क्षमता से कितना बाहर नाहन

By: Jul 1st, 2019 12:06 am

करीब 400 साल पहले अस्तित्व में आया ऐतिहासिक शहरों में शूमार नाहन विकास के लंबे डग तो भरता गया, लेकिन बढ़ती आबादी के हिसाब से लोगों को सुविधाएं मुहैया करवाने में पिछड़ गया। सच पूछो तो शहर में ओपन स्पेस तक नहीं है, घर एक-दूसरे से बिलकुल जुड़े हैं, तो गाडि़यों को कोई ठिकाना नहीं है। दखल के जरिए नाहन की जरूरतें बता रहे हैं ……     सूरत पुंडीर

हिमाचल प्रदेश ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक तथा देश की सबसे पुरानी नगर परिषद कोलकाता के बाद दूसरे स्थान पर नगरपालिका परिषद नाहन का केंद्र नाहन शहर भले ही अपनी स्थापना के 397 वर्ष पूरे कर चुका हो और नाहन नगर परिषद भी अपनी स्थापना के 150 वर्ष मना चुका है, परंतु नाहन शहर का दायरा अभी भी क्षमता के हिसाब से नहीं बढ़ पाया है। पूर्ण रूप से पहाड़ी संरचना वाले नाहन शहर की यदि बात की जाए, तो इसकी स्थापना वर्ष 1621 में सिरमौर रियासत के तत्कालीन महाराजा कर्म प्रकाश द्वारा सिरमौर रियासत की राजधानी के रूप में की गई थी, क्योंकि रियासतकाल में सिरमौर

रियासत की राजधानी

गिरि नदी के तट पर सिरमौर नामक स्थान पर थी तथा नटनी के श्राप से यह स्थान गिरि नदी में जलमग्न हो गया था। ऐसे में एक टीले पर बसे नाहन कस्बे को तत्कालीन सिरमौर रियासत के महाराजा कर्म प्रकाश ने रियासत की राजधानी के रूप में स्थापित किया। शहर की गतिविधियां आगे बढ़ती गई तथा शहर में धीरे-धीरे विस्तार व विकास भी होता गया। रियासतें चलती रही तथा वर्ष 1947 में आखिर वह समय आया, जब रियासतकालीन समय समाप्त हुआ तथा पूरे देश में एक सरकार के अधीन कार्य आरंभ हुआ। देश आजाद हुआ, तो प्रत्येक राज्यों व शहरों की परिस्थितियां भी बदलनी शुरू हुई। वर्तमान में नाहन शहर नगरपालिका परिषद नाहन के अधीन आता है।

नगर परिषद नाहन की स्थापना 1868 में हुई थी। हिमाचल के गठन के बाद सिरमौर जिला का मुख्यालय भी नाहन तय हुआ तथा शहर नगरपालिका के अधीन विकास की सीढि़यां चढ़ता गया। ऐसा नहीं है कि नाहन की तकदीर व तस्वीर न बदली हो, परंतु जिस हिसाब से नाहन शहर की आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से शहर का विकास गति नहीं पकड़ रहा है। इसके पीछे एक कारण यह भी रहा है कि नगर  परिषद की आमदनी में बढ़ोतरी के साधन निरंतर कम होते जा रहे हैं। शहर के राजस्व में इजाफा करने का जो निर्णय हाउस टैक्स के माध्यम से लिया गया था, वह भी खरा नहीं उतर पाया है तथा करोड़ों रुपए का हाउस टैक्स शहर के लोगों पर अभी भी देय है। 

कोलकाता   के बाद  सबसे पुरानी नगर परिषद

देश की सबसे पुरानी नगर परिषद कोलकाता के बाद दूसरे स्थान पर नगर परिषद नाहन की पहचान यहां के चौगान मैदान से भी है। ऐतिहासिक विल्ला राउंड, आर्मी ग्राउंड, हॉस्पिटल राउंड आदि ऐसे स्थान हैं, जहां शहर के लोग अपने दिन भर की थकान मिटाने के लिए सैर पर निकलते हैं। नाहन से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर भारत की प्रमुख शक्तिपीठ माता बालासुंदरी मंदिर भी प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र धार्मिक पर्यटकों को आकर्षित करता है।

