चक्र का ध्यान करने से सिद्धियों पर अधिकार

By: Jul 20th, 2019 12:05 am

इन नौ चक्रों में से किसी भी एक चक्र का ध्यान करने पर सिद्धियां और मोक्ष साधक के अधिकार में हो जाते हैं। कठोपनिषद में यम के द्वारा नचिकेता को जिस अग्नि का उपदेश दिया गया था, कुछ विद्वान उसे कुंडलिनी शक्ति ही समझते हैं। पाश्चात्य देशों के विद्वान इसे सरपेंट फायर पुकारते हैं। रूस देश की योगिनी ब्लैवेस्टस्की इसे कॉस्मिक इलेक्ट्रिसिटी कहती हैं जो सारे संसार में व्याप्त है। वे इसे प्रकाश की गति से भी अधिक तीव्र मानती हैं। किसी अनुभवी गुरु के संरक्षण तथा देखरेख के बिना इसका जाग्रत हो जाना अत्यंत भयावह है। शास्त्रों के अनुसार यदि प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करा दिया जाए तो कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो सकती है…

-गतांक से आगे…

तीन अन्य चक्र

बहुत से तांत्रिक योगियों ने इन छह चक्रों के अलावा तीन अन्य चक्रों की भी उपस्थिति मानी है जिनका विवरण निम्नलिखित है :

तालुका चक्र : यह तालु में स्थित है। इसे दसवां द्वार भी कहते हैं। इसके शून्य स्थान में योगी अपने मन को लय करने का प्रयास करते हैं।

ब्रह्मरंध्र चक्र : यह आठवां चक्र है जो मस्तिष्क में स्थित है। इसका ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ब्रह्म चक्र : यहां पर सोलह दलों वाला पद्म शोभित है। साधक द्वारा यहां चिन्मयी शक्ति का ध्यान करने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। तंत्र में लिखा है :

ऐतेषां नवचक्राणामेकैकं ध्यायतोमुने।

सिद्धयोमुक्तिसहिताः करस्थाः स्युर्दिनेदने।।

इन नौ चक्रों में से किसी भी एक चक्र का ध्यान करने पर सिद्धियां और मोक्ष साधक के अधिकार में हो जाते हैं। कठोपनिषद में यम के द्वारा नचिकेता को जिस अग्नि का उपदेश दिया गया था, कुछ विद्वान उसे कुंडलिनी शक्ति ही समझते हैं। पाश्चात्य देशों के विद्वान इसे सरपेंट फायर पुकारते हैं। रूस देश की योगिनी ब्लैवेस्टस्की इसे कॉस्मिक इलेक्ट्रिसिटी कहती हैं जो सारे संसार में व्याप्त है। वे इसे प्रकाश की गति से भी अधिक तीव्र मानती हैं। किसी अनुभवी गुरु के संरक्षण तथा देखरेख के बिना इसका जाग्रत हो जाना अत्यंत भयावह है। शास्त्रों के अनुसार यदि प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करा दिया जाए तो कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो सकती है। हमारा श्वास प्रायः नासिका के बाएं या दाएं छिद्र से ही चलता रहता है, किंतु प्रातः तथा सायं जब श्वास दोनों छिद्रों से होकर चलने लगता है तो यही साधना का सबसे उपयुक्त समय होता है। यदि इस समय गुरु के निर्देशानुसार मंत्र सहित अथवा मंत्र रहित प्राणायाम किया जाए तो सुगमतापूर्वक कुंडलिनी शक्ति को जगाया जा सकता है। इसके जागते ही शारीरिक मल एवं मानसिक विकार नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा योगी अनेक चमत्कारिक शक्तियों के साथ-साथ इच्छा-मृत्यु भी प्राप्त कर लेता है। वह कालभक्षक हो जाता है अथवा काल पर विजय पा लेता है। चक्रों के देवता एवं उनकी शक्ति उपर्युक्त छह विशिष्ट चक्रों में विराजमान देवता और उनकी शक्तियां इस प्रकार हैं – मूलाधार चक्र के देवता स्वयंभू लिंग तथा उनकी योगिनी डाकिनी शक्ति है।


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