जब नसीरुल्ला बेग उलझन में पड़ गए…

By: Jul 13th, 2019 12:05 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है पंद्रहवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

‘मेरा बुहत मन कर रहा था पापा’, मासूम शहनाज ने बेझिझक गुनाह कबूल लिया। ‘मैं हमेशा हेलेन को अपना सामान देती हूं, लेकिन पिछले संडे हमारा सामान नहीं आया था, मेरे पास खाने को कुछ नहीं था और उसने अपना जैम शेयर करने से मना कर दिया था।’ नसीरुल्ला बेग उलझन में थे। वह आदमी जो कोर्ट में कई बार मुश्किल से मुश्किल केस का सामना कर चुके थे, इस बार अपना फैसला अपने तक ही सुरक्षित रखने को मजबूर थे। बोर्डिंग स्कूल में पेशी के बावजूद, मेरी मां की ला मार्टिनी स्कूल के साथ बहुत सी अच्छी यादें जुड़ी हैं। स्कूल में उनकी एक बेस्ट फ्रेंड हुआ करती थीं, जिनका नाम था एलिजाबेथ द क्रूज। लिजी एक भावुक और खुले दिल की लड़की थीं, जो स्कूल खत्म होने तक शहनाज की करीबी दोस्त रहीं। एलिजाबेथ का कजिन नेविल फ्लेमिंग ला मार्टिनी बॉयज स्कूल में पढ़ता था और अक्सर संडे को बोर्डिंग में एलिजाबेथ से मिलने आता था। कुछ ही दिनों में वह सात साल की शहनाज के घुंघराले बालों और बड़ी-बड़ी भूरी आंखों के प्रति आकर्षित हो गया। वह भी महज दस साल का था। बहुत बार मिलने के बाद उसने अपनी भावनाएं एलिजाबेथ के माध्यम से शहनाज तक पहुंचा दीं। ‘नेविल कहता है कि शाइना तुम बहुत सुंदर हो। मुझे लगता है कि वो तुमसे प्यार करता है।’ एक बार डोरमट्री में नेविल के क्रश की खबर फैल गई, तो आगे आने वाले रविवारों को ‘नेविल फ्लेमिंग डेज’ कहा जाने लगा। शहनाज पढ़ाई पर बहुत मेहनत करतीं और हमेशा क्लास में आगे रहने की कोशिश करतीं। उन्हें उन बच्चों से प्रतिस्पर्धा करनी थी जिनके पेरेंट्स उन्हें घर पर पढ़ने में मदद किया करते थे। क्लास में हमेशा सुनने को मिलता कि ‘मम्मी ने इस चैप्टर को याद कराने में मेरी बहुत मदद की’, इससे उन्हें और भी खालीपन का अहसास होता। उनमें अभिनय का भी एक स्वाभाविक गुण था, और अपने भावों को स्टेज पर व्यक्त करने में वह बहुत विश्वस्त थीं। स्कूल को उनकी इस काबिलियत का अहसास जल्दी ही हो गया और उन्होंने उनकी इस कला को निखारने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। यह वो साल था, जिस दिन स्कूल अपने बेस्ट एक्ट को तैयार करके बच्चों की योग्यता पेरेंट्स को दिखाने के लिए स्कूल के दरवाजे खोल देता था। ला मार्टिनी में एनुअल डे एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता था और उस साल का मुख्य आकर्षण था रेड इंडियन डांस। खचाखच भरे आडिटोरियम में लाइटें कम कर दी गई थीं और स्टेज जगमगाते फिश टैंक की तरह लग रहा था। दर्शकों में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए, अचानक ड्रम की आवाज आई। नेटिव अमरीकन चीफ की पोशाक में सजी-धजी शहनाज सिर पर भिन्न-भिन्न रंगों का ताज पहने, अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए स्टेज पर आईं।


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