चंद्रयान-2 से खुले अंतरिक्ष में नए दरवाजे
चांद की सीढ़ी पर चढ़कर अंतरिक्ष फतह की चाहत में लगे कई देशों से आगे निकला भारत
मिशन पर खर्च करीब 978 करोड़ रुपए
नई दिल्ली –चांद की सीढ़ी पर चढ़कर अंतरिक्ष फतह की चाहत लिए दुनियाभर के बड़े देश एक ऐसी ‘स्पेस रेस’ की ओर कदम बढ़ा चुके हैं, जिसके अगले 200 साल तक जारी रहने के आसार हैं। कोल्ड वॉर से इतर इस बार रेस के खिलाड़ी ज्यादा ताकतवर और अत्याधुनिक तकनीकों से लैस हैं। 21वीं सदी की इस स्पेस रेस में अमरीका और रूस जैसे परंपरागत खिलाडि़यों के साथ-साथ चीन और भारत जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में हैं, जो मुकाबले को और ज्यादा रोचक बना रहे हैं। इस रेस में विजयश्री के लिए भारत ने सोमवार को अपने अंतरिक्ष यान चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लांच करके अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। इसके साथ ही भारत के लिए अनंत अंतरिक्ष में आगे के दरवाजे खुल गए हैं। आज से ठीक 50 साल पहले 20 जुलाई, 1969 को अपोलो मिशन के जरिए अमरीका ने पहली बार ‘चंदा मामा’ की धरती पर कदम रखकर विश्वभर में अपना लोहा मनवाया था। कोल्ड वॉर के दौरान शुरू हुई स्पेस रेस सोवियत संघ के विघटन के बाद थम सी गई थी। साल 2003 में इस स्पेस रेस में एक और खिलाड़ी की एंट्री हुई। यह नया खिलाड़ी था, चीन जिसने वर्ष 2003 में अपना पहला मानवयुक्त मिशन भेजा। चीन के मैदान में उतरने के बाद अब इस गेम के मायने ही बदल गए हैं। चीन ने अंतरिक्ष पर फतह के लिए एक व्यापक योजना बनाई है और उसके इसी मंसूबे देखते हुए अमरीका, भारत, जापान समेत अन्य देश भी तेजी से कदम ताल कर रहे हैं।
संपरों के देश से अंतरिक्ष शक्ति बनता हिंदुस्तान
कभी ‘संपरों का देश’ कहकर भारत का उपहास उड़ाने वाले पश्चिमी देश आज भारत को अंतरिक्ष की दुनिया की एक बड़ी ताकत मानने लगे हैं। इसके पीछे श्रेय भारत के व्यापक उपग्रह कार्यक्रम और चंद्रयान-1 की सफलता को जाता है। अंतरिक्ष की गहराइयों और उसमें छिपे रहस्यों का पता लगाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी कमर कस ली है। चंद्रयान-2 के बाद भारत अपना गगनयान अंतरिक्ष भेजेगा। भारत की धरती से किसी भारतीय नागरिक को अंतरिक्ष में तिरंगा फहराने के लिए ले जाने वाले गगनयान मिशन को साल 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य बनाया गया है।
पानी और हीलियम-3 पर भारत की भी नजर
चीन और अमरीका की तरह भारत की नजरें भी चंद्रमा के साउथ पोल पर पाए जाने वाले पानी और हीलियम-3 पर टिकी हुई हैं। बताया जाता है कि चंद्रमा पर हीलियम-3 का भंडार एक मिलियन मीट्रिक टन तक हो सकता है। इस भंडार का केवल एक चौथाई ही धरती पर लाया जा सकता है। इससे करीब 500 साल तक पृथ्वी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। इसरो के चेयरमैन के सिवन ने पिछले दिनों कहा था कि जिस देश के पास ऊर्जा के इस स्रोत हीलियम-3 को चांद से धरती पर लाने की क्षमता होगी, वह इस पूरी प्रक्रिया पर राज करेगा…मैं केवल इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता हूं, बल्कि इसका नेतृत्व करना चाहता हूं।
स्पेस का नया सुपर पॉवर बना चीन
