जाधव पर पाक के विकल्प

By: Jul 24th, 2019 12:05 am

वरिंदर भाटिया

पूर्व कालेज प्रिंसीपल

 

भारत की तरफ से प्रमुख वकील हरीश साल्वे ने पाकिस्तान की हर उस कड़ी को तोड़ दिया, जिसके आधार पर वह कुलभूषण जाधव को दोषी मान रहा था। बहरहाल! कानूनी और कूटनीतिक जीत के बाद मुख्य सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान यहीं रुक जाएगा या इसको पुनः सुरक्षा परिषद में ले जाने की कोशिश करेगा, जहां पर उसे चीन की मदद मिलने की उम्मीद होगी। इस निर्णय में चीन ने भी भारत का साथ दिया है, इसलिए वह अपनी ही दलील को पुनः झुठला नहीं सकता…

भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में पाकिस्तान की जेल में कैद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में नीदरलैंड के हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्याय न्यायालय (आईसीजे) ने न केवल जाधव की फांसी की सजा पर रोक को बरकरार रखा है और इस पर पाकिस्तान को पुनर्विचार करने के लिए भी कहा है। पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव और वहां से बचकर आए विंग कमांडर अभिनंदन के मामले में दो अंतरराष्ट्रीय संधियों पर जानकारी महत्त्वपूर्ण है, ये दोनों हैं वियना और जेनेवा संधि। कुलभूषण जाधव के मामले में कहा जा रहा है कि ये पूरा मामला वियना संधि पर टिका है। आइए जानें, क्या हैं दोनों संधि और दोनों में क्या अंतर है। सबसे पहले साल 1961 में आजाद और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक (डिप्लोमैट) संबंधों को लेकर वियना संधि हुई थी। इसके तहत ऐसी अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया, जिसमें संधि के अंतर्गत आने वाले राजनयिकों को विशेषाधिकार दिए गए। इस संधि के दो साल बाद 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी तरह की एक अन्य संधि प्रस्तुत की। इसे वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस के नाम से जाना जाता है। इंटरनेशनल लॉ कमीशन के ड्राफ्ट पर तैयार इस संधि को 1964 में लागू किया गया। वियना संधि को दुनियाभर के कुल 191 देश मानते हैं। ये सभी देश दो साल पहले तक इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।

वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस को भारत और पाकिस्तान सहित 179 देशों ने हस्ताक्षर करके मंजूरी दी। वियना संधि मानने वाले देश किसी दूसरे देशों के राजनयिकों को विशेष दर्जा देते हैं। ये वह संधि है जिसके तहत दूसरे देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार करने या हिरासत में रखने पर पाबंदी है। संधि के आर्टिकल 31 में स्पष्ट है कि मेजबान देश दूसरे देश के दूतावास में नहीं घुस सकता, लेकिन दूतावास की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हीं की है। आर्टिकल 36 में है कि यदि देश विदेशी नागरिक को गिरफ्तार करता है, तो संबंधित देश के दूतावास को तुरंत इसकी जानकारी देंगे। भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में इसी आर्टिकल 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला उठाया। विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने की मांग भी इसी संधि के तहत उठाई गई थी। इस संधि में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रीय सुरक्षा (जासूसी या आतंकवाद) के मामलों में गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुंच नहीं भी दी जा सकती है। यह तब और प्रभावी होगा, जब दो देशों ने इस मसले पर कोई आपसी समझौता कर रखा हो। इसके पीछे पाकिस्तान साल 2008 में भारत और पाकिस्तान के बीच इसी तरह के एक समझौते का हवाला दे रहा है। पाकिस्तान इसी समझौते को हथियार बनाकर जाधव को राजनयिक का स्टैंड देने से मुकर कर रहा है। वियना संधि जहां राजनयिकों यानी डिप्लोमैट के राइट पर आधारित है, वहीं जेनेवा समझौता युद्धबंदी के अधिकारों पर आधारित है। जेनेवा समझौता से भी करीब सौ साल पुरानी एक संधि है। यह मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी। इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी। जब विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान ने अपनी हिरासत में लिया, उस दौरान भारत ने जेनेवा और वियना संधि का हवाला देते हुए बात की थी। अब सवाल यह उठता है कि आईसीजे का फैसला किसी देश पर कितना बाध्यकारी होता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश आईसीजे के उस फैसले को मानेंगे, जिसमें वे स्वयं पक्षकार हैं। वह फैसला अंतिम होगा और उस पर कोई अपील भी नहीं सुनी जाएगी। ऐसे मामले भी आ चुके हैं, जब आइसीजे के आदेश का पालन नहीं किया गया। सबसे प्रसिद्ध मामला 1986 का है। उस समय निकारागुआ ने अमरीका के खिलाफ शिकायत की थी कि एक विद्रोही संगठन की मदद करते हुए अमरीका ने उसके विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ा है। निकारागुआ के पक्ष में फैसला देते हुए आईसीजे ने अमरीका को क्षतिपूर्ति देने का फैसला सुनाया था, लेकिन अमरीका ने आईसीजे के अधिकार क्षेत्र से खुद को बाहर कर लिया। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक  सुरक्षा परिषद को अदालत का फैसला लागू करवाने का अधिकार है, लेकिन तब अमरीका ने वीटो लगाते हुए फैसला मानने से इनकार कर दिया था। जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में अप्रैल 2017 में फांसी की सजा सुनाई थी। भारत इस मामले को आइसीजे में ले गया था, जहां यह मामला तकरीबन दो वर्ष दो महीने तक चला। इस बीच भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी तल्खी आने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह मामला काफी उछला। भारत ने जाधव के खिलाफ पाकिस्तान में दायर मामले को निरस्त करने और उन्हें पाकिस्तान की जेल से रिहा करवाने की मांग भी की थी, जिसे आईसीजे ने खारिज कर दिया है। संकट अभी टला नहीं है। भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध आतंक को लेकर ही खराब हुए हैं। जाधव पाकिस्तान के लिए एक ऐसी कड़ी बन रहे थे, जिसके बूते पर वह भारत को बदनाम करने की कोशिश में था, ताकि दुनिया भारत को मुख्य दोषी मान ले।

भारत की तरफ से प्रमुख वकील हरीश साल्वे ने पाकिस्तान की हर उस कड़ी को तोड़ दिया, जिसके आधार पर वह कुलभूषण जाधव को दोषी मान रहा था। बहरहाल! कानूनी और कूटनीतिक जीत के बाद मुख्य सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान यहीं रुक जाएगा या इसको पुनः सुरक्षा परिषद में ले जाने की कोशिश करेगा, जहां पर उसे चीन की मदद मिलने की उम्मीद होगी। इस निर्णय में चीन ने भी भारत का साथ दिया है, इसलिए वह अपनी ही दलील को पुनः झुठला नहीं सकता। यहां दूसरा तथ्य और बड़ा है। विगत में अमरीका द्वारा आईसीजे के निर्णय को नहीं मानाने का उदाहरण है, लेकिन यह भी सच है कि पाकिस्तान अमरीका नहीं है और न ही भारत निकारागुआ है। भारत की वर्तमान सरकार अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अगर पाकिस्तान कुलभूषण जाधव के मुद्दे को और तूल देता है, तो भारत-पाकिस्तान संबंध और खराब होंगे।

अगर अंतरराष्ट्रीय नियमों को पाकिस्तान द्वारा ताक पर रखा जाता है, तो दुनिया में पाकिस्तान की ही फजीहत होगी। इसलिए पाकिस्तान के लिए बेहतर होगा कि वह जाधव को रिहाई देकर संबंधों को और तल्ख होने से बचा ले। दोनों देशों के लिए यह एक अवसर भी बन सकता है, जहां से रुका हुआ संबंध हिचकोले खाकर आगे बढ़ने लगेगा। कुल मिलाकर भारत से संबंध सुधारने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्याय न्यायालय (आईसीजे) का फैसला पाक के लिए गोल्डन मौका है।


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