गीता रहस्य

By: Jul 20th, 2019 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

श्लोक 9/15 में उस सर्वव्यापक परमेश्वर की उपासना के विषय में कहा है। वह निराकार परमेश्वर कैसा है, उसका गुण बताते हुए श्रीकृष्ण महाराज जी कहते हैं कि हे अर्जुन, वह ‘विश्वतोमुखम’ है। यह विश्वतोमुखम पद वेदों में है…

गतांक से आगे…

यहा ऐसा कहने से अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यदि श्रीकृष्ण के वैदिक भावों के केवल एक ही श्लोक के सत्य पर आधारित वेदविद्या के अनुसार वर्णन किया जाए, तो कई दिन लग सकते हैं। परंतु यहां समय, दिन इत्यादि का भाव यह है कि श्रीकृष्ण महाराज के समान यदि कोई संदीपन ऋषि के आश्रम जाकर आज भी गृहस्थाश्रम में रहता हुआ, वेदविद्या को सुनकर ऊपर कहे श्रवण,मनन और निदिध्यासन द्वारा ईश्वर भक्ति करता है। तो वह ईश्वर का सच्चा भक्त है और वेदविद्या को ज्ञान को पाकर वह समस्त गीता ग्रंथ एवं पुरातन ऋषियों के सद्ग्रंथों का ज्ञाता हो जाता है और वह योगी श्रीकृष्ण की तरह वेद एवं ऋषियों की प्रशंसा करता है, निंदा नहीं करता। इसके विपरीत यदि वेदों का ज्ञान नहीं होगा तो भी गीता के एक श्लोक को गीता श्लोक 2/42,43, 44 के अनुसार चिकनी, चुपड़ी भाषा, मानव निर्मित कथाएं सास, ननद, बहुओं के कथन, मां-बाप, बेटा-बेटी के अवगुण हंसी मजाक और संगीत का सहारा लेकर घंटों सुनाकर संत अपने को महान घोषित कर सकता है। श्लोक 9/15 में श्री कृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि साधक मुझको सब ओर से मुख वाला अर्थात सर्वव्यापक परमेश्वर सब स्थान में है और सब ओर से उपदेश करने की सामर्थ्य रखता है ऐसा जानकर ज्ञानयज्ञ के द्वारा मेरी पूजा करते हुए एकत्व भाव से और कई बहुत प्रकार से भी उपासना करते हैं।

भाव- श्लोक 9/15 में उस सर्वव्यापक परमेश्वर की उपासना के विषय में कहा है। वह निराकार परमेश्वर कैसा है, उसका गुण बताते हुए श्रीकृष्ण महाराज जी कहते हैं कि हे अर्जुन, वह ‘विश्वतोमुखम’ है। यह विश्वतोमुखम पद वेदों में है। उदाहरणार्थ यजुर्वेद मंत्र 17/19 में उस निराकार, सर्वव्यापक ब्रह्म के विषय में कहा, ‘विश्वतोमुखः’ अर्थात सर्वव्यापक गुणवाला परमेश्वर सब ओर से सबको देखने वाला और सब ओर से शक्ति वाला सर्वशक्तिमान।         


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