स्पेस में कदम रखने के मात्र 16 साल के अंदर चीन आज इस दुनिया की एक महाशक्ति बन चुका है। बताया जा रहा है कि चीन हर साल 8.48 अरब डालर अपने स्पेस प्रोग्राम पर खर्च कर रहा है। इसके अलावा चीन अंतरिक्ष में अपनी सैन्य गतिविधियों को संचालित करने के काफी पैसा खर्च कर रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक चीन पृथ्वी पर चल रही अपनी अतिमहत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड परियोजना का विस्तार अंतरिक्ष तक करना चाहता है। इसीलिए वह एक स्पेस सिल्क रोड बनाने का प्रयास कर रहा है। कहा जा रहा है कि चंद्रमा पर कदम रखने वाला अगला अंतरिक्ष यात्री चीन से होगा। चीन वर्ष 2049 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 100 साल पूरा होने पर अंतरिक्ष सुपर पॉवर बनना चाहता है। चीन इसी साल के अंत तक पहला ऐसा लूनर प्रोब चांग ई पांच लांच करने जा रहा है जो धरती पर वापस आएगा। वर्ष 2020-21 में चीन मंगल ग्रह के लिए अपना पहला प्रोब भेजेगा। इसी साल में चीन अपना लूनर रिसर्च स्टेशन स्थापित करेगा। वर्ष 2022 में चीन अपना स्टेशन पूरा कर लेगा। साल 2023-24 में चीन चंद्रमा के साउथ पोल पर एक और अंतरिक्ष यान भेजेगा। वर्ष 2030 के आसपास चीन की चांद पर मानवयुक्त मिशन भेजने की योजना है। चीन ने इसी साल जनवरी में अपना चांग ई 4 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर उतारा था।
मिशन मून की ओर फिर बढ़ा अमरीका
चीन की ओर से मिल रही कड़ी चुनौती को देखते हुए अमरीका स्पेस में अपना प्रभुत्व रखने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) ने कहा कि वह एक नए मिशन के तहत पहले महिला और उसके बाद पुरुष को चांद की सतह पर उतारेगा। इस कार्यक्रम को ‘आर्टेमिस’ नाम दिया गया है, जो अपोलो की जुड़वां बहनें मानी जाती हैं। यह चंद्रमा और आखेट (शिकार) की देवी का नाम भी है। एजेंसी की मानें तो उसका स्पेस कार्यक्रम आर्टेमिस, उसके मंगल मिशन में बेहद अहम भूमिका निभाएगा। नासा ने एक बयान में कहा कि मंगल पर हमारा रास्ता आर्टेमिस बनाएगा। नया आर्टेमिस मिशन अपोलो कार्यक्रम से साहसिक प्रेरणा लेकर अपना रास्ता तय करेगा। अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा के उन क्षेत्रों का पता लगाएंगे, जहां पहले कोई भी नहीं गया है। वे ब्रह्मांड के रहस्यों को खोलते हुए उस तकनीक का भी परीक्षण करेंगे, जो सौरमंडल में मनुष्य की सीमाओं को विस्तार देगी। चांद की सतह पर हम पानी, बर्फ और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाएंगे, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष की और आगे तक की यात्रा संभव हो सके। चंद्रमा के बाद मनुष्य की अगली बड़ी उपलब्धि मंगल ग्रह होगी चंद्रमा पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी साल 2024 में होगी। इस कार्यक्रम पर लगभग 30 अरब डालर का खर्च आएगा। इसी के साथ स्पेसफ्लाइट अपोलो-11 की कीमत भी करीब इतनी ही होगी।
चांद पर पहले से मौजूद हैं रोवर
प्रज्ञान से पहले भी चांद पर कई रोवर गए हैं। ये रोवर चांद पर भेजे गए अलग-अलग यानों के साथ गए, जिन्हें रूस, अमरीका, चीन आदि ने भेजा। प्रज्ञान से पहले चांद पर कुल पांच रोवर जा चुके हैं।
काम खत्म कर चांद पर ही सो जाएगा रोवर प्रज्ञान
भारत के चंद्रयान-2 मिशन को सोमवार दोपहर में लांच कर दिया गया। मिशन को लेकर सभी के मन में बहुत से सवाल हैं। इनमें से एक सवाल यह भी है कि मिशन में अहम योगदान देने वाले रोवर, जिसे ‘प्रज्ञान’ नाम दिया गया है, उसका क्या होगा? यह रोवर कितने दिन चांद की सतह पर गुजारेगा और फिर उसका क्या होगा? बता दें कि मिशन में प्रज्ञान ही चांद की सतह पर उतरेगा और हमें नई जानकारियां उपलब्ध कराएगा। रोवर प्रज्ञान चांद पर 500 मीटर (आधा किलोमीटर) तक घूम सकता है। यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है। रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे की है, जिसका मतलब पृथ्वी के लगभग 14 दिन होता है। चंद्रयान पर कुल 13 पेलोड हैं। इसमें से दो पेलोड रोवर पर भी होंगे। अलग-अलग चरणों के तहत लांच के 52 दिनों बाद (16+5+27+4) चंद्रयान चांद की सतह पर पहुंच जाएगा। चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) 14 दिनों तक एक्टिव रहेंगे। रोवर इस दौरान एक सेंटीमीटर/सेकंड की गति से चांद की सतह पर चलेगा और उसके तत्वों की स्टडी करेगा व तस्वीरें भेजेगा। वह वहां 14 दिनों में कुल 500 मीटर कवर करेगा। दूसरी तरफ, ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा। ऑर्बिटर वहां एक साल तक ऐक्टिव रहेगा।
