देवताओं और त्योहारों से जुड़े हैं मेले
त्योहारों की भांति मेलों का भी पहाड़ी जीवन में विशेष महत्त्व है। जैसे कि देश के बहुत सारे त्योहार लोक गाथाओं और देवताओं से जुड़े हैं, वैसे ही हिमाचल के मेले भी देवताओं और त्योहारों से जुड़े हैं। मैदानों के मेलों की भांति पहाड़ों में मेलों के आयोजन का उद्देश्य दुकानें सजाकर क्रय-विक्रय न होकर (विशेष कर मध्य व ऊपरी भाग में) देवताओं को प्रसन्न करना होता है। आमतौर पर कई देवताओं और उनके पूजकों का इकट्ठा होना ही मेले का रूप ले लेता है…
गतांक से आगे …
त्योहारों की भांति मेलों का भी पहाड़ी जीवन में विशेष महत्त्व है। जैसे कि देश के बहुत सारे त्योहार लोक गाथाओं और देवताओं से जुड़े हैं, वैसे ही हिमाचल के मेले भी देवताओं और त्योहारों से जुड़े हैं। मैदानों के मेलों की भांति पहाड़ों में मेलों के आयोजन का उद्देश्य दुकानें सजाकर क्रय-विक्रय न होकर (विशेष कर मध्य व ऊपरी भाग में) देवताओं को प्रसन्न करना होता है। आमतौर पर कई देवताओं और उनके पूजकों का इकट्ठा होना ही मेले का रूप ले लेता है। मेले लोगों में लोकप्रिय हैं और त्योहारों की भांति सारा साल ही कहीं न कहीं मेलों का आयोजन होता रहता है, जिसमें बच्चे, बूढ़े, जवान, मर्द, स्त्रिया सभी उल्लासपूर्वक भाग लेते हैं। यदि कोई व्यक्ति हिमाचल के सही सांस्कृतिक जीवन की झांकी प्राप्त करना चाहे तो उसे यहां के मेले अवश्य देखने चाहिए। मेलों में स्थानीय वाद्य-यंत्रों नरसिंगा, कानल, शहनाई, ढोलक, डौरू आदि से सुसज्जित लोग अपने-अपने देवताओं को लेकर पहुंच जाते हैं। नया स्थानीय पहरावा पहना जाता है। स्थानीय नृत्यों का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्त्री-पुरुष सभी भाग लेते हैं। इन मेलों के अन्य आकर्षण हैं- कुश्तियां, तीरअंदाजी के मुकाबले और नृत्य गान के मुकाबले आदि। हिमाचल प्रदेश में आयोजित किए जाने वाले मेलों को मुख्यतः तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-
- त्योहार व इतिहास से संबंधित मेले।
- देवताओं या पौराणिक गाथाओं से संबंधित मेले।
- व्यापारिक और कृषि मेले।
यह वर्गीकरण सामान्य है। कई मेलों में एक या एक से अधिक सभी वर्गों के मेलों की विशेषताओं का मिश्रण होता है। त्योहार व इतिहास से संबंधित मेले ः आमतौर पर प्रत्येक त्योहार या उसके एक दिन बाद में हिमाचल प्रदेश में मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में अधिकतर बैशाखी (प्रथम बैशाख) के दिन मनाए जाने वाला मेले है। यह यह भी कह दिया जाए कि इस दिन हिमाचल का जनजीवन ही मेलों में परिवर्तित हो जाता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसका कारण शायद सर्दी और गर्मी के मध्य बसंत ऋतु का मौसम ही है। मध्य भाग के क्षेत्रों में इस दिन (शायद सदी के बाद) देवता लोग पालकी में बैठकर बाहर निकलते हैं। लोग होते हैं।
– क्रमशः
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