पार्किंग सबसे बड़ा चैलेंज

नाहन शहर वाहनों की रेलमपेल के आगे दम तोड़ने लगा है। वाहनों के आगे शहर की सड़कें और गलियां छोटी पड़ गई हैं। यहां नगर परिषद की करीब चार पार्किंग है, जिनमें करीब 300 वाहनों के खड़े करने की क्षमता है। इसके अलावा दो-तीन निजी पार्किंग हैं, लेकिन वे भी फुल ही रहती हैं। ऐसे में नाहन में एसडीएम सर्किल व आरटीओ आफिस के अधीन पंजीकृत करीब 24 हजार वाहनों के अलावा जिला भर से विभिन्न विभागों व प्रशासन से कार्य के सिलसिले में सैकड़ों वाहन नाहन आते हैं। नगर परिषद की नाहन में मात्र 500 वाहनों के पार्किंग की सुविधा है। इसके अलावा शहर में नगर परिषद के करीब पांच दर्जन गराज किराए पर हैं। शहर में करीब पांच निजी पार्किंग हैं, जिसमें करीब 300 वाहनों के खड़े होने की क्षमता है। क्षमता से अधिक वाहनों की संख्या बढ़ चुकी है। ऐसे में यह भी मांग उठने लगी है कि केवल ऐसे लोगों को ही वाहन खरीदने की अनुमति दी जाए, जिनके पास पार्किंग की सुविधा हो।

40 हजार  पॉपुलेशन

नाहन की यदि वर्तमान स्थिति पर बात की जाए, तो नाहन शहर को 13 वार्डों में बांटा गया है। शहर की आबादी करीब 35 से 40 हजार की है, जबकि नाहन नगर परिषद का दायरा करीब 11 वर्ग किलोमीटर में फैला है। एक दशक तक नाहन शहर का विस्तार शहर से बाहर नहीं हो रहा था तथा शहर में जमीनों के दाम आसमान छूने लगे। ऐसे में मजबूरी में शहर के लोग नाहन शहर से बाहर की ओर खिसकने लगे तथा अब नाहन शहर का विस्तार बाहरी हिस्सों में भी होने लगा है, जिसमें यशवंत विहार, सेना क्षेत्र, जाबल का बाग, नवोदय विद्यालय, नौणी का बाग, आमवाला, कोटड़ी, विल्ला राउंड आदि क्षेत्र नाहन शहर के आसपास ऐसे हैं, जहां लोग अब अपने आवास का ठिकाना ढूंढने लगे हैं। नाहन शहर की आबादी में करीब 53 प्रतिशत पुरुष व 47 प्रतिशत के आसपास महिला की जनसंख्या है। नाहन शहर का सबसे आबादी वाला क्षेत्र वार्ड नंबर-12 है, जबकि सबसे कम आबादी शहर के वार्ड नंबर-चार की है। नाहन शहर की उत्तर भारत में अपनी एक अलग पहचान है।

गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ा है नाम

प्रदेश के सबसे पुराने व ऐतिहासिक शहरों में शुमार नाहन की ऐसी कई धरोहरें व ऐतिहासिक कहानियां हैं, जिससे नाहन शहर न केवल हिमाचल प्रदेश में, बल्कि देश-विदेश में भी प्रसिद्ध है। नाहन शहर का नाम जहां सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह से जुड़ा है, वहीं नाहन शहर का सिरमौर रियासत का कार्यकाल भी पूरे प्रदेश में मशहूर था। बताया जाता है कि नाहन शहर का नाम बाबा बनवारी दास के दो शेरों के नाम के साथ जुड़ा हुआ था। नाहन शहर में जहां प्रदेश का एकमात्र भगवान जगन्नाथ का मंदिर 1671 में स्थापित किया गया था, वहीं सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 30 अप्रैल, 1685 को नाहन पधारे तथा उन्होंने नाहन में आठ माह का समय बिताया। सिख समुदाय में नाहन स्थित गुरुद्वारा श्री दशमेश अस्थान विशेष स्थान रखता है। नाहन का ऐतिहासिक कालीस्थान मंदिर भक्तों में आस्था का एक प्रतीक है। माता कालीस्थान मंदिर की स्थापना 1730 में की गई थी। इसके अलावा नाहन का पर्यटक स्थल रानीताल पार्क 1889 में स्थापित किया गया था। रानीताल पार्क के रंग-बिरंगे फूल जहां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, वहीं पार्क के बीच तालाब व भगवान शिव का मंदिर रानीताल गार्डन के सौंदर्य में चार चांद लगाता है। नाहन शहर का ऐतिहासिक मियां मंदिर वर्ष 1740 में बिलासपुर के राजा के दो भाइयों मियां मलदेव सिंह व मियां कौशल देव ने की थी। नाहन का ऐतिहासिक लिटन मेमोरियल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लिटन मेमोरियल की स्थापना 1877 में भारत के वायसराय लार्ड लिटन के नाहन आगमन पर सम्मान स्वरूप किया गया था। इसके अलावा प्रदेश की धरोहर रही महिमा लाइब्रेरी भी नाहन शहर में ही स्थित है। भले ही इस पुस्तकालय का दर्जा राज्य पुस्तकालय से घटाकर जिला पुस्तकालय कर दिया गया हो, परंतु तत्कालीन महाराजा अमर प्रकाश व महारानी मदालसा देवी ने अपनी पुत्री महिमा देवी के पुस्तकों के प्रति लगाव को लेकर इस पुस्तकालय की स्थापना 1930 में की थी। नाहन की पहचान ऐतिहासिक नाहन फाउंड्री भले ही अब इतिहास के पन्नों में सिमट चुकी है, परंतु किसी जमाने में नाहन फाउंड्री के उत्पाद न केवल भारत वर्ष बल्कि एशिया में भी डंका बजाते थे। नाहन फाउंड्री की स्थापना सिरमौर रियासत के तत्कालीन महाराज शमशेर प्रकाश ने 1873 में की थी। नाहन सभी धर्मों का आपसी मेलजोल का एक उदाहरण भी पेश करता है। हिंदु-मुस्लिम-सिख-इसाई सभी धर्मों के लोग कंधे से कंधा मिलाकर एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं। नाहन का बड़ा चौक स्थित जैन मंदिर, कच्चा टैंक स्थित मस्जिद, हाथी की कब्र, नाहन का युद्ध स्मारक जो कि एंगलो गोरखा वार में मारे गए सैनिकों की याद दिलाता है, वहीं नाहन की हेरिटेज व ऐतिहासिक धरोहर आकर्षण का केंद्र थी, परंतु रखरखाव के अभाव में यह हेरिटेज भवन दिन-प्रतिदिन अपनी पहचान खो रही है।

ढूंढते रह जाओगे ओपन स्पेस

..गलियों से शव तक निकालना मुमकिन नहीं 

शहर की यदि वास्तविक क्षमता पर गौर किया जाए, तो आजादी के बाद शहर का जो दायरा था, वही एक दशक तक था तथा इसी पर नाहन शहर का बोझ बढ़ता जा रहा था। जब नाहन की गलियां व मोहल्ले इस हालत में पहुंच गए कि कई गलियों से तो घर से शव को भी बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है, तो ऐसे में नगर परिषद  का भी कुछ दायरा बढ़ाया गया। अब नाहन शहर में  हालत यह है कि इक्का-दुक्का स्थान छोड़कर शहर में ढूंढकर भी जमीन नहीं मिल रही है।

