डर के साए में जी रहा कुलेठ गांव

By: Jul 3rd, 2019 12:02 am

सालों से जारी है भू-स्खलन का दौर; बरसात आने से ग्रामीणों को फिर सताने लगी चिंता, कोई नहीं ले रहा सुध

भरमौर -जनजातीय क्षेत्र भरमौर की होली घाटी के कुलेठ गांव के वौजूद पर संकट अभी तक बरकरार है। वर्षों बाद भी गांव के नीचे की ओर से जारी भू-स्खलन का दौर अभी तक थमा नहीं है। हालात यह हंै कि जमीन धंसने के चलते दरारें उत्तरी भारत के इकलौते कार्तिक स्वामी मंदिर के पीछे तक पहंुच गई हंै। वहीं, बरसात का मौसम आने वाला है और इस स्थिति में रावी नदी का जलस्तर बढ़ने से यहां पर पुनः जमीन धंसने का क्रम शुरू हो जाएगा। लिहाजा सैकडों हेक्टेयर भूमि और सेब बगीचों को खो चुके ग्रामीण अब फिर खौफ के साए में जीने के लिए मजबूर हो गए हंै। जानकारी के अनुसार होली घाटी के जब्बल गांव के पास करीब एक दशक पहले पहाड के दरकने के कारण रावी नदी का प्रवाह घंटों थमा रहा था। इस दौरान होली-दयोल रोड की तरफ पानी का बहाव मुड़ने के कारण ग्रामीणों की सैकड़ों हेक्टेयर भूमि रावी नदी की भेंट चढ़ गई थी, तो हजारों सेब के पौधे भी इसकी भेंट चढ गए थे। जिसके बाद रावी नदी के कारण लगातार हो रहे भूमि-कटाव को रोकने के लिए करोड़ों की राशि सरकार खर्च कर चुकी है, लेकिन यह भी जमीन धंसने के क्रम को रोकने के लिए नाकाम रहे। वहीं, घाटी में 180 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना का निर्माण करने वाली कंपनी ने पहाड़ के गिरे मलबे का उपयोग क्रशर प्लांट में करने के लिए कार्य आरंभ किया, लेकिन गत वर्ष सिंतबर माह में रावी नदी में आई भयंकर बाढ़ ने इन प्रयासों पर भी पानी फेर दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक रावी नदी के बहाव को दूसरी ओर नहीं किया जाता, तब तक यहां पर जमीन धंसने का क्रम थमने वाला नहीं है।

कंकरीट वाल और क्रेट भी पानी के आगे बौने

चंूकि रावी में जलस्तर बढ़ने पर यहां पूर्व में लगाए गए कंकरीट वाल और क्रेट भी पानी के आगे बेवस रहे हंै और ये बह गए। लिहाजा ऐसे में यहां जमीन धंसने से रोकने के लिए सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयास पूरी तरह से विफल साबित हो रहे हंै। ग्रामीणों का कहना है कि प्रदेश सरकार गांव की ओर मुड़े रावी नदी के बहाव को मोड़ने की दिशा में कार्य करे,  ताकि कुलेठ के वौजूद पर खड़े संकट से मुक्ति मिल सके।

जमीन और बागीचे खो चुके हैं ग्रामीण

जमीन धंसने के चलते कुलेठ पंचायत के ग्रामीण अपनी उपजाऊ भूमि और सेब के बगीचों को भी खो चुके हैं, जिसकी एवज में सरकार की ओर से भी कोई राहत राशि भूमि मालिकों को नहीं मिली थी। लिहाजा अब जमीन धंसने का क्रम अगर यूं ही जारी रहता है, तो ग्रामीणों की शेष भूमि भी रावी नदी में जलसमाधि ले लेगी। साथ ही गांव के भी जमींदोज होने का खतरा पैदा हो गया है।


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