चंद्रयान-2 मिशन के हैं तीन पार्ट
पहलाः आर्बिटर
चांद की सतह के नजदीक पहुंचने के बाद चंद्रयान चांद के साउथ पोल की सतह पर उतरेगा। इस प्रक्रिया में चार दिन लगेंगे। चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्रम) अपनी कक्षा बदलेगा। फिर वह सतह की उस जगह को स्कैन करेगा, जहां उसे उतरना है। लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर उतर जाएगा।
दूसराः लैंडर
लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा। रोवर के निकलने में करीब चार घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा। इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी।
तीसराः रोवर
चंद्रयान-2 का तीसरा हिस्सा है रोवर, जिसे ‘प्रज्ञान’ नाम दिया गया है। 27 किलोग्राम का यह रोवर छह पहिए वाला एक रोबॉट वाहन है। इसका नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब ‘ज्ञान’ होता है।
पीएम ने खड़े होकर देखी मिशन की लांचिंग
भारत को अंतरिक्ष में एक और कामयाबी हासिल हुई है। जिस वक्त चंद्रयान-2 की लांचिंग हो रही थी, उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी भी खड़े होकर इसे देख रहे थे। जैसे ही चंद्रयान लांच हुआ प्रधानमंत्री मोदी तालिया बजाने लगे। खास बात यह है कि जिस वक्त वैज्ञानिक चंद्रयान को लांच कर रहे थे, उस वक्त सारे देश के साथ प्रधानमंत्री मोदी की सांसे भी कुछ पल के लिए थम गई थी। सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में साफ देखा जा रहा है कि चंद्रयान की लांचिंग के वक्त प्रधानमंत्री मोदी कैसे कुर्सी के पीछे दोनों हाथों को पकड़कर खड़े हैं, लेकिन जैसे ही चंद्रयान लांच हुआ उनके चेहरे पर खुशी आ गई।
स्वदेशी तकनीक से बना चंद्रायन-2
स्वदेशी तकनीक से निर्मित चंद्रयान-2 में कुल 13 पेलोड हैं। आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर विक्रम और दो पेलोड रोवर प्रज्ञान में हैं। पांच पेलोड भारत के, तीन यूरोप, दो अमरीका और एक बुल्गारिया के हैं। लैंडर विक्रम का नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के जनक डा. विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है। दूसरी ओर, 27 किलोग्राम प्रज्ञान का मतलब संस्कृत में बुद्धिमता है। इसरो चंद्रयान-2 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा।
कांग्रेस ने लिया क्रेडिट, याद दिलाया नेहरू-मनमोहन सिंह का योगदान
पटना -भारत द्वारा चांद पर अपना दूसरा मिशन ‘चंद्रयान-2’ भेजे जाने के तुरंत बाद ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने चंद्रयान-2 के लॉंच के फौरन बाद एक ट्वीट करके याद दिलाया कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसरो की नींव रखी थी। इस ट्वीट का जवाब देने के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मैदान में आ गए और उन्होंने कांग्रेस की चुटकी ली। उन्होंने ट्वीट किया कि देश को याद दिलाने का सही समय है… चांद की खोज भी कांग्रेस ने ही की थी। हालांकि बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। इससे पहले कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से पंडित जवाहर लाल नेहरू और वैज्ञानिकों की तस्वीर के साथ लिखा था कि यह सही मौका है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दूरदर्शी कदम को याद किया जाए, जब उन्होंने 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना के माध्यम से स्पेस रिसर्च की शुरुआत की। बाद में यही इसरो बना। कांग्रेस ने मनमोहन सिंह का जिक्र करते हुए ट्वीट में यह भी लिखा कि यह भी याद करने का समय है कि चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट को 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने पास किया था। इस पर बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने ट्वीट किया कि देश को याद दिलाने का सही समय है… चांद की खोज भी कांग्रेस ने ही की थी।