घर बिलकुल साथ-साथ

नाहन शहर की क्षमता से अधोसंरचना के निर्माण में जो मुख्य रूप से खामियां सामने आ रही हैं, वे यह हैं कि कम जगह की वजह से लोगों के घर पूर्ण रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। स्थिति यह है कि यदि कोई व्यक्ति एक मकान की छत पर खड़ा है, तो वह आसपास के आठ से दस मकानों की छत पर आराम से घूम सकता है। नाहन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि रियासतकाल के दौरान यहां सीवरेज की व्यवस्था तो बनाई गई थी, परंतु उसके बाद शहर की सीवरेज की लाइन जगह-जगह या तो टूट चुकी है या फिर ब्लाक हो चुकी है। नाहन की सीवरेज लाइन को लेकर पिछले कई साल से योजनाएं तो बनाई जा रही हैं, परंतु सिरे नहीं चढ़ पाती हैं।

होटल व्यवसाय है… पर उतना खास नहीं

होटल व्यवसाय यहां बुलंदियों पर नहीं पहुंच पाया। भले ही नाहन चंडीगढ़, यमुनानगर, अंबाला, देहरादून, सोलन आदि से मात्र दो घंटे की दूरी पर है। बावजूद इसके पर्यटकों की आवाजाही नाहन में नहीं बढ़ पाई है। यहां छोटे-बड़े मात्र एक दर्जन निजी होटल हैं।  इन होटलों में भी अकसर रूम खाली रहते हैं। सीजन के दौरान ही नाहन में पर्यटकों की 50 से 60 प्रतिशत

ओक्यूपेसी रहती है। नाहन के रेस्तरां अकसर खाली रहते हैं।

छोटी छोटी पार्किंग करेंगे तैयार

नाहन शहर में वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या न केवल नगर परिषद के लिए, बल्कि आम लोगों के लिए भी चिंता का विषय है। नगर परिषद नाहन के कार्यकारी अधिकारी ठाकुर अजमेर सिंह का कहना है कि नगर परिषद शहर के भीतर व आसपास नए पार्किंग स्थल ढूंढ रहा है। इन स्थानों पर छोटी-छोटी पार्किंग विकसित की जाएंगी, ताकि सड़कों व गलियों पर खड़े वाहन पार्किंग में ही खड़े हो सकें। इससे नगर परिषद के राजस्व में भी इजाफा होगा।

बाइपास बेहद जरूरी

नाहन निवासी महिला शालिनी ठाकुर का कहना है कि जिस हिसाब से शहर की आबादी व वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उससे निःसंदेह आम लोगों को भी परेशानी हो रही है। लोगों का भी कर्त्तव्य है कि वे गाडि़यां ऐसी जगह खड़ी करें, ताकि आम लोगों को परेशानी न हो। नाहन की दशकों पुरानी बाइपास योजना शीघ्र सिरे चढ़नी चाहिए, ताकि भारी वाहन शहर से बाहर ही अपने स्थानों की ओर आवाजाही कर सकें। नाहन की सबसे बड़ी समस्या पार्किंग है। ऐसे में नाहन के आसपास बहुमंजिला पार्किंग का निर्माण शीघ्र किया जाना चाहिए।

नगर परिषद की आमदनी बढ़े

नाहन के समाजसेवी डा. एसके सबलोक का कहना है कि नाहन, जो कि रियासतकाल में केवल पांच से सात हजार आबादी का शहर था, आज 40 हजार की आबादी नाहन में हो चुकी है। शहर में न तो पार्किंग की सुविधा है, न ही और मकानों के लिए जगह बची है। ऐसे में अब नाहन के आसपास नए क्षेत्र विकसित किए जाने चाहिए। नाहन को भारी वाहनों से राहत के लिए लंबे समय से लंबित नाहन बाइपास की योजना शीघ्र सिरे चढ़ाई जानी चाहिए। जिला प्रशासन व नगर परिषद को शहर के विकास के लिए सर्वप्रथम नगर परिषद की आमदनी बढ़ानी होगी।

