1969 में जो कांग्रेस (आई) बनी थी, कमोबेश वही पार्टी आज भी है, क्योंकि वह गांधी परिवार की पार्टी रही है। कांग्रेस से कामराज, निजलिंगप्पा सरीखे पुराने नेता कहां गायब हो गए, आज यह इतिहास का विषय है। हालांकि इंदिरा गांधी की कांग्रेस में से ही कांग्रेस (ओ), कांग्रेस (जे), कांग्रेस (यू) और एनसीपी बनी हैं। यह दीगर है कि आज कांग्रेस (आई) के साथ-साथ एनसीपी भी मौजूद है। दोनों में राष्ट्रीय स्तर का गठबंधन भी है। कांग्रेस इतनी छिन्न-भिन्न भी हुई है कि क्षेत्रीय दलों में भी तबदील हुई है। ताजातरीन उदाहरण आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस का है, जिसके 22 सांसद जीतकर लोकसभा में आए हैं और पार्टी को आंध्र में सत्ता भी हासिल हुई है। कांग्रेस में विभाजन के मौजूदा उदाहरण गोवा और कर्नाटक के हैं। गोवा के कुल 15 कांग्रेसी विधायकों में से 10 विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस दलबदल पर कानून की तिरछी निगाहें नहीं पड़ सकतीं, क्योंकि विभाजन दो-तिहाई विधायकों ने किया है। कर्नाटक में भी पार्टी के 13 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफे दिए थे। इस्तीफों पर स्पीकर शुक्रवार को निर्णय लेंगे, जिनके इस्तीफे स्वीकार हो जाएंगे, वे किस पाले में जाते हैं, यह आने वाली राजनीति को स्पष्ट करेंगे। बीते दिनों तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ने कांग्रेस के सभी 12 विधायकों को तोड़ कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। कुंठा और मोहभंग की स्थितियां गोवा और कर्नाटक तक ही सीमित नहीं हैं। राजनीतिक विचारधारा का सरोकार तो समाप्त हुआ लगता है। आखिर विपक्ष के विधायक टूट-फूट कर भाजपा की तरफ क्यों आ रहे हैं? क्या उन्हें धमकाया गया है? क्या उनके व्यापारिक पतन के संकेत दिए गए हैं? क्या उन्हें भाजपा में राजनीतिक भविष्य सुरक्षित लगता है? क्या वे राहुल गांधी की राजनीति से निराश हैं? क्या बदले में भाजपा उन्हें धन-संपदा और टिकट की गारंटी देती है? कांग्रेस में जो बिखराव दिखाई दे रहा है, उसके मद्देनजर मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस विभाजित हो सकती है। नतीजतन दो और कांग्रेस सरकारें दांव पर हैं। यह सिर्फ चुनाव हारने की निराशा है अथवा देश ‘कांग्रेस-मुक्त’ होने की ओर बढ़ रहा है? ऐसी स्थितियों में कांग्रेस में बिखराव और नेताओं की भागमभाग बिलकुल स्वाभाविक है। यही तोड़फोड़  इंदिरा गांधी ने अपने शक्तिकाल के दौरान कराई थी और ‘कठपुतले’ राज्यपालों को इस्तेमाल कर चुनी सरकारें ध्वस्त कराई थीं। आज हरियाणा में भजनलाल का दौर याद किया जा रहा होगा, क्योंकि वह दलबदल के पर्यायवाची बन गए थे। तब हरियाणा में चौ. देवीलाल की जनता पार्टी सरकार थी और खुद भजनलाल उसमें सहकारिता मंत्री थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी का ऐसा क्या इशारा हुआ कि रातोंरात सरकार बदल दी गई। कांग्रेस सत्तारूढ़ हो गई और भजनलाल मुख्यमंत्री बनाए गए। तब देश में दलबदल रोधी कानून भी नहीं था। वह पूरा दौर ‘आयाराम, गयाराम’ का रहा। बाद में कानून बना, तो एक-तिहाई विधायक तक दलबदल कर सकते थे। वह प्रयोग भी नाकाम रहा। बाद में वाजपेयी सरकार के दौरान इस कानून को कड़ा किया गया। उसमें दो-तिहाई विधायक की शर्त रखी गई। उससे कम विधायक दलबदल करेंगे, तो उनकी सदस्यता ही खारिज कर दी जाएगी। बहरहाल गोवा में तो दो-तिहाई विधायकों ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थामा है, लेकिन कर्नाटक में विधायकों ने अपनी सदस्यता से ही इस्तीफे दिए हैं। इसे कौन-सी राजनीति कहेंगे? जाहिर है कि उन्हें भाजपा की तरफ से ठोस आश्वासन मिले होंगे। इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस और विपक्ष ने खूब हंगामा किया और फिर बहिर्गमन कर गए। संसद परिसर में ही महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने विरोध-प्रदर्शन किया कि लोकतंत्र को बचाओ। लोकतंत्र को कौन बचाएगा? लोकतंत्र के वाहक ही लोकतंत्र का हनन कर रहे हैं। राजनीतिक स्वार्थ प्रत्येक जन-प्रतिनिधि के मानस पर सवार है। कांग्रेस एक घराना नहीं रहा, बल्कि गुटबाजी का अड्डा बन गई है। एक कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव करने को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक नहीं हो पा रही है, तो कांग्रेस के अस्तित्व को इस चुनौती का जवाब कौन देगा?


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