इसलिए सेटेलाइट में मढ़ा जाता है सोना
सोमवार को चंद्रयान मिशन लांच कर दिया गया अब इसे चांद तक पहुंचने में 48 दिनों का वक्त लगेगा। चंद्रयान के एक हिस्से में सोने की चमक तमाम लोगों के मन में सवाल पैदा कर रही है। आखिर यान पर सोना क्यों मढ़ा गया या सोने जैसी ये कोई और धातु है। इसके इस्तेमाल की कोई वैज्ञानिक वजह है या कुछ और। बता दें कि अंतरिक्ष की खोज में भेजे जाने वाले सेटेलाइट को बनाने में सोने का एक खास रोल होता है। ये मूल्यवान औद्योगिक धातु सोना किसी सेटेलाइट का अमूल्य हिस्सा होती है। इसे गोल्ड प्लेटिंग कहा जाता है। विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि सोना सेटेलाइट की परिवर्तनशीलता, चालकता (कंडक्टिविटी) और जंग के प्रतिरोध को रोकता है। साथ ही यह भी बता दें कि सोना ही नहीं, अन्य कीमती धातुएं भी एयरोस्पेस उद्योग में एक मूल्यवान कंपोनेंट हैं। इन धातुओं की थर्मल कंट्रोल प्रॉपर्टी सेटेलाइट में अंतरिक्ष की हानिकारक इनफ्रारेड रेडिएशन को रोकने में मदद करती है। ये रेडिएशन इतना खतरनाक होता है कि वे अंतरिक्ष में सेटेलाइट को बहुत जल्द नष्ट करने की क्षमता रखता है। अपोलो लूनर मॉड्यूल में भी नासा ने सेटेलाइट बनाने में सोने का इस्तेमाल किया था। नासा के इंजीनियरों के अनुसार, गोल्ड प्लेट की एक पतली परत ( गोल्ड प्लेटिंग) का उपयोग एक थर्मल ब्लैंकेट की शीर्ष परत के रूप में किया गया था जो मॉड्यूल के निचले हिस्से को कवर कर रहा था। ये ब्लैंकेट अविश्वसनीय रूप से 25 परतों में जटिलता से तैयार किया गया। इन परतों में कांच, ऊन, केप्टन, मायलर और एल्यूमीनियम जैसी धातु भी शामिल की गई। ये गोल्ड दरअसल अलग ही नाम से जाना जाता है।
यह होता है लेजर गोल्ड
दशकों से टेक्नोलॉजी की प्रगति ने अंतरिक्ष का पता लगाने में सोने की उपयोगिता का बेहतर इस्तेमाल किया है। इसमें से सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण लेजर गोल्ड का निर्माण था। इसे नासा ने बड़े पैमाने पर गोल्ड प्लेटिंग के लिए इस्तेमाल किया है। लेजर गोल्ड को सबसे पहले जेरॉक्स के लिए बड़े पैमाने पर विकसित किया गया था। इसे बनाने वाली कंपनी को अपनी कॉपी मशीनों के लिए टिकाऊ सोने के वर्क की जरूरत थी। नासा ने तब इसकी तकनीक के बारे में जाना। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लेजर गोल्ड तैयार करने वाली कंपनी का कहना है कि उनकी कंपनी लगभग 40 वर्षों से नासा के साथ काम कर रही है। नासा ने अब तक लगभग 50 अलग-अलग उपकरणों को सोने से मढ़वाया है जिन्हें अंतरिक्ष में भेजा गया है।
कुछ देशों के झंडे में चांद और कुछ देशों का झंडा चांद पर
नई दिल्ली। चंद्रयान-2 मिशन की लांचिंग पर क्रिकेटर हरभजन सिंह ने अलग ही अंदाज में इसे लेकर ट्विटर पर संदेश लिखा है। हरभजन ने कई देशों के झंडे साझा करते हुए चुटीले अंदाज में लिखा कि कई देशों के झंडे में चांद है, जबकि कुछ देशों के झंडे चांद पर हैं। हरभजन ने अपने ट्वीट में जिन देशों के झंडे शेयर किए हैं, उनमें पाकिस्तान का ध्वज भी है। इसके अलावा तुर्की, लीबिया, ट्यूनीशिया, अजरबैजान, अल्जीरिया, मलेशिया, मालदीव और मॉरिटानिया शामिल हैं।
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