जिला प्रशासन व नगर परिषद  को मिलकर करना होगा काम

नाहन के वरिष्ठ नागरिक व पर्यावरणविद डा. सुरेश जोशी का कहना है कि नाहन में पार्किंग एक अहम समस्या बन चुकी है। जैसे-जैसे नाहन की जनसंख्या बढ़ रही है, उसके साथ ही जहां प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है, वहीं वाहनों की संख्या में भी भारी इजाफा हो रहा है। वाहनों की संख्या बढ़ने से शहर में लगातार जाम की स्थिति पैदा हो रही है। इससे निपटने के लिए जिला प्रशासन व नगर परिषद को संयुक्त प्रयास करने होंगे।

हर वार्ड में खड़ी हो सकें गाडि़यां

नाहन शहर के व्यवसायी रूपेंद्र ठाकुर का कहना है कि लगातार बढ़ती जनसंख्या पहाड़ी संरचना वाले नाहन के लिए चुनौती है। शहर की ऐसी कोई गली व सड़क नहीं है, जहां वाहनों की लंबी-लंबी कतारें खड़ी न हों। इन वाहनों को सड़कों व गलियों से हटाने के लिए शहर के प्रत्येक वार्ड में छोटी-छोटी पार्किंग बनाई जानी चाहिए।

पानी के लिए तीन दिन इंतजार

नाहन शहर में पीने के पानी की समस्या दशकों से चली आ रही है। नाहन शहर की करीब 45 हजार की आबादी के लिए प्रतिदिन 55 लाख लीटर पानी की आवश्यकता रहती है। नाहन के लिए वर्तमान में दो पेयजल योजनाएं शहर की पीने के पानी की आपूर्ति को पूरा करती हैं। खैरी उठाऊ पेयजल योजना से शहर को प्रतिदिन करीब 25 लाख लीटर पानी सप्लाई होता है। दूसरी पेयजल योजना नेहरस्वार ग्रैविटी योजना है। यह योजना 100 साल पुरानी हो चुकी है। इस योजना से प्रतिदिन आठ से दस लाख लीटर प्रतिदिन पानी पहुंचता है। ऐसे में नाहन में अभी भी प्रतिदिन 20 लाख लीटर पानी की सप्लाई कम रहती है। यही कारण है कि नाहन शहर में पानी की सप्लाई तीसरे दिन की जाती है। वह भी केवल दिन में एक बार पानी लोगों को नसीब होता है। नाहन शहर के लिए करीब 54 करोड़ रुपए की गिरि उठाऊ पेयजल योजना बनकर तैयार हो चुकी है तथा आदर्श चुनाव आचार संहिता के समाप्त होने के बाद शायद यह योजना नाहन शहर को समर्पित कर दी जाएगी। इस योजना से नाहन शहर के लोगों की पीने के पानी की सभी तरह की समस्या समाप्त हो जाएगी। इस योजना से प्रतिदिन 50 से 60 लाख लीटर पानी नाहन पहुंचेगा।

 नाहन की खासियत

मौसम के लिहाज से नाहन शहर प्रदेश के सबसे बेहतरीन शहरों में शुमार है। यहां न तो सर्दी ज्यादा होती है, न ही बरसात के मौसम में कहीं भी पानी खड़ा होता है। गर्मी का मौसम भी नाहन में लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। नाहन में मात्र दो से तीन प्रतिशत लोगों के घरों में ही एसी लगे हैं। शहर को तालाबों का शहर भी कहा जाता है। किसी जमाने में नाहन की तालाब व बावडि़यां हर जगर प्रसिद्ध